अर्थव्यवस्था 2015,सोच के क्रियान्वन का समय

अप्रैल की शुरुआत हुई तो बजट के प्रभाव सामने आये। देश की आधी आबादी यानि कि महिलाओं के लिए सजना संवरना महंगा हुआ। 1991 के दौर मे भारत मे आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थी। उदारीकरण के द्वारा देश की गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के प्रयास हुए थे। भारत के बड़े बाजार को दुनिया के लिए खोल दिया गया था। इसके बाद से भारत का बजट सिर्फ आय-व्यय का खर्च से आगे निकलकर विघ्न डॉक्यूमेंट बन गया है। हर वर्ष देश के साथ साथ निवेशकों की निगाहें भी भारत के सालाना बजेट पर टिकी रहती हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों मे नरेंद्र मोदी को प्रमुख फोकस रक्षा, काला धन, रोजगार सृजन और व्यापार के अनुकूल माहौल पर था। इन संदर्भों के अंतर्गत ही मैंने भारत कि वर्तमान अर्थव्यवस्था पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। मोदी सरकार का यह पहला पूर्णकालिक बजट था जिसमे मेक इन इंडिया पर पूरा ध्यान रखते हुए रक्षा क्षेत्र मे आत्म निर्भर बनने के प्रयास दिखाये गए। अवसंरचना मे निवेश बढ़ाकर अब 70,000 करोड़ और प्रतिरक्षा के लिए 2,46,727 करोड़ कर दिया गया जो पहले से आठ प्रतिशत ज्यादा है। इसके द्वारा आत्मनिर्भरता के साथ ही नए रोजगार सृजित होने की संभावनाएं बन रही हैं। भविष्य मे इसके द्वारा जीडीपी मे निर्माण क्षेत्र का योगदान जो अब तक 15 प्रतिशत है, के 25 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है। वर्तमान की आर्थिक नीति मे एक और बात जो उभरकर सामने आ रही है वो है कारोबार को बढ़ाने वाला माहौल प्रदान करना। ई-बिज पोर्टल के द्वारा 14 विभिन्न मंजूरियां जो सरकार से लेनी पड़ती हैं अब एक ही स्थान पर मिल जाया करेंगी। इसके द्वारा निश्चित तौर पर नये कारोबारियों को अच्छा संदेश जाएगा। विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेसÓ (उद्योगों के अनुकूल देशों की सूची) मे भारत का स्थान 189 देशों मे 142 है। सरकार का कहना है कि उसका लक्ष्य इसको 50 तक पहुंचाना है। भारत की बदनाम लाल फीता शाही व्यवस्था को भी इसके द्वारा नियंत्रित किए जाने की शुरुआत हो गयी है।
इस वर्ष विदेशों मे काला धन रखने वालों के लिए दो नये कानून बनाए जाएंगे और पुराने तीन कानून मे आवश्यक सुधार का भी कहा गया साथ ही दोषी को 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। लोकसभा चुनावों मे किए गए वादों के हिसाब से तो ये स्वागत योग्य कदम है। इस कानून मे एक बार काला धन पकड़े जाने पर आरोपी से समझौते के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। इसमे आरोपी को सेटलमेंट कमीशन मे अपील का अधिकार भी नहीं दिया गया है। 1999 मे राजग के पहले कार्यकाल मे फेरा का स्थान फेमा ने लिया था। फेरा मे वित्तीय अनियमितताएं अपराध की श्रेणी मे आती थी। फेमा मे ऐसा नहीं था। अब सरकार पुन: संशोधन के द्वारा अवैध तरीके से अर्जित की गयी संपत्ति पर 5 वर्ष तक की सजा का प्रावधान कर रही है। इसके साथ ही इस वर्ष देश मे काला धन की रोक थाम के लिए 1 लाख रुपये की खरीदारी पर पैन नंबर देना अनिवार्य कर दिया गया है जिससे शायद कुछ अर्थव्यवस्था मे सुधार दिखे। बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं देश मे चिंता का विषय है। भारत मे गरीबी बढ़ाने मे बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं का भी एक बड़ा योगदान है। गरीब के लिए बीमार होना एक अभिशाप है। इस दिशा मे जितनी अपेक्षाएं थी उस पर काम नहीं हुआ है। सरकार द्वारा जितना ध्यान सुरक्षा, रोजर सृजन, एवं व्यापार पर दिया जा रहा है उतना बेहतर स्वास्थ्य पर नहीं दिया जा रहा है। ये मेरे लिए चिंतित करने वाला विषय है। एक बीमार राष्टï्र कभी भी विश्व गुरु नहीं हो सकता है। नरेंद्र मोद्दी एक दूरदर्शी व्यक्ति हैं इसलिए अपेक्षाओं पर खरा उतरते हुए वो अवश्य जनभावनाओं को और बेहतर समझेंगे। फिलहाल उन पर ये शेर
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा।
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