जनता चतुर सुजान, निकाय चुनाव में भाजपा का टिकट जीत की गारंटी

राजेश श्रीवास्तव 

इन दिनों सूबे में नगर निकाय चुनाव को लेकर सरगर्मियों तेज हैं। सत्ता दल के साथ ही विपक्षी ख्ोमे में भी चहलकदमी तेज हो गयी है। यह पहली बार है कि सभी राजनीतिक दल अपने-अपने चुनाव चिन्ह पर प्रत्याशियों को चुनाव लड़ा रहे हैं। सपा-बसपा अभी तक सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ते थ्ो। लेकिन इस बार सत्ता पक्ष को अपनी ताकत दिखाने या यूं कहें कि अपनी ताकत जांचने के लिए सिंबल पर चुनाव में ताकत झोंकने जा रहे हैं। और तो और आम आदमी पार्टी जिसका यूपी में कोई जनाधार नहीं हैं, उसने भी ताल ठोंक रखी है।

उधर सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती। भाजपा मुख्यालय में हर दिन निकाय चुनाव को लेकर बैठकों का दौर जारी है। लेकिन जनता का मूड तो साफ बता रहा है कि निकाय चुनाव में नगर निगम हों या नगर पालिका परिषद सभी जगह भाजपा का ही परचम लहरायेगा। इसके पीछे कारण साफ है कि दरअसल अब जनता बहुत समझदार हो गयी है। पिछले दस वर्षों से अगर लखनऊ का ही आंकलन करें तो लखनऊ के महापौर रहे और अब डिप्टी सीएम डा. दिनेश शर्मा महापौर रहते हुए कभी विकास की गंगा नहीं बहा पाये।

उनके अधिकारों पर हमेशा सपा और बसपा सरकार की कैंची चलती रही। वह भी हमेशा यही कहकर बच लिया करते थ्ो कि क्या करें सरकार अपनी है नहीं। एक बार तो यहां तक कहा था कि क्या करूं नगर आयुक्त तक मेरी नहीं सुनते। ऐसे में साफ है कि जब सरकार विरोधी हो तो महापौर लाचार हो जाता है तो पार्षदों की कौन बिसात। जनता का मूड यही बता रहा है कि वह अपने क्ष्ोत्र में अगले पांच साल के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहती।

उसे पता है कि जब सांसद और विधायक भाजपा को है और पार्षद या महापौर अगर किसी अन्य दल का आ गया तो उसके लिए कम सिरदर्द नहीं होगा। इसीलिए भाजपा के प्रत्याशियों के लिए यह चुनाव बहुत मुफीद नजर आ रहा है। पिछले तीन चार बार से लगातार हार रहे भाजपा प्रत्याशी भी इस बार ताल ठोंकने के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। ऐसे-ऐसे गढ़ जहां भाजपा का वोट बैंक भी नहीं हैं वहां पर भी भाजपा से टिकट चाहने वाले उत्साहित हैं।

उन्हें लगता है कि सरकार का लाभ उन्हें जरूर मिलेगा। दरअसल एंटी कंबेंसी का असर निकाय चुनाव पर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह शहरी सरकार का चुनाव है। जहां सरकार प्रभावित करती ही है। यही कारण है कि महापौर का टिकट हो या पार्षद का। एक-एक सीट के लिए दो से तीन दर्जन प्रत्याशियों ने आवेदन कर रखा है। एक सज्जन बेहद दिलचस्प तथ्य बताते हुए कहते हैं कि यदि भाजपा प्रत्याशी जीता तो कम से कम क्ष्ोत्र में साफ-सफाई तो होती रहेगी क्योंकि भाजपा स्वच्छता अभियान चला रही है। हमें पार्षद से इसके अलावा क्या काम। इसीलिए प्रत्याशी भी यह मान कर चल रहे हैं कि किसी तरह से यदि उनके हाथ भाजपा का टिकट लग जाए तो उनकी राह आसान हो जाएगी।

यह स्थिति अकेले लखनऊ की नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की है। दरअसल जनता जनार्दन जानती है कि विधायक और सांसद पार्षद के समर्थक दल का ही होगा तो उसके क्ष्ोत्र में विकास की गंगा-जमुना बहने से कोई नहीं रोक सकेगा, नहीं तो उसके क्ष्ोत्र को पांच साल के मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। अब इसे भाजपा भले ही अपनी रणनीतिक सफलता माने या फिर समय का असर। लेकिन उसे निकाय चुनाव में बहुत अधिक मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। भाजपा के रणनीतिकार भी मानते हैं कि पार्टी का टिकट लेने वालों की कतार बहुत लंबी है। लेकिन वह ठोक-बजाकर ही चुनाव में प्रत्याशी का चयन करेंगे क्योंकि अगर सफलता नहीं मिलेगी तो संदेश अच्छा नहीं जायेगा।

 

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