तमाम दावों के बीच झारखंड में टूट गया बीजेपी का तिलिस्म?

पाकिस्तान, धारा 37०, राम मंदिर, नागरिकता कानून जैसे मुद्दे और प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जाूद भी नहीं चला, आधी सीटों पर सिमट गयी भाजपा
फीकी पड़ने लगी अमित शाह की रणनीति

राजेश श्रीवास्तव
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह के लिए वर्ष 2०19 कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता है। जाते-जाते भाजपा के हाथों से एक और मजबूत राज्य झारखंड छिन गया। अब तक पांच राज्यों से उसकी सरकार जा चुकी है और गठबंधन सरकारों ने उसके हाथों से सत्ता छीन ली है। इसके बाद से अब यह सवाल उठना लाजिमी है कि भारतीय जनता पार्टी का पाकिस्तान मुद्दा, राष्ट्र प्रेम, 37०, कश्मीर, हिंदू-मुस्लिम, अयोध्या मंदिर व नागरिकता संशोधन कानून क्या जनता को लुभा पाने में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। झारखंड में भाजपा की हार पार्टी के लिए सबक का विषय बन गयी है कि अब वह एक बार फिर मंथन करे कि क्या यह मुद्दे अब उसके द्बारा पूर्व में की गयी नोटबंदी, जीएसटी, कारोबार में निरंतर गिरावट, आर्थिक मंदी और विपक्ष को किनारे कर एकला चलो की रणनीति कहीं उसके लिए भारी तो नहीं साबित होती दिख रही है।
पार्टी नेतृत्व को विचार तो करना ही पड़ेगा, वह यह कहकर नहीं बच सकती कि पांच सालों के शासन के बाद सरकार का दुष्प्रभाव आ ही जाता हैं। क्योंकि मात्र एक सवा महीने बाद ही दिल्ली में चुनाव है जहां अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर धमाकेदार जीत का दावा किया है। वैसे जीत का दावा तो रविवार की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्बारा भी किया गया जहां बड़ा लक्ष्य भी पार्टी की ओर से रखा गया लेकिन यह देखना होगा कि लक्ष्य का वही हाल न हो जो झारखंड में हुआ। अब सवाल यह भी उठने लगा है कि आखिर पार्टी कब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को भुनाएगी । वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के स्टार प्रचारक व यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चुनावी सभाएं भी लगायी थीं। जहां मुख्यमंत्री ने कहा था कि अगर असलम जीतेगा तो अयोध्या में राम मंदिर कैसे बनेगा। अब भाजपा को यह समझना होगा कि जनता कुछ और ही चाहती है।
झारखंड के चुनावी परिणाम ने एक बार फिर सियासत में केंद्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दों के हावी होने के संकेत दिए हैं। चुनाव के वक्त पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कई रैलियां की। देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड के चुनाव में जहां बीजेपी ने केंद्र सरकार की उपलब्धियों और मुद्दों के आधार पर लोगों को पक्ष में करने का प्रयास किया, वहीं गठबंधन के लोग स्थानीय मुद्दों पर जोर देते रहे। झारखंड में बीजेपी की रैली में जहां अमित शाह ने आकाश से ऊंचा राम मंदिर बनाने जैसे बयान देकर लोगों को लुभाने की कोशिश की, वहीं पीएम मोदी भी अपने भाषणों में कांग्रेस को कोसते रहे। स्थानीय मुद्दों से इतर भाषणों में ऐसे जिक्र के कारण ही बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
झारखंड चुनाव के मतदान उस वक्त हुए जब देश की संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक को पास कराया गया। केंद्रीय संसद में पास हुए नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तो झारखंड में बीजेपी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। इसके अलावा पश्चिम बंगाल से सटे इलाकों में एनआरसी और नागरिकता कानून का जमकर विरोध होना भी बीजेपी के लिए नुकसान का कारण बना।
झारखंड के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान विपक्ष ने देश में आर्थिक मंदी के मुद्दे को जमकर प्रचारित किया। केंद्र सरकार के तमाम दावों के बीच प्याज की बढ़ती कीमत, महंगाई दर में इजाफा, विकास दर में गिरावट जैसे कई मुद्दों पर बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने जमकर प्रचार किया। इसके अलावा झारखंड के बोकारो, जमशेदपुर समेत अन्य हिस्सों में तमाम उद्योगों पर आर्थिक मंदी के प्रभाव ने भी बीजेपी को इन इलाकों में नुकसान पहुंचाया।
झारखंड की सत्ता के शीर्ष पर रहे रघुबर दास की कार्यशैली कई बार बीजेपी के लिए परेशानी का कारण बनी। रघुबर दास ने 2०19 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के शीर्षतम नेताओं में से एक और झारखंड के प्रमुख आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा समर्थकों को टिकट देने से इनकार कर दिया। मुंडा के समर्थक सभी 11 विधायकों के टिकट काट दिए गए। इसके अलावा रघुबर ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष सुदेश महतो को भी साइडलाइन करते रहे। गठबंधन में रहते हुए आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने एक प्रकार से राज्य की रघुवर दास सरकार के लिए विपक्ष के तौर पर काम किया। बीजेपी के कुछ नेताओं ने भी यह कहा कि भारतीय जनता पार्टी और एजेएसयू का गठबंधन सिर्फ दास की जिद के चलते नहीं हो सका।
झारखंड में विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस किया। जेएमएम ने अपने चुनाव में खाली सरकारी पदों पर स्थानीय युवाओं की नियुक्ति करने और बेरोजगारी भत्ता देने जैसे मुद्दे उठाए, वहीं बीजेपी पर नौकरियों को खत्म करने का आरोप लगाया। इसके अलावा जेएमएम ने अपने घोषणा पत्र में स्थानीय लोगों को टेंडर प्रक्रिया में तरजीह देने, भूमिहीनों को जमीन दिलाने, सरकारी नौकरी में पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण देने, जल, जंगल और आदिवासियों का संरक्षण करने के मुद्दों को तरजीह दी। दूसरी ओर बीजेपी ने भी इन मुद्दों पर फोकस करने का प्रयास किया लेकिन आम लोगों का विश्वास जीतने में नाकाम रही। बीजेपी राम मंदिर जैसे मुद्दों के बहाने वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश करती रही और मतदाताओं ने स्थानीय मुद्दों पर विपक्ष को अपना जनादेश दे दिया।

 

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