उनींदी आखों में योगी नहीं बो पा रहे विकास की आस

राजेश श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने चार माह पूरे कर लिये हैं और आज से पांचवे माह में प्रवेश कर गयी है। कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में ही दिखायी देने लगते हैं। लेकिन शुरू के पांच महीनों में योगी सरकार ने अब तक उत्तर प्रदेश की जनता की उनींदी आखों में विकास का कोई सपना नहीं बोया है।

सपा-बसपा के नेतृत्व से जिस तरह तंग आकर आम आदमी ने बड़ी उम्मीद से भारतीय जनता पार्टी को भारी संख्या में वोट देकर 325 सीटों से जिताया था तो उम्मीद की थी कि वह विकास का ऐसा खाका खींचेगी कि आम आदमी को अच्छे दिनों का एहसास होने लगेगा। पार्कों, मुस्लिमों, तुष्टीकरण, धर्म आदि की राजनीति से ऊपर उठकर योगी सरकार हर वर्ग के लिए रोजगार के नये साधन, बुंदेलखंड की बंजर धरती के लिए कुछ मलहम उपलब्ध करायेगी। पूर्वांचल को इंसेफेलाइटिस सेे मुक्ति मिलेगी, बाढ़ से आम आदमी हर बार की तरह नदियों के कटान से तबाह नहीं होगा। युवाओं को रोजगार के नये साधन सृजित होंगे। महिलाओं को खुली सड़क पर चलने में भय का आतंक नहीं सतायेगा। उप्र में कानून का राज होगा और उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रहेगी।

इन सबकी उम्मीद लोगों में तब और बढ़ गयी थी जब योगी जैसा संत मुख्यमंत्री बना था। लेकिन इन पांच महीने में योगी आदित्यनाथ विकास का कोई नया सोपान नहीं लिख सके। न कोई नया एक्सप्रेस वे, न कोई फैक्ट्री, न कोई कंपनी, न युवाओं के लिए कोई योजना, न शिक्षा पद्धति में कोई सुधार, न निजी स्कूलों के कुचक्र और फीस पर कोई नियंत्रण, न अपराध पर नियंत्रण, न भ्रष्टाचार पर अंकुश, न ही महिला उत्पीड़न के मामलों में कमी। योगी सरकार ने शुरू के एक-दो महीने में जो तेजी दिखायी वह भी जांच, जांच और सिर्फ जांच तक ही सीमित रही। और तो और गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में जो हुआ और उस पर सरकार का जो रवैया दिखा और लीपापोती। उससे साफ है कि सरकार ने इस मामले में भी सही तरीका नहीं दिखाया।

सिर्फ यही नहीं, योगी सरकार ने विकास का कोई खाका तो नहीं खींचा बल्कि उन्हीं बातों में सूबे की जनता को उलझाने का प्रयास कर रही है जिससे उप्र का कोई भला नहीं होने वाला है। मसलन, नमाज, जन्माष्टमी, शिव की कांवड़ यात्रा, हिंदू-मुस्लिम। आखिर इन सबसे किस का भला होने वाला है। हो सकता है कि चुनाव के दौरान यही सब भारतीय जनता पार्टी के तरकश के तीर रहे हों लेकिन पार्टी और नेताओं को सोचना चाहिए कि अब चुनाव खत्म हो गया है और जनता को अब चुनावी जुमलों की आवश्यकता नहीं। जनता को जरूरत है विकास, विकास और सिर्फ विकास की। अब सरकार के रणनीतिकारों को तय करना होगा कि वह अब जुमलों के बजाय हकीकत पर अमल करना शुरू करें। क्योंकि छह महीने तक भले ही कोई कुछ न बोले लेकिन एक महीने बाद विपक्षी दल और आम जनता पूछेगी कि उसके लिए सीएम और उप्र सरकार ने क्या किया। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह कुछ ऐसा करे कि आम आदमी को अच्छे दिनों की आहट सुनायी देने लगे।

 

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