कोर्ट का पटाखों पर बैन, सरदाना ने पूछा- दिवाली, होली, दुर्गा पूजा पर हिन्दुओ की आजादी कहाँ हैं?

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नई दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक बरकरार रखी है. अब दीवाली से पहले यहां पटाखों की बिक्री नहीं होगी. कोर्ट के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया में कई लोगो ने अपनी नारजगी व्यक्त की है. पत्रकार रोहित सरदाना ने इस फैसले पर अपनी बात रखी है.
 
दिवाली 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पटाखों की बिक्री 1 नवंबर, 2017 से दोबारा शुरू हो सकेगी. इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट देखना चाहता है कि पटाखों के कारण प्रदूषण पर कितना असर पड़ता है. सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री और भंडारण पर रोक लगाने वाले नवंबर 2016 के आदेश को बरकार रखते हुए यह फैसला सुनाया.
न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसले को बरकरार रखते हुए कहा, “हमें कम से कम एक दिवाली पर पटाखे मुक्त त्यौहार मनाकर देखना चाहिए.” अदालत ने कहा कि दिल्ली एवं एनसीआर में पटाखों की बिक्री और भंडारण पर प्रतिबंध हटाने का 12 सितंबर 2017 का आदेश एक नवंबर से दोबारा लागू होगा यानी एक नवंबर से दोबारा पटाखे बिक सकेंगे.
 
कोर्ट के आदेश के बाद रोहित सरदाना ने फेसबुक पर लिखा, ”दीपावली आ गयी है. अदालत का आदेश भी आ गया है. दिल्ली और आस पास पटाखे नहीं बिकेंगे. प्रदूषण होता है. होता ही है, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन प्रदूषण तो डीज़ल वाली गाड़ियों से भी होता है! जिनपे रोक लगाने की कोई भी मुहिम कार लॉबी के दबाव में दम तोड़ जाती है.
न्याय की देवी की आँख पे पट्टी बंधी रहती है. उसे कुछ दिखायी नहीं देता. लिहाज़ा फ़ैसला तर्कों और सुनी गयी दलीलों के आधार पे होता है. लेकिन जल्लीकट्टू के घायल बैलों की चीख़ पुकार सुन लेने वाली देवी, बक़रीद पे बलि चढ़ने वाले बकरों की करूण पुकार क्यों नहीं सुन पाती? दलीलों को तराज़ू पे तौलने वाली इंसाफ़ की देवी को दही हांडी के उत्सव में बच्चों को लगने वाली चोट तो महसूस होती है, लेकिन मुहर्रम के जुलूसों में ख़ून बहाते लोगों पे उसका दिल क्यों नहीं पसीजता ?
 
होली आते ही पानी बर्बाद ना करने की क़समें देने वाले लोग आइपीएल के मैच तो चाव से देख आते हैं जिसके चौव्वन मैच हरी घास पे खेले जाएँ इसके लिए अरबों लीटर पानी बहा दिया जाता है.
 
देश में कहीं दुर्गा पूजा मनाने के लिए अदालत से दख़ल माँगना पड़ रहा है. कहीं सरस्वती पूजा मनाने के लिए. ऐसे में लोग ये सवाल तो पूछेंगे ही कि संविधान ने तो सबको अपना अपना धर्म मानने और तीज त्यौहार मनाने की छूट दी थी, हमारी आज़ादी कहाँ है?”
 

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