कानून मंत्री कपिल मिश्रा की कुर्सी क्यों गई?

नई दिल्ली। पहले सोमनाथ भारती, फिर जीतेन्द्र सिंह तोमर और अब कपिल मिश्रा. दिल्ली के ये तीन विधायक भले ही अलग अलग विधान सभा से आतें हो, लेकिन एक बात सब में सामान है. तीनों को कानून मंत्रालय रास नहीं आया.
दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जीतेन्द्र सिंह तोमर को जब फ़र्ज़ी डिग्री मामले में पुलिस ने गिरफ्तार किया था और आम आदमी पार्टी ने उनसे उनका इस्तीफा मांग लिया था. तभी से ये सवाल उठने लगे थे कि दिल्ली का कानून मंत्रालय श्रापित मंत्रालय है. आज इस मंत्रालय से आप पार्टी के करावल नगर के विधायक कपिल मिश्रा की छुट्टी इसी बात को और पुख्ता करती है.
बड़े कैनवास पर इस सवाल को देखें तो क्या दिल्ली में अब अगली बदली डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की होने वाली है. या फिर इस विभाग को श्राप से बचाने के लिए अरविन्द केजरीवाल ने ये कानून मंत्रालय अपने चहेते मंत्री मनीष सिसोदिया के हवाले क्या है. कपिल मिश्रा को दिल्ली के पर्यटन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है.
दिल्ली में कानून मंत्रालय का विभाग केजरीवाल सरकार के पहले इतना महत्वपूर्ण नहीं होता था. लेकिन आप पार्टी में ये विभाग इसलिए अहम् है क्योंकि कानून का हवाला देकर अरविन्द केजरीवाल और उपराज्यपाल आपस में भीड़े रहते हैं. जीतेन्द्र सिंह तोमर के हाथ से मंत्रालय छीनने के बाद कपिल मिश्रा को चुना गया. लेकिन उनकी भी छुट्टी हो गयी. ये अचानक लिया गया फैसला नहीं है. साफ है पार्टी में उनके लिए सब ठीक नहीं.

कपिल मिश्रा ने चिट्ठी में क्या लिखा
इस चिट्टी में सबसे अहम बात लिखी थी, ”इस रिपोर्ट के बाद मुझे मंत्रालय से हटाने की कोशिश भी होगी. लेकिन मैं राजघाट हो कर आया हूं और बिना किसी भय के इस रिपोर्ट को आपको भेज रहा हूं. इतना ही नहीं ये भी साफ किया कि जिस दिन से आम आदमी पार्टी ज्वाइन की है, कई लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में नौकरी गवांते देखा है. मुझे इसका डर नहीं.” साफ है कि कपिल मिश्रा को इस बात की भनक थी की उनकी छुट्टी होने वाली है.

कपिल की छुट्टी के तार बिहार चुनाव से जुड़ रहे हैं- सूत्र
सूत्र बताते हैं कि करावल नगर के विधायक की छुट्टी को बिहार के परिपेक्ष में जोड़ कर देखना होगा. बिहार में केजरीवाल और नीतिश साथ साथ है. कल ही सोनिया गांधी भी नितीश के साथ दिखीं थीं. ऐसे में शीला पर तुरंत कार्यवाई, विपक्षियों को बोलने का मौका दे सकती है.
इसलिए पार्टी ने कार्रवाई खुद के मंत्री पर ही कर दी. संकेत या बात कि जब मंत्री ही नहीं रहे तो उनके सिफारिश पर अमल कैसा. तो अरविन्द पर भी शीला दीक्षित पर कार्यवाई करने का कोई वैचारिक दवाब नहीं होगा.
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