……तो देश को मिलाने वाला है नया गृहमंत्री, राजनाथ समेत समर्थक सन्न

नई दिल्ली। अमित शाह को यूँ ही नहीं राज्यसभा में भेजने की तैयारी है। इसके पीछे मक़सद भी बड़ा है। कभी गुजरात सरकार में गृहमंत्री रहे शाह अब केंद्र में भी नंबर दो का ओहदा हासिल कर सकते हैं। क्योंकि उनके राजनीतिक गुरु मोदी जो तब सीएम थे, वही अब पीएम हैं। राजनाथ को हटाकर उन्हें गृहमंत्रालय सौंपने की अंदरखाने तैयारी है। ऐसा पार्टी सूत्रों का कहना है। इसके लिए मोदी और संघ के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच मंथन का दौर चल रहा है।

अंदरखाने ऐसी ख़बरें उड़ने पर राजनाथ खेमा सन्न है। संघ के बड़े पदाधिकारियों के संपर्क में राजनाथ बताए जा रहे हैं। हालाँकि कहा यह भी जा रहा कि रक्षा मंत्रालय शाह के लिए ही रिज़र्व रखा गया है। मगर शाह की रुचि रक्षा नहीं ‘गृह’ मामले संभालने में ज़्यादा है ‘

यूँ तो मोदी शाह को बहुत पहले ही कैबिनेट में अहम पद देना चाहते थे, मगर तब शाह के लिए संगठन को अजेय बनाने का मिशन ज़्यादा ज़रूरी लगा। संगठन में साबित करने के बाद शाह को सरकार में भी ज़िम्मेदारी निभाने का मौक़ा मुफ़ीद लग रहा।

इसमें दो राय नहीं कि राजनाथ सिंह का क़द मोदी सरकार के बाकि मंत्रियों से बड़ा है। सियासत के हर कौशल में माहिर हैं। चाहे सियासी चतुराई हो या गगनभेदी आवाज में जोश से भर देने वाला भाषण। धीरता-गंभीरता भी। डैमेज कंट्रोल करने वाले संकटमोचक भी। हर मामले में राजनाथ बड़ी लकीर खींचते नज़र आते हैं।

बावजूद इसके उनमें जो सबसे बड़ी जो मिसिंग है, वह है मोदी कैंप का न होना। यही बात राजनाथ के ख़िलाफ़ जाती है। और यही बात मोदी के लिए उनको लेकर भरोसे का संकट पैदा करती है। राजनाथ का बड़ा क़द भी मोदी के लिए थोड़ा असुरक्षा पैदा करता है।

भले ही संघ के नंबर दो सुरेश सोनी के दबाव और बड़े क़द के चलते मोदी राजनाथ को नंबर दो का ओहदा देने को मजबूर हुए, मगर वे अब तक राजनाथ को अपना आदमी स्वीकार नहीं कर पाए हैं। भाजपा में अंदरखाने इस बात की चर्चा रहती है कि मोदी स्वामिभक्त टाइप नेताओं को ही आगे बढ़ाने में यक़ीन रखते हैं। जो उनके प्रति आगे भी वफ़ादार रहे।

इन्हीं सब बातों ने राजनाथ को भी अंदर से तोड़कर रख दिया है। कभी जो राजनाथ हर बयान में गरजते दिखते थे, अब वे इतने सावधानी से भाषण देते हैं मीडिया में डर-डरकर बयान देते दिखते हैं। मानो किसी गलती पर उन्हें सियासत की शूली पर चढ़ने का ख़तरा लगता हो। बीते दिनों कश्मीर मुद्दे पर इंडिया टीवी के शो इसका गवाह है। राजनाथ इतना बेबस कभी नहीं दिखे थे।

अशांत कश्मीर की समस्या सुलझाने में मोदी सरकार विफल रही है। बतौर गृहमंत्री कई दफ़ा राजनाथ की घाटी यात्रा भी वहाँ कीसियासी आबोहवा नहीं बदल सकी। पत्थरबाज़ी की समस्या पर सरकार घिरती रही। आंतरिक मोर्चे पर सरकार कीनाकामी को विपक्ष उठाता रहा है। कई बार आतंकी हमले भी हो चुके। नक्सलियों से निपटने के लिए कारगर रणनीति भले बनी मगर अमल में नहीं आ सकी।

यह बात दीगर है कि राजनाथ सिंह गृहमंत्रालय के आँकड़ों केआधार पर दावा करते हैं कि सबसे ज़्यादा नक्सलियों की धरपकड़ और मौत मोदी सरकार में ही हुई। ये सब तो विभागीय बहाने हैं, जिनके आधार पर राजनाथ को विफल क़रार देकर उन्हें सरकार में साइडलाइन किया जा सकता है। वैसे मोदी एंड कंपनी पहले से ही बेटे आदि का मामला उछला कर राजनाथ की आभा कम करने में लगी है।

ऐसे समय में जब चीन और पाक से लगातार चुनौती मिल रही है तब पूर्णकालिक डिफ़ेंस मिनिस्टर का न होना चिंता की बात है। सूत्र बताते हैं कि पर्रिकर के इस्तीफ़ा देने के बाद मोदी ने पहले शाह को कमान सौंपने की तैयारी की। इसके लिए तय हुआ कि विधायक से पहले शाह को सांसद बना दिया जाए। इसी कड़ी में शाह को गुजरात से राज्यसभा में भेजा जाना है।

भाजपा के एक बड़े नेता की मानें तो शाह के लिए ही डिफ़ेंस मिनिस्ट्री रिज़र्व रखी गई है। जिसकी वजह से फिलहाल जेटली अतिरिक्त ज़िम्मा संभाल रहे हैं। मगर अब अंदरखाने चर्चा है कि शाह को डिफ़ेंस नहीं होममिनिस्ट्री मिलने वाली है। क्योंकि काम का अनुभव भी है उनके पास।

 

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