ग्रीस की ‘नो’ के हो सकते हैं ये परिणाम

तहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली। रविवार को हुए जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ के आगे ग्रीस ने हथियार नहीं डाले। ग्रीस की जनता ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव को नहीं स्वीकार किया और इसके विरोध में वोटिंग की। जनमत संग्रह के परिणाम, सरकारी खर्चों में कटौती की धुर विरोधी पार्टी सिरिजा और उसके पीएम अलेक्सिस सिप्रास के लिए बड़ी जीत माने जा रहे हैं। यूरोपीय देशों के दबाव को नजरंदाज कर कर्जदाताओं की मांगें खारिज करने की अपील जनता से की गई थी। आइये जानते हैं ग्रीस इस संकट में क्यों फंसा और बाकी दुनिया, भारत और ग्रीस पर खुद इसका क्या असर पड़ेगा।
क्यों संकट में फंसा ग्रीस?
1999 में ग्रीस में भारी विनाशकारी भूकंप आया था। इस भूकंप में देश का ज्यादातर हिस्सा तबाह हो गया था और लगभग 50,000 इमारतों का पुनर्निर्माण करना पड़ा था। यह सारा काम सरकारी धन खर्च करके किया गया। ग्रीस के संकट में फंसने की शुरुआत यहीं से हुई। यूरो जोन से जुड़ना भी ग्रीस की भारी भूल मानी जा रही है। हालांकि ग्रीस यूरो जोन से जुड़ने वाला पहला देश नहीं था, लेकिन उसने 2001 में ऐसा किया। यूरो जोन में आने से उसे कर्ज मिलने में आसानी होने वाली थी। लेकिन उसका यह फैसला उसके लिए भारी पड़ता दिख रहा है। 2004 के ओलिंपिक खेलों के लिए ग्रीस ने यूरो जोन से बड़ी मात्रा में कर्ज लिया था। ऐसा कहा जाता है कि सरकार ने ओलिंपिक के सफल आयोजन के लिए अनापशनाप खर्च किया, जिसके कारण मौजूदा संकट पैदा हुआ है। ओलिंपिक के लिए सिर्फ सात साल के दौरान ही लगभग 12 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए गए। ग्रीस का राजकोषीय घाटा बहुत ज्यादा बढ़ गया था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने खातों में हेराफेरी करके आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था। 2009 में सत्ता में आयी नई सरकार ने इसका खुलासा किया। एथेंस ओलिंपिक के समापन के कुछ महीनों के भीतर ही यूरो जोन को यह सच्चाई मालूम चल गई कि ग्रीस सरकार ने अपने खातों में हेरफेर की थी। यूरो जोन के सदस्यों को 2004 से ही उस पर शक था। आंकड़ों में हेराफेरी की बात सामने आने के कारण ग्रीस पर भरोसे का संकट पैदा हो गया, इसके चलते इस संकटग्रस्त देश को कर्ज देने वाले देशों की संख्या काफी कम हो गई। इस दौरान यहां ब्याज दरें 30 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। मई 2010 में यूरो जोन, यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने ग्रीस को डिफॉल्ट से बचाने के लिए 10 अरब यूरो का राहत पैकेज दिया। यही नहीं जून 2013 तक उसकी वित्तीय जरूरतें भी पूरी कीं। ग्रीस के सामने सुधारों को लागू करने की शर्तें भी रखी गई थीं। सख्त आर्थिक सुधारों को देखते हुए उसे दूसरा राहत पैकेज दिया गया। ग्रीस को दूसरे मौके में 130 अरब यूरो का पैकेज दिया गया। इसके साथ भी सुधारों की शर्तें जुड़ी हुई थीं भारी सुस्ती और राहत पैकेज की शर्तों को लागू करने में देरी के कारण दिसंबर, 2012 में ऋणदाता आखिरी चरण में कर्ज राहत देने को राजी हो गए। आईएमएफ ने भी उसे सहयोग दिया और जनवरी 2015 से मार्च 2016 तक ग्रीस को 8.2 अरब यूरो का कर्ज सहयोग मिला।अभी ग्रीस की अर्थव्यवस्था कुछ रफ्तार पकड़ ही रही थी कि संसदीय चुनाव के बाद वामपंथी सिरिजा पार्टी इन वादों के साथ सत्ता में आ गई कि सरकार बनते ही बेलआउट की शर्तों को ठुकरा दिया जाएगा। इससे जनता की मुश्किलें और बढ़ गईं। यूरो जोन के देशों ने एक बार फिर ग्रीस को राहत देते हुए टेक्निकल एक्सटेंशन दिया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। यहीं से यूरोपीय संघ के खिलाफ ग्रीस में माहौल बना।
ग्रीस पर क्या होगा असर?
अब जब ग्रीस में लोग ने यूरोजोन से बाहर निकलने के लिए मतदान कर दिया है तो देश का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंस सकता है। ग्रीस की लोकप्रिय न्यूज वेबसाइट एकाथिमेरिनी के मुताबिक सिकंदर के इस देश में इन दिनों ताजे मीट, मछली और अन्य सामग्रियों की किल्लत देखने को मिल रही है। जनमत संग्रह का ऐलान किए जाने के बाद से ग्रीस में खाद्य सामग्री की खरीद 35 फीसदी बढ़ गई है। यही नहीं आने वाले दिनों में पास्ता, चावल और बींस जैसी चीजों की भी कमी हो सकती है। मुसीबत इसलिए भी बड़ी हो गई है, क्योंकि निर्यातकों में भी डर का माहौल है वह ग्रीस के लिए सप्लाई कम कर रहे हैं। गार्जियन की रिपोर्ट में ग्रीस के नेशनल कनफेडरेशन ऑफ हेलेनिक कॉमर्स के मुखिया वासिलिस कोरकिदिस के हवाले से कहा गया है कि पूरे देश में इन दिनों आयात, निर्यात, फैक्टरी, फर्म और ट्रांसपोर्ट समेत पूरा कारोबार ही ठप पड़ा है।
भारत पर असर?
सोमवार को उद्योग एवं सरकारी अधिकारियों ने चेताया, ग्रीस जबर्दस्त आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, इस कारण भारत के सॉफ्टवेयर और इंजिनियरिंग एक्सपोर्ट पर बुरा असर पड़ सकता है। भारतीय कंपनियों के इंजिनियरिंग प्रॉडक्ट की सबसे बड़ा मार्केट यूरोपीय यूनियन है। ग्रीस संकट के बाद इंजिनियरिंग एक्सपोर्ट पर असर पड़ेगा।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि फाइनैंशल मार्केट में अस्थायी उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे। अगर ग्रीस बाहर निकलता है तो रुपये में गिरावट आ सकती है। स्टॉक मार्केट्स में भारी गिरावट ग्रीस चिंता के कारण सोमवार को भारत के स्टॉक मार्केट में 2.2 फीसदी गिरावट आई। बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी करीब ढाई सप्ताह के अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है।
दुनिया पर असर
ग्रीस की ‘नो’ के बाद दुनिया भर के बाजार में उथल-पुथल मच सकती है। ग्रीस संकट का खामियाजा ग्रीस जाने वाले पर्यटकों और इससे जुड़ी कंपनियों पर असर पड़ सकता है। ग्रीस के यूरोजोन से निकल जाने के बाद अब वहां भुगतान ग्रीस की मुद्रा में ही किया जा सकेगा। दूसरी तरफ ग्रीस से जिन देशों का व्यापार था, उनको भी इसका सामना करना पड़ सकता है।
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