आडवाणी ने दाऊद को मांग कर आगरा मीट को चौपट कर दिया: कसूरी

kasuri2तहलका एक्सप्रेस

मुंबई।पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच बाचतीच के अभाव में दोनों पक्षों की ओर से कट्टरपंथी तत्वों का हावी होने का सिलसिला शुरू हो गया है । मंगलवार को कई कार्यक्रमों में व्यस्त रहे कसूरी ने कहा कि भारत की जिद कि दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) के बीच जो भी गड़बड़ियां हो रही हैं उसके लिए पाकिस्तान पर दोष मढ़ दो, काउंटर-प्रॉडक्टिव हो साबित हो रही है और भविष्य में मेल-मिलाप की संभावनाओं को खत्म कर रही है।

कसूरी तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री थे जब जनरल मुशर्रफ की भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बातचीत चल रही थी। कसूरी ने कहा कि घाटी में शांति लाने के प्रयासों के तहत पाकिस्तान ने कश्मीर में चल रहे टेररिस्ट कैंपों का पता दे दिया था। उन्होंने दावा किया कि उस वक्त शांति का माहौल था और सीमा विवाद को सुलझाने का सही मौका भी। उन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी पर शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘आडवाणी की इस मांग ने आगरा शांति वार्ता को बर्बाद कर दिया कि भगोड़े दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंपा जाए।’

यह पूछने पर कि आखिरकार अमेरिका और भारत की ओर से ग्लोबल टेररिस्ट घोषित दाऊद को हैंड ओवर करने में पाकिस्तान को क्या परेशानी हो रही थी, कसूरी ने कहा कि वैसे व्यक्ति को आप कैसे सौंप सकते हैं जिसके देश में नहीं होने का दावा पाकिस्तान की सेना और प्रशासन कर रहे हों। कसूरी ने स्वीकार किया कि पाकिस्तान की अदालत प्रधानमंत्री को हटा सकती है लेकिन जब बात आतंकवादियों की आती है तो वह भी असहाय हो जाती है । उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को कोर्ट ने ही हटाया। लेकिन, पंजाब के राज्यपाल सलमान तासीर के हत्यारे पर उसके गुनाह के लिए मुकदमा भी नहीं चलाया जा सका।’

कसूरी ने दोनों देशों के टीवी चैनलों पर भी विद्वेष और दुश्मनी की भावना भड़काने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘न्यूजरीडर दूसरे पक्ष को दुश्मन और आक्रामक पड़ोसी के रूप में पेश करते हैं। वह चाहे हमारे यहां के टीवी चैनल हों या आपके यहां के- दोनों बराबर के दोषी हैं।’ कसूरी को इस बात की बहुत खुशी है कि वह अभिनेता दिलीप कुमार से मिले। उन्होंने बताया, ‘हालांकि सायरा बानो ने ही बातचीत की, लेकिन दिलीप कुमार से मिलना बहुत आनंददायक रहा। मैंने उनसे कहा कि साल 1965 में उनकी फिल्म मुगल-ए-आजम के जरिए ही मैंने पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर लगी पाबंदी हटा दी थी। पता नहीं मैं जो उन्हें बताना चाह रहा था, उसे वह समझ भी पाए या नहीं।’

जब कसूरी से पूछा गया कि छोटे-छोटे बहाने बनाकर पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर रोक क्यों लगा दी जाती है तो उन्होंने कहा, ‘सिर्फ वैसी फिल्में ही प्रतिबंधित की जाती हैं, जिनमें भारतीय हीरो को कराची के नागरिकों की हत्या करते हुए दिखाया जाता है जैसा कि नवाब पटौदी के बेटे (सैफ अली खान) को दिखाया गया। हम बजरंगी भाईजान जैसी फिल्में पसंद करते हैं जो हमें रुला देती हैं।’

 

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