अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच पहले से बनी दरार और गहराई

इससे सपा और सरकार का आंतरिक संघर्ष तेज होने के आसार हैं। यह सत्ता और संगठन के बीच टकराव की स्थिति तक पहुंच सकता है। अभी तक प्रदेश सरकार के मुखिया व सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद की दोनों ही जिम्मेदारियां अखिलेश के पास थीं। सत्ता और संगठन के सर्वोच्च पद उनके पास होने के कारण वे दोनों में तालमेल बैठाते थे।
उन्होंने अपनी टीम इसी तरह खड़ी की थी कि सत्ता और संगठन में समन्वय बना रहे। उनमें टकराव की स्थिति पैदा न हो। सीएम ने कुछ अफसरों को जिम्मेदारी सौंप रखी थी कि वे संगठन से जुड़े नेताओं की बात सुनकर उन पर कार्रवाई करें। कुनबे में घमासान के बीच 13 सितंबर को अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर जिम्मेदारी वरिष्ठ मंत्री शिवपाल को दे दी गई थी। इसकी प्रतिक्रिया में सीएम ने शिवपाल के सभी महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए थे।
दोनों के बीच मतभेदों को सपा मुखिया ने किसी तरह सुलह तक पहुंचाया, लेकिन रविवार को रामगोपाल यादव के भांजे एमएलसी अरविंद प्रताप सिंह और सोमवार को अखिलेश के नजदीकी विधान परिषद सदस्य सुनील यादव साजन, आनंद भदौरिया, संजय लाठर और युवा संगठनों के तीन प्रदेश अध्यक्षों और एक राष्ट्रीय अध्यक्ष के निष्कासन से हालात विस्फोटक हो गए हैं। युवा नेता पदों से इस्तीफा दे रहे हैं, पार्टी नेतृत्व के फैसले पर विरोध जता रहे हैं। इससे तालमेल के बजाए घमासान और बढ़ने की संभावना है।
सीएम की रथयात्रा टली, अगली तारीख तय नहीं
सत्ता और संगठन के बीच विवाद की छाया अखिलेश की समाजवादी विकास रथयात्रा पर पड़ गई है। सीएम ने खुद ट्वीट करके 3 अक्तूबर से रथ यात्रा शुरू करने की जानकारी दी थी, लेकिन अब इसे स्थगित कर दिया गया है। मौजूदा माहौल में वह प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए निकलने को तैयार नहीं हैं। जिन युवाओं के भरोसे रथयात्रा में शक्ति प्रदर्शन की तैयारी थी, उनके प्रमुख नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया गया है।
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