कहीं यह योगी की इमेज को बिगाड़ने की साजिश तो नहीं…

राजेश श्रीवास्तव
इन दिनों उत्तर प्रदेश में जिस तरह से कानून-व्यवस्था ध्वस्त है। भ्रष्टाचार चरम पर है । खुल कर तबादला उद्योग फल-फूल रहा है। सांसद और विधायक खुल कर अपने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से योगी सरकार के मंत्रियों की शिकायत कर रहे हैं। वह यह भी कह रहे हैं कि अधिकारी उनकी सुन नहीं रहे हैं। मंत्रियों की जिलाधिकारी नहीं सुन रहे हैं। पुलिस कप्तान नहीं सुन रहे हैं। मंत्रियों के गनर और नौकर दुराचार के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार हो रहे हैं। मंत्रियों पर खुलेआम भ्रष्टाचार के आरोप हैं।

महंगाई चरम पर है। यह सब मात्र योगी सरकार की 125 दिन की सरकार के अंदर के परिणाम हैं। इस सब के पीछे सीध्ो तौर पर तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही जिम्मेदार न हों लेकिन सरकार का मुखिया होने के नाते उनकी नैतिक जिम्मेदारी तो बनती ही है।
भारी बहुमत की उप्र सरकार गठित होने के बाद जब मुख्यमंत्री के लिए योगी आदित्यनाथ का नाम सामने आया था तो लोगों को लगने लगा था कि अब उप्र में राम राज्य का सपना शायद चरितार्थ हो जाए।

क्योंकि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अपने कड़क स्वभाव और ईमानदार छवि के लिए शुरू से ही जाने जाते रहे हैं। उन्होंने अपने इन्हीं तेवरों का परिचय भी शुरू में एक महीने तक दिया। इसका ही नतीजा था कि योगी आदित्यनाथ लगभग हर चैनलों की सुर्खियां बने रहे। हम समाचार पत्र योगी की तारीफ करते नहीं अघा रहा था। लेकिन बीते दो महीने का सरकार का ग्राफ देख्ों तो तेजी से गिरा है। खुद राज्यपाल राम नाईक को कहना पड़ा है कि कानून-व्यवस्था में सुधार की जरूरत है।

मुख्यमंत्री भी कह रहे हैं कि अपराधियों पर पुलिस का इकबाल कम हुआ है। डीजीपी सुलखान सिंह कह रहे हैं कि यूपी से कानून-व्यवस्था खत्म नहीं की जा सकती। इसका मतलब साफ है कि सब लाचार हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इसके पीछे सोची-समझी साजिश है। कुछ लोग शुरू से ही योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थ्ो। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ के चलते लोगों ने खामोशी ओढè रखी थी। अब अगर इसी तरह का रवैया रहा तो साफ है कि संदेश यही जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार पर पकड़ ढीली हुई है।

वह भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था दोनों पर संतुलन साधने में फिट नहीं बैठ पा रहे हैं। अब सवाल यह है कि आखिर यह कौन से लोग हैं जो सरकार की छवि बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं और सरकार है कि मूकदर्शक बनी हुई है। पिछले दिनों रिपोर्ट आई थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योगी सरकार के कुछ मंत्रियों की गुपचुप जांच करा रहे हैं। तकरीबन आधा दर्जन ऐसे मंत्री हैं जिन पर आरोप मढ़े जा रहे हैं। हालांकि अभी सरकार अपना बेसिक छह महीने का कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी है।

ऐसे में अभी उसे पूरी तरह फेल नहीं माना जा सकता। लेकिन कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में ही दिखायी देने लगते हैं। अगर इस कहावत पर अमल किया जाए तो योगी सरकार के शुरुआती 125 दिन सूबे के आम आदमी के लिए बिल्कुल अच्छे दिन नहीं साबित हो रहे हैं। तबादला उद्योग का आलम यह है कि सुबह तबादला होता है और शाम को निरस्त हो जाता है। सरकार ने आनन-फानन में जिस तरह से सरकारी वकीलों की सूची जारी कर दी। इस मामले में भी अदालत की कड़ी फटकार ने सरकार की भद पिटवायी।

क्या यह सब अचानक घटी हुई चूक हैं। ऐसा नहीं है, और अगर है भी तो भी वह कप्तान होने के नाते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ही जिम्मेदारी है कि वह सरकार के हर फैसले पर नजर रख्ों और फूक-फूक कर कदम रख्ों नहीं तो योगी की छवि को बिगड़ने में देर नहीं लगेगी। अब योगी के कंधों पर अपनी और सरकार दोनों की छवि को बेदाग बनाये रखने की बड़ी जिम्मेदारी है। देखना होगा कि वह किस तरह इसे बनाये रखते हैं।

 

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