‘गोधरा कांड के बाद भी मोदी के फैन थे नीतीश’

nitish-and-modiपटना। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर नीतीश कुमार के नाराज दोस्त ने उनकी राजनीति के तीन पड़ाव बताये हैं। साल 2004 में नीतीश केंद्रीय रेलवे मंत्रालय का ऑफिस छोड़ने के बाद पटना में अपने करीबी दोस्त और हिन्दी साहित्यकार प्रेम कुमार मणि के आवास एनडीए की हार को लेकर मीटिंग कर रहे थे। प्रेम कुमार समता पार्टी के वक्त से ही नीतीश कुमार के साथ थे। मीटिंग के दौरान नीतीश से मणि ने कहा कि गोधरा दंगे के कारण शायद अटल बिहारी वाजपेयी का इंडिया शाइनिंग कैंपेन औंधे मुंह गिरा। इस बात पर नीतीश कुमार ने तगड़ी असहमति दर्ज कराई। नीतीश ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी बीजेपी में उभरता हुआ चेहरा हैं। वह घांची जाति के हैं और ओबीसी हैं। वह बहुत कड़ी मेहनत करते हैं। वह बीजेपी में ब्राह्मण लॉबी की उपेक्षा के शिकार हुए हैं। मोदी के साथ ऐसा अटल बिहारी वाजपेयी ने भी किया है। कुछ समय पहले ही मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद से मैं उनका फैन हो गया हूं।’

2010 में रात्रि भोज का कैंसल होना: उस वक्त प्रेम कुमार मणि जेडीयू विधायक थे। डिनर कैंसल करने के फैसले पर मणि ने नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में उन्होंने नीतीश को कहा कि आप ऐसा करके बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। इस मसले को लेकर मणि ने फिर नीतीश कुमार से मुलाकात की। मिलने के बाद नीतीश से मणि ने कहा कि यदि वाजपेयी करगिल युद्ध के बाद भी मुशर्रफ की शानदार मेहमाननवाजी कर सकते हैं तो आप डिनर कैंसल क्यों कर रहे हैं। तब जेडीयू ने डिनर कैंसल कर दिया था। इसके साथ ही नीतीश ने गुजरात की तरफ से बिहार में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए भेजी गई 6 करोड़ की राशि भी लौटा दी थी। मणि की दो टूक से नीतीश कुमार नाराज हो गए। इसके बाद से नीतीश कुमार मणि से दूरी बनाने लगे। बाद में नीतीश ने प्रेम कुमार मणि को विधान परिषद से हटा दिया। तब मणि की विधानपरिषद की सदस्यता 8 महीने बची थी।

2015: प्रेम कुमार मणि का कहना है कि जहां तक मैं नीतीश को जानता हूं इस आधार पर मजबूती से कह सकता हूं कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ नीतीश ने इसलिए झंडा उठाया क्योंकि वह खुद को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। इस रेस में वह मोदी को पीछे छोड़ना चाहते थे। यदि नीतीश एनडीए का साथ नहीं छोड़ते तो जेडीयू के पास 22 से 25 लोकसभा सांसद होते। नीतीश ने ऐसा केवल अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए किया। यदि नीतीश एनडीए में रहकर मोदी को कंट्रोल करते तो ज्यादा प्रभावी होता। विधानसभा चुनाव में नीतीश ने मोदी विरोधी गठबंधन तैयार किया है। इस बार नीतीश ने मोदी के खिलाफ नया कार्ड खेला है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने नीतीश के खिलाफ पांच कार्ड खेले थे। इनमें- विकास, जाति(सामाजिक न्याय) कार्ड, मोदी की ओबीसी जाति, युवा और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कार्ड थे। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ये सारे कार्ड कामयाब रहे। ठीक उन्हीं कार्डों को नीतीश बिहार विधानसभा चुवाव में खेलने जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि नीतीश खुद से पूछ रहे हैं कि मोदी के कितने कार्ड मेरे कार्ड से मिल रहे हैं। कार्ड खेलने की शुरुआत नीतीश ने प्रफेशनल पब्लिशिटी मैन प्रशांत किशोर की नियुक्ति से की। खुद को विकास के प्रतीक के रूप में पेश कर दूसरा कार्ड खेल रहे हैं। लालू को साथ लेकर उन्होंने जातियों को साधने का कार्ड खेला है। इसके साथ ही कांग्रेस को साथ लेकर नीतीश ने सेक्युलरिजम का कार्ड खेला है ताकि मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हो।

नोट: यह स्टोरी इंडियन एक्सप्रेस के अस्सिटेंट एडिटर संतोष सिंह की नई किताब ‘Ruled or Misruled: The story and Destiney of Bihar’से है।

 

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