जनता की गाढ़ी कमाई के 189 करोड़ हो गये पानी-पानी राष्ट्रपति की अपील और आडवाणी का दर्द भी नहीं चला सका संसद

rajeshराजेश श्रीवास्तव
मोदी सरकार की नोटबंदी की अपील केवल जनता पर ही नहीं भारी पड़ी बल्कि समूचे देश को भारी पड़ रही है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक-एक व्यक्ति से एक-एक पायी निकलवाने की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ जनता की गाढ़ी कमाई के 189 करोड़ रुपये जाया हो गये। यही भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी तो सदन के सुचारू रूप से न चलाने पर सरकार की आलोचना करने से नहीं चूकती थी लेकिन जब भाजपा सत्ता में है तो संसद के दोनों सदनों का 21 दिन लंबा चला शीतकालीन सत्र बिना किसी चर्चा के समाप्त हो गया। खानापूर्ति के लिये अंतिम दिन शुक्रवार को कराधान संशोधन बिल और निशक्त व्यक्ति अधिकार बिल पारित कर दिया गया।

गौरतलब है कि सदन के एक दिन का खर्च तकरीबन नौ करोड़ रुपये आता है। संसद के इस भारी भरकम खर्च पर चर्चा तो एक दूसरा पहलू है इसे कम करने पर सरकार और विपक्ष कभी प्रयास नहीं करते। लेकिन इस पर भी विचार नहीं करते कि जनता की गाढ़ी कमाई के यह पैसे का सदुपयोग हो सके। पिछले 21 दिन से संसद के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में कोई काम नहीं हुआ। दिलचस्प तो यह है कि नोटबंदी के जिस मुद्दे पर देश में त्राहि-त्राहि मची है। उस मुद्दे पर भी सदन के दोनों सदनों के कोई भी सदस्य अपनी बात नहीं रख सके। चर्चा पूरी नहीं कर सके। इतनी ही नहीं, प्रधानमंत्री को बुलाने की मांग पर विपक्ष ने खूब हंगामा काटा। लेकिन प्रधानमंत्री ने सदन में आने के बजाय जनसभा में अपनी बात रखी और कहा कि सदन में विपक्ष अपनी बात कहने का मौका नहीं दे रहा। वहीं विपक्ष व कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी कहा कि संसद में उन्हें अपनी बात रखने नहीं दी जा रही । जो बातें सदन में होनी चाहिए थीं वह देश की सड़कों, जनसभाओं और प्रेसवार्ता में की जा रही थीं। देश की आम जनता को उम्मीद थी कि नोटबंदी के फायदे व नुकसान के बारे में उनके चुने गये प्रतिनिधि चर्चा करेंगे और उनको हो रही समस्याओं से निजात मिलने के कुछ उपाय शायद खोजे जा सकेंगे, हालांकि जिसकी उम्मीद उन्हें पहले से ही बेहद कम थी।
दुखद पहलू तो यह रहा कि संसद की शीतकालीन सत्र इस लिहाज से भी याद किया जायेगा कि पहली बार किसी सत्र को चलाने की अपील राष्ट्रपति ने की। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आप लोग भगवान के लिए संसद चलने दें। यहीं तक रहता तो भी ठीक था। सतारूढ़ दल के मार्गदर्शक मंडल में शुमार लालकृष्ण आडवाणी ने तो यहां तक कह डाला कि मेरा मन कर रहा है कि इस्तीफा दे दूं। यह दोनों टिप्पणियां संसदीय इतिहास में लंबे समय तक याद की जायेंगी। उधर भाजपा को नोटबंदी का दंश भी सता रहा है। भाजपा से जुड़े संगठनों राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद ने हाईकमान को जो खुफिया रिपोर्ट सौंपी है उसमें साफ कहा गया है कि नोटबंदी से पहले जो जनता खुश थी अब उसमें नाराजगी है। समस्याओं का निदान एक महीने बाद भी न होने से अब लोगों में भाजपा के प्रति आक्रोश है। इसलिए अगर चुनाव कुछ दिनों के लिए बढ़ा दिये जायें तो बेहतर होगा। अगर चुनाव इस समय हुआ तो पार्टी को नुकसान होगा।

 

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