तीन तलाकः राजीव गांधी की वो गलती, जिसे नहीं दोहराना चाहते राहुल गांधी!

नई दिल्ली। मोदी सरकार ने तीन तलाक को जुर्म घोषित कर इसके लिए सजा मुकर्रर करने संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया है. बिल का नाम है ‘द मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट.’ खास बात ये है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस विधेयक पर केंद्र सरकार के सुर में सुर मिला रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की उम्मीद के विपरीत कांग्रेस ने इस बिल का समर्थन करने का फैसला किया है.

कांग्रेस बिल को लेकर कुछ सुझाव तो देगी लेकिन उसमें कोई संशोधन प्रस्ताव लेकर नहीं आएगी. कांग्रेस के इस रुख पर राजनीतिक जानकार हैरान हैं लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी वाली वो गलती नहीं दोहराना चाहते जिसके चलते कांग्रेस हमेशा दक्षिणपंथी राजनीति के निशाने पर रही है और उसपर मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते देश को पीछे ले जाने के आरोप लगते हैं.

कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व के मॉडल

गौरतलब है कि राहुल गांधी ने हाल ही में गुजरात चुनाव से निपटकर पार्टी की कमान संभाली है. गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ी थी. चुनावी नतीजे कांग्रेस को अपने इस नए मॉडल के सफल होने का भरोसा दे रहे हैं. माना जा रहा है कि राहुल के नेतृत्व वाली कांग्रेस अब इसी मॉडल को देश में लागू करेगी जिसकी पहली कड़ी तीन तलाक के मुद्दे पर पार्टी का रुख है. ऐसे समय में जब लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी, नवीन पटनायक की बीजेडी और असदुद्दीन ओवैसी ने खुलकर तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने के मोदी सरकार के बिल का विरोध कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने इसका समर्थन करने का फैसला किया है. पार्टी बिल में किसी तरह का संशोधन भी पेश नहीं करेगी. वो सिर्फ इसे लेकर एक-दो सुझाव सदन में रखेगी.

क्या है शाहबाने का मामला

दरअसल कांग्रेस अब राजीव गांधी वाली गलती दोहराना नहीं चाहती है. बता दें कि मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम मामले में राजीव गांधी मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने झुक गए थे. शाहबानो मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली एक मुस्लिम महिला थीं. उनके पति ने जब उन्हें तलाक दिया तब उनकी उम्र 62वर्ष की थी. अपने पांच बच्चों के साथ पति से अलग हुईं शाहबानो के पास कमाई का जरिया नहीं था. लिहाजा उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के अंतर्गत अपने पति से भरण पोषण भत्ते की मांग की. न्यायालय ने शाह बानो के पक्ष में फैसला दिया. लेकिन उनके पति ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और अंततः यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा.

शाहबानों के पक्ष में सुप्रीमकोर्ट का फैसला

सर्वोच्च न्यायालय  ने शाहबानो के तर्क को स्वीकार करते हुए 23 अप्रैल 1985 को उनके पक्ष में फैसला दे दिया. इस फैसले को मुस्लिम महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित करने के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना गया और शाहबानो का नाम भारत के न्यायिक इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया. लेकिन इसके तुरंत बाद ही इस फैसले पर राजनीति शुरू हो गई.

मुस्लिमों के दबाव में राजीव गांधी ने पलटा फैसला

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो के पक्ष में आए न्यायालय के फैसले के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. देश के तमाम मुस्लिम संगठन इस फैसले का विरोध करने लगे. उनका कहना था कि न्यायालय उनके पारिवारिक और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करके उनके अधिकारों का हनन कर रहा है. देश के अलग-अलग हिस्से में विरोध प्रदर्शन होने लगे. केंद्र की सत्ता में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार थी. राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित कर दिया. इस अधिनियम के जरिये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया गया.

हिंदुवादी संगठनों के निशाने पर राजीव

इस मुद्दे को लेकर बीजेपी से लेकर संघ और हिंदूवादी संगठनों ने राजीव गांधी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के आरोप लगाए और उनकी जमकर निंदा की. बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर एलके आडवाणी, उमा भारती सहित वीएचपी अशोक सिंघल तक के भाषणों के निशाने पर राजीव गांधी होते और मुस्लिम तुष्टीकरण का तमगा कांग्रेस पर लगाया जाता. आज तक राजीव गांधी और कांग्रेस को इस मुद्दे पर हिंदुवादी संगठन कोसते हैं.

राजीव गांधी से जुदा राहुल गांधी राह

मौजूदा दौर में कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथों में है. राहुल गांधी पार्टी को मुस्लिम तुष्टीकरण से बाहर निकालने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने पार्टी को इस तमगे से निकालने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ी. कांग्रेस को इसका फायदा मिला है, राज्य में पार्टी की सीटें बढ़ी हैं. इन सबके बीच मोदी सरकार ने तीन तलाक को जुर्म घोषित कर सजा मुकर्रर करने संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया तो कांग्रेस भी उसकी हां में हां मिला रही है. साफ है कि मुस्लिम मतों को देखते हुए जो कदम राजीव गांधी ने 1986 में अपनाया था, अब राहुल गांधी उस गलती को नहीं दोहाराना चाहते.

 

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