आर्थिक मंदी से निपटना मोदी सरकार के लिए कड़ी अग्निपरीक्षा

राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ । एक तरफ भले ही मोदी सरकार के रणनीतिकार यह स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि देश में आर्थिक मंदी का खास असर है। लेकिन एक दिन पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस संबंध मंे कई ऐलान कर इस बात को स्वीकार कर लिया कि सरकार आर्थिक मंदी से निपटने का प्रयास कर रही है। लेकिन जीएसटी और नोटबंदी के बाद भारत में जिस तरह की मंदी कारोबार जगत में छायी है उससे निजात मिलती नहीं दिख रही है। इससे निपटना भी मोदी सरकार के लिए पहली अग्निपरीक्षा होगी।
भारत में आर्थिक मंदी का अहसास अब लोगों को तेजी से हो रहा है। लेकिन लोग इसका अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं कि इसके पीछे कारण क्या हैं? आखिर ऐसी स्थिति उत्पन्न क्यों हुई और इसका असर किन-किन सेक्टरों पर होगा। आर्थिक मंदी की वजह से तमाम सेक्टर्स संकट में हैं, जिस कारण छंटनी बढ़ रही है और भर्ती घट रही है।
कुछ सेक्टर में तो संकट काफी गहरा गया है, और अब केवल सरकार की तरफ उम्मीद की नजर से देखा जा रहा है। सरकार को भी इसकी भनक है और प्रोत्साहन पैकेज पर लगातार विचार किया जा रहा है। खुद प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने वित्त मंत्रालय समेत तमाम वित्तीय अधिकारियों के साथ इसको लेकर बैठक की है। देश में मंदी की आहट से लोग इसलिए घबरा गए हैं क्योंकि वैश्विक स्तर पर भी मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। साल 2००8 के वित्तीय संकट के बाद भारत और अन्य कई अर्थव्यवस्थाओं में लगातार बढ़त का रुझान रहा है, लेकिन इसके बावजूद रोजगार और आमदनी में संतोषजनक प्रगति नहीं हुई। सबसे ज्यादा मंदी कहें या फिर आर्थिक सुस्ती रियल एस्टेट, स्टील, टेलीकॉम, ऑटोमोटिव, पावर, बैंकिग सेक्टर में देखने को मिल रही है।

अंधी गली में भारत की अर्थव्यवस्था (भाग-2)

दरअसल मंदी जिम्मेदार कारकों में निजी खपत में गिरावट, निश्चित निवेश में मामूली बढ़ोतरी, रियल एस्टेट सेक्टर बदहाल, ऑटो सेक्टर में हाहाकार, बैंकों के एनपीए में लगातार वृद्धि वगैरह शामिल हैं। अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों में गिरावट के गंभीर संकेत चिताजनक हैं। मांग और पूर्ति के बीच लगातार कम होता अंतर मंदी की ओर संकेत कर रहा है।
कार और बाइक की बिक्री में भारी गिरावट से पिछले 4 महीनों में ऑटोमेकर्स, पार्ट्स मैन्यू फैक्चरर्स और डीलर्स ने 3.5 लाख से ज्यादा कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है। जबकि करीब 1० लाख से ज्यादा नौकरियां खतरे में हैं, यानी इनपर भी छंटनी की तलवार लटकी हुई है। ऑटो इंडस्ट्री में लगातार 9वें महीने गिरावट दर्ज की गई है। ब्रिकी के लिहाज से जुलाई का महीना बीते 18 साल में सबसे खराब रहा। इस दौरान बिक्री में 31 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्बारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2०18-19 में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही, जो बीते 5 सालों में सबसे कम है। वहीं आरबीआई ने वैश्विक सुस्ती को देखते हुए साल 2०19-2० के लिए विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। जबकि साल 2०16-17 में जीडीपी की दर 7.99 प्रतिशत थी। भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़कर सातवें स्थान पर आने के बाद से सरकार के सामने सबसे पहली चुनौती अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की है। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था शिथिल हो रही है। मंदी की आहट से व्यापार जगत में निराशा का माहौल है। निवेश और औद्योगिक उत्पादन घट रहा है। भारतीय शेयर बाजार में भी मंदी का असर दिख रहा है। सेंसेक्स 4० हजार का आंकड़ा छूकर अब फिर 37 हजार पर आकर अटक गया है। अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध की वजह से दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ता जा रहा है। इन दोनों महाशक्तियों के बीच हो रही कारोबारी जंग ने कई छोटे देशों को मुश्किल में डाल दिया है, इससे निवेशकों के साथ ही कंपनियों में भी घबराहट का माहौल दिखाई दे रहा है। यही नहीं, अमेरिका की इन्वेस्टमेंट बैंकिग कंपनी मॉर्गन स्टेनली का कहना है कि अगले 9 महीनों में आर्थिक मंदी आ जाएगी, हालांकि भारत इस मंदी की चपेट से थोड़ा दूर रहेगा।
भारत में आर्थिक मंदी के 4 बड़े कारण
1. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने आर्थिक संकट
को बढ़ाया।
2. डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में 2०
फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई। डॉलर के मुकाबले
भारतीय रुपये ने 7० के आंकड़े को पार कर
लिया है। रुपये की घटती हुई कीमत और
महंगाई बढ़ने से अर्थव्यवस्था में दिक्कतें आई हैं।
3. देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा।
4. आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट से विदेशी
मुद्रा कोष में भी कमी आई।

 

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