क्या अब केंद्रीय सूचना आयोग भी ‘तोते’ की राह पर चल रहा है ! 4 महीने में 40% आवेदन लौटाए

नई दिल्ली। देश में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में बना तो सरकार और जनता के बीच पारदर्शिता की संभावनाएं बढ़ी। आरटीआई से मध्यप्रदेश के व्यापम जैसे कई बड़े घोटाले भी सामने आये। एक दिन पहले ही रेलवे में आरटीआई के जरिये एक बड़े घोटाले की बात भी सामने आयी है। आरटीआई के साथ केंद्रीय सूचना आयोग का भी गठन किया गया। जिसको लेकर यह कहा गया कि  कोई आवेदक किसी सरकारी विभाग या मंत्रालय से मांगी गई सूचनाओं से संतुष्ट नहीं है या उसे सूचनाएं नहीं दी गईं हैं तो अब उसे केन्द्रीय सूचना आयोग के कार्यालय में भटकने की जरूरत नहीं है। अब वह सीधे सीआईसी में ऑनलाइन अपील या शिकायत कर सकता है।

पहले सीआईसी और अब लोकपाल की नियुक्ति को लेकर भी केंद्र सरकार सवालों के घेरे में है। लोकपाल कानून संसद के दोनों सदनों से पास हो गया है और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी भी दे दी है। लेकिन अभी तक नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। पिछले दिनों जब सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में पूछा तो सरकार ने कहा कि लोकसभा में कोई नेता विपक्ष नहीं है इसलिए लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो रही है।

वर्तमान सरकारी विभागों से सूचना न मिलने के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। वर्तमान में औसतन 33 हजार मामले लंबित हैं। एक रिपोर्ट की माने तो साल 2017 के पहले कगार महीने में सीआईसी ने 19152 केसों में से 7268 को वापस भेज दिया।

यह मामले लगभग 40 फीसदी हैं। कमीशन ने अप्रैल में 2776 केसों के मुकाबले 4019 केस लौटा दिए। सीवीआई की वेबसाइट कहती है कि उसने अप्रैल में 58 प्रतिशत मामले लौटा दिए। इसको लेकर आरटीआई कार्यकर्ता नाराज हैं। उनका कहना है कि सीवीसी लंबित मामले निपटाने के लिए ऐसा कर रहा है। हालाँकि कमीशन का कहना है कि वह पूरे दस्तावेजों न देने पर ही ऐसा कर रहा है।

आरटीआई कार्यकर्ता सरकार द्वारा आरटीआई के नियमों में बदलाव से भी नाराज हैं। गौरतलब है कि नए नियमो में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपील करने के लिखित अनुरोध कहने पर किसी अपील को खत्म कर सके। साथ ही कोई भी लंबित अपील प्रक्रिया अपील करने वाले के मरने पर समाप्त हो जाएगा आरटीआई कार्यकर्ताओं को लगता है कि इससे सूचना मांगने वालों पर दबाव बढ़ेगा और उन्हें अधिक धमकियां भी मिलेंगी।

 

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