जानिए हवस का शिकार बनी औरतों की आपबीती !!!! (नारी ब्यथा पर विशेष )

उसका रोना, चिल्लाना उसका तड़पना, कुछ भी उस पर असर नहीं कर रहा था. वो तो बस अपनी हवस को पूरा करने में लगा हुआ था. जैसे वो उसके रोज के काम में शामिल हो और उसके बाद उसने वो किया जो सोच कर भी रूह कांप जाए. उसने उसके छोटे-छोटे टुकड़े किए और फिर बोरे में भर के दूर फेंक दिया.

मीडिया ने इस खबर को खूब उछाला, लोगों ने भी जम कर नारेबाजी की, पर इसका कोई असर नहीं हुआ. क्योंकि किसी ने भी उस बच्ची के दर्द को नहीं समझा, उसे महसूस नहीं किया. नतीजा यह हुआ है कि वो दरिंदा आज भी खुलेआम घूम रहा है. ऐसी कई कहानियां आपको रोज पढ़ने को मिलेंगी. पर क्या आपको अंदाजा भी है कि ऐसी दर्दनाक कहानियों के पीड़ित को कितना दर्द होता होगा? इससे उसका वर्तमान ही नहीं भविष्य भी बरबाद हो जाता है लेकिन समाज को इससे कोई मतलब नहीं है.समाज तो बस हर बात के लिए नारी को ही दोष देता आया है और शायद हमेशा देता भी रहेगा. हर नियम, हर कानून को बस नारियों पर ही लागू किया जाता है, जैसे पुरुषों को तो आजाद रहने का वरदान मिला हो. पुरुष प्रधान समाज हमेशा यह जिद क्यों करता है कि जो उसे पसंद आ जाए वो किसी भी कीमत पर उसकी होनी चाहिए, फिर चाहे वह कोई स्त्री हो या फिर वस्तु? उन्हें यह हक किसने दिया कि वो तय करे कि जो महिला उसकी नहीं हुई वो किसी और की भी नहीं होगी? समाज में महिलाओं की स्थिति ऐसी है कि हर पुरुष उसे अपनी जागीर समझता है. महिलाओं को तो छोड़िए अब तो ये बच्चियों को भी अपना शिकार बनाया जाने लगा है. कितना आसान है पुरुषों के लिए किसी को भी अपने हवस का शिकार बनाना. लेकिन जरा सोचिए कितना दर्दनाक है किसी भी औरत या बच्ची के लिए किसी के हवस का शिकार बनना !!! क्यों आज पुरुष समाज में हवस की चाहत इतनी बढ़ गई है कि वो न उम्र देखते हैं, न जगह. घर हो या मन्दिर कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहां पुरुषों ने अपने हवस का प्रदर्शन नहीं किया हो.अभी खाप पंचायत काफी चर्चा में हैं कि वो महिलाओं की आजादी पर पाबंदी लगा रही हैं. महिलाएं जींस नहीं पहन सकतीं, फोन पर बात नहीं कर सकतीं आदि जैसे बेतुके फरमान जारी किए जाते हैं. क्यों पुरुषों को इसका भागीदार नहीं बनाया जा रहा है? जब पुरुष समाज इतने बड़े-बड़े अपराधों को अंजाम देता हैं तब ये पंचायतें कहां रहती हैं? क्यों वो इनके लिए सजा नहीं तय नहीं कर पाती हैं?कहीं इसका कारण यह तो नहीं कि वो भी इसी पुरुष समाज का समर्थन करती हैं? इसीलिए वो यह समझती हैं कि वो जो कर रहे हैं वो सही कर रहे हैं. इनका कहना हैं कि कम उम्र में शादी कर दो तो यह सब यानि बलात्कार, रेप जैसी घटनाएं नहीं होंगी पर ये अकसर देखा गया हैं कि बलात्कारी या इस मानसिकता वाले लोग पहले से शादी शुदा रहते हैं. इसीलिए यह कहना गलत होगा कि शादी होने से यह सब बंद हो जाएगा. यह तभी बंद होगा जब पुरुष समाज अपनी मानसिकता को बदलेगा. अपनी हवस को बढ़ने से रोकेगा. पर पुरुष समाज ऐसा कर पाएगा या नहीं, इसका जवाब भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है.

पापा ने मेरे साथ…….और रो पड़ी (जानिए माया की आपबीती)

हम इस बात से इंकार नहीं करते कि बेटी सबसे ज्यादा सुरक्षित अपने पिता के साथ ही महसूस करती है. लेकिन जरा सोचिए जिस पिता के ही हाथ में उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी है जब वही अपनी बेटी की इज्जत पर हाथ डाल दे तो भरोसे और रिश्तों का क्या मतलब रह जाता है? इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं होगा. क्योंकि यह एक ऐसा सवाल हैं जो कभी कोई नहीं सोच सकता. माया (परिवर्तित नाम) सबसे ज्यादा अपने पापा के करीब थी लेकिन अचानक वो अपने पापा से दूर जाने लगी. माया के अलावा उसके इस बर्ताव का कारण किसी को नहीं पता था. माया अपने दादा, दादी, भाई और पापा के साथ रहती थी. उसकी मां 6 महीने पहले ही गुजरी थी. अभी माया इस सदमें से उबरी भी नहीं थी कि उसे दूसरा सदमा सहना पड़ रहा था. हर रात वो उस दर्द से गुजरती थी लेकिन उसने कभी अपने चेहरे पर एक शिकन नहीं आने दी. वो जानती थी कि अगर इस बात का जिक्र किसी से भी करेगी तो लोग उसके पापा और उसके घर का बहुत मजाक उडाएंगे और फिर उसके भाई बहनों का बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा.हर रात उस दर्द को सहते समय वो सोचती की कल सुबह वो जरुर अपनी दादी से बोलेगी पर वो बोल नहीं पाती थी. धीरे-धीरे वक्त बितता जा रहा था और इधर माया की सेहत दिन प्रतिदिन गिरती जा रही थी. उसकी दादी हमेशा उससे पूछती पर वो कुछ न बताती थी. पर वो कहते है न पाप और खुशबू छुपाए नहीं छुपते.फिर एक दिन दादी को पता चला की माया मां बनने वाली है. पहले तो उसकी दादी को विश्वास नहीं हुआ पर जब माया ने रो-रो कर अपने दर्द को दादी से बयां किया तो उनका भी कलेजा फट गया लेकिन फिर अचानक उनमें ममता जाग गई और दादी ने कहा कि “मेरा बेटा ऐसा कर ही नहीं सकता, कोई भी बाप अपनी ही बेटी के साथ ऐसा नहीं कर सकता, तुम जरुर कहीं और से यह पाप कर के आई हो और अपने पापा को फंसा रही हो.” ये सुन कर तो माया पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा कि उसकी दादी जो सबसे ज्यादा उससे प्यार करती थी, वो भी आज उसका साथ छोड़ रही है. आज माया को अपनी मां की बहुत याद आ रही थी कि शायद आज मां होती तो ऐसा नहीं होता. वो तो खामोश थी पर आंखो से आंसू बहे जा रहे थे. मानों कितना दर्द हो उसके अन्दर पर कोई कम करने वाला नहीं था.उसने सोचा की मैं ऐसे दोराहे पर खड़ी हूं जहां कोई मेरा साथ देने वाला नहीं है. इसलिए मैं चुप चाप यहां से चली जाऊं. इसी में परिवार की भलाई हैं. फिर वो चुप चाप वहां से चली गई क्योंकि वो जानती थी कि वो अपनों के खिलाफ कभी नहीं लड़ पाएगी . सिर्फ माया ही नहीं ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो अपनों के खिलाफ नहीं लड़ पाती और गुमनाम अंधेरों में खो जाती हैं. पर यह गलत है, गलती करे कोई और सजा मिले सिर्फ लड़की को. क्यों औरत ही औरत की भावनाओं को नहीं समझ रही हैं? क्यों आज हर रिश्ता अपना वजूद खोता जा रहा है? आखिर क्यों लड़की हर वो गम सहे जिसकी वो हकदार नहीं हैं?

पति तो पति है वह कैसे रेप कर सकता है !!

वर्तमान परिदृश्य के अनुरूप जब महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा जैसी वारदातों में आए दिन वृद्धि होती जा रही है तो ऐसे में उपरोक्त पंक्तियां भले ही थोड़ी अटपटी क्यों ना प्रतीत होती हों लेकिन सच यही है कि कड़कड़डूमा कोर्ट के न्यायाधीश महोदय ने एक केस के दौरान मैरिटल रेप जैसी अवधारणा को पूरी तरह खारिज करते हुए यह कहा है कि कानूनन वैवाहिक बंधन में बंधने के पश्चात कोई महिला अपने पति पर जबरन शारीरिक संबंध स्थापित करने जैसा आरोप नहीं लगा सकती. न्यायाधीश महोदय ने मैरिटल रेप जैसी बात को नकारते हुए रेप के आरोपी पति को इस केस से बरी कर दिया. उल्लेखनीय है कि रेप के आरोपी पति हाजी अहमद सईद के वकील ने अदालत में यह दलील दी थी कि भारतीय दंड संहिता में मैरिटल रेप के बारे में कुछ नहीं कहा गया है. इतना ही नहीं सईद के वकील का यह भी कहना था कि विवाह के बाद पति का अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना किसी भी कानून के तहत गलत नहीं ठहराया जा सकता फिर चाहे वह संबंध पत्नी की अनिच्छा से ही क्यों ना बनाए गए हों. इसे मर्दवादी नजरिए का घिनौना रूप कहें या फिर महिलाओं की स्वतंत्रता, उनकी इच्छाओं पर गहरा आघात लेकिन यह बेहद कड़वा सच है कि समय बदलने के बावजूद आज भी महिलाओं के साथ एक वस्तु की भांति व्यवहार किया जाता है जिसका कभी भी किसी भी तरह अपने मनचाहे तरीके से उपभोग किया जा सकता है बिना यह सोचे कि इस बर्ताव से उसका अस्तित्व, उसका वर्तमान और उसकी इच्छाएं किस तरह प्रभावित होंगी.पता नहीं क्यों पर यह माना जाता है कि विवाह एक सुरक्षा निधि जैसा है जिसके तहत महिला अपने पति के घर सुरक्षित जीवन यापन कर सकती है. जहां अविवाहित रहते हुए संबंधित युवती के संदर्भ में कहीं अधिक भय भी जुड़ जाते हैं वहीं उसका विवाह कर माता-पिता सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्ति पा लेते हैं. वैसे भी भारतीय समाज में बेटियों को पराया धन ही समझा जाता है जिसके अंतर्गत बेटी के ऊपर अभिभावकों का अधिकार या उनसे संबंध केवल विवाह तक ही है. विवाह के बाद उसके साथ ससुराल में क्या होता है इस विषय में सोचने का शायद वक्त ही नहीं होता. जरा सोचिए वह जिस व्यक्ति से विवाह कर अपने लिए एक नया आशियाना, नई दुनिया बनाने की ख्वाहिश रख उस घर को अलविदा कहती है, वहीं व्यक्ति जब उसके साथ हैवानों की तरह सलूक करता है तो वह जख्म केवल उसके शरीर को ही नहीं बल्कि उसकी आत्मा तक को लहूलुहान कर देते हैं. भले ही विवाह करने के बाद पति-पत्नी तन और मन दोनों से ही एक-दूसरे के प्रति समर्पित हो जाते हैं लेकिन क्या केवल इसी आधार पर जबरन शारीरिक संबंध बनाना अन्याय नहीं कहलाएगा? क्या विवाहित जीवन का अर्थ और औचित्य केवल सेक्स और शारीरिक संबंधों के ही आसपास घूमता रहता है. क्या मानवीय मूल्यों और आपसी रिश्ते की गरिमा का कोई महत्व नहीं रह जाता.रेप एक ऐसा घिनौना कृत्य है जो किसी भी महिला के अस्तित्व को झकझोर कर रख देता है, एक ऐसी अमानवीय हरकत जो महिला की मर्जी के विरुद्ध उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करती है. इस हिसाब से तो हर वह पुरुष जो महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित करता है वह रेपिस्ट माना जाना चाहिए और इस हरकत को रेप के दायरे में ही रखा जाना चाहिए. विवाह का नाम देकर महिला के सम्मान तो तार-तार करना किसी भी हाल में सही नहीं ठहराया नहीं जा सकता और ठहराया जाना चाहिए भी नहीं. मर्दवादी मानसिकता के तहत महिलाओं को अधीनस्थ प्राणी का दर्जा दिया जाता है जिसके साथ मनचाहे तरीके से सलूक किया जा सकता है. भारतीय समाज की तो शायद विडंबना ही यही है कि जिसे जननी कहा जाता है उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ करने से पहले एक बार भी सोचा नहीं जाता.

चुलबुली लड़की अचानक शांत क्यों हो गई (जानिए पूजा की आपबीती)

पांच साल की उम्र थी, उसे पता नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है पर इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी बल्कि गलती उस हैवान की थी जो यह सब कुछ कर रहा था. जब नगमा (बदला हुआ नाम) सात साल की थी वो भी अपनी उम्र की बाकी बच्चियों की तरह चंचल और चुलबुली थी पर अचानक ही वो बड़ी गंभीर और चुप-चुप सी रहने लगी. चुलबुली बच्ची अचानक चुप हो जाए तो मां को एक डर सताने लगता है कि आखिरकार उनकी मासूम सी बच्ची डरी-डरी क्यों नजर आ रही है. अब आप सोच रहे होंगे कि उस मासूम के साथ ऐसा क्या हुआ होगा जो उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई. नगमा की मां सिंगल मदर हैं. वह पेशे से टीचर हैं और अपने माता-पिता के घर रहती थीं. वह काम पर चली जातीं और उन्हें कुछ पता नहीं होता कि छोटी बच्ची नगमा को उनकी गैर-मौजूदगी में क्या कुछ झेलना पड़ता था. नगमा की मां ने बताया कि पहले नगमा काफी बात करती थी. बाद में उन्होंने गौर किया कि वह चुप-चुप सी रहने लगी है. उससे वजह पूछी तो उसने कुछ नहीं बताया. बस वह उस घर से निकलना चाहती थी. अपने नाना-नानी के साथ रहना उसे अच्छा नहीं लगता था. नगमा की मां को शुरुआत में कुछ समझ में नहीं आया पर धीरे-धीरे उन्होंने नगमा को विश्वास में लिया, उसे भरोसा दिलाया, तब नगमा ने अपनी मां को बताया, ‘नानाजी मुझे नीचे (प्राइवेट पार्ट में) टच करते हैं. इस वाक्य को सुनने के बाद शायद अधिकांश महिलाओं का अपने रिश्तों पर से विश्वास उठ जाएगा और यह जानकर तो हैरानी होगी कि नगमा का यौन शोषण उसके नाना तब से कर रहे थे जब वो पांच साल की थी. एक ऐसी मां जिसके पति से उसका तलाक हो चुका था और अपनी सात साल की बच्ची की मुस्कान ही उस मां के जीने का अंतिम सहारा थी पर उसे क्या पता था कि उसी के अपने उसकी बच्ची की मुस्कान छीन लेंगे. नगमा की मां के लिए यह सदमे जैसा था. मगर, अभी इससे बड़े झटके लगने बाकी थी. नगमा की मां ने जब घर में यह मसला उठाया तो उन्हें पता चला कि उनकी मां को भी यह बात मालूम थी, पर फिर भी वो चुप थीं. यहां तक कि उनके भाइयों ने भी उनका साथ देने से इनकार कर दिया क्योंकि घर की इज्जत का सवाल था और पुलिस वालों ने इसलिए साथ नहीं दिया क्योंकि नगमा की मां पूरे परिवार के खिलाफ कार्यवाही चाहती थी.

इज्जत के लिए नीलाम 

नगमा की मां केवल अकेली ही नहीं हैं जिनको इज्जत के नाम पर चुप रहने के लिए बोला गया है. जब हमारे समाज में बलात्कार होते हैं तो पीड़ित नारी को चुप रहने के लिए बोला जाता है भले ही बलात्कारी मर्द सीना चौड़ा करके पूरे समाज में भ्रमण करता रहे. जब एक नारी पर उसका पति अत्याचार करता है तो उसके अपने ही माता-पिता उसे चुप रहने के लिए बोलते हैं क्योंकि घर की इज्जत का सवाल होता है. मर्दवादी समाज की यह बात समझ से परे है कि केवल नारी ही घर की इज्जत होती है. क्यों नारी को बार-बार इज्जत के नाम पर नीलाम किया जाता है. कोई जाकर पूछे उस समाज से कि उस पांच साल की बच्ची के साथ जो उसके नाना ने यौन शोषण जैसा अपराध किया क्या उससे उस घर की इज्जत नीलाम नहीं हुई? पर यदि नगमा की मां अपनी बेटी के साथ हुए अत्याचार की लड़ाई लड़ेगी तो घर की इज्जत नीलाम हो जाएगी.

 

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