दिल्ली एनसीआर में पटाखे पर रोक और सिलीगुड़ी में डीएम ने छठ पूजा पर लगाई रोक

सिलीगुड़ी। इस साल जनवरी में जल्लिकट्टु पर ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगा दिया था कि इसमें बैल की जान को ख़तरा हो सकता है. जीवों से प्यार करने वाली संस्थाएं त्यौहार के खिलाफ खड़ी हो गयी थीं. दिवाली पर भी कुछ पर्यावरण के ठेकेदार जाग गए और कल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों को बेचने पर फ़ौरन रोक लगा दी. तर्क दिया गया कि दिल्ली में प्रदूषण काफी हो जाता है. मगर अब तो जी आप छठ पूजा तक नहीं कर सकते, क्योंकि पर्यावरण के घोर हितैषियों को ये मंजूर नहीं.

दिवाली के बाद छठ पूजा भी नहीं मना सकते हिन्दू

जी हाँ, आपने जो भी सुना वो बिलकुल सच है. सिलीगुड़ी में डीएम ने फरमान सुना दिया है कि महानंदा नदी पर छठ पूजा नहीं कर सकते, क्योंकि हिन्दू नदी में प्रदूषण मचा देते हैं. नदी गन्दी हो जाती है. इस औरंगजेबी फरमान के पीछे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट की गाइड लाइन का हवाला दिया गया है.

बड़े पैमाने पर हो रही साजिश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल इससे पहले युमना किनारे आर्ट आॅफ लिविंग के सांस्कृतिक महोत्सव करने के लिए आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर को जिम्मेदार ठहराते हुए उनपर करोड़ों का जुर्माना भी ठोक चुका है. हम ऐसा कहना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अब साफ़ हो चुका है कि बड़े पैमाने पर हिन्दुओं के खिलाफ साजिश की जा रही है और केंद्र सरकार को इसकी जांच करवाकर ऐसी साजिशों में लगे देश-विरोधी तत्वों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए.

मुहर्रम के ताजिया बहाने से प्रदूषण नहीं हुआ था?

महानंदा नदी पर छठ पूजा के घाट आप अब नहीं बना सकेंगे अन्यथा जेल भी हो सकती है. जिला प्रशासन का कहना है की हम नदी को प्रदुषण मुक्त करना चाहते है इसलिए ये निर्णय लिया गया है. वैसे तो मुहर्रम के ताजिया को भी नदी में बहाया जाता है, लेकिन उस वक़्त नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, सुप्रीम कोर्ट और डीएम साहब सभी चेन की नींद सो रहे थे. ताजिया को नदी में बहाने से प्रदूषण नहीं हो रहा था क्या?

क्या है छठपूजा का विवाद

आदेश देने वाली डीएम साहिबा का नाम जयशी दासगुप्ता है. डीएम साहिबा का कहना है कि छठ पूजा से महानंदा नदी प्रदूषित होती है. उस पर पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार सिंह का कहना है कि, जो भी कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करके छठ पूजा करेगा, उस पर कानूनी कार्रवायी होगी. यहां तक की तीन साल की सजा और जुर्माना भी देना पड़ सकता है.

आखिर कैसे हो छठ पूजा?

सिलीगुड़ी के पांच नंबर वार्ड मां संतोषी छठ पूजा सेवा समिति के अध्यक्ष पंकज साह का कहना है कि जिला प्रशासन के फरमान के मुताबिक़ छठ पूजा के दौरान महानंदा नदी में न तो घाट बनायी जा सकती है और ना ही नदी पर अस्थायी पुलिया का निर्माण किया जा सकता है. इसके अलावा नदी में केला गाछ लगाने और नदी में जाकर अर्घ्य देने की भी मनाही है.

वरिष्ठ समाजसेवी सह-सलाहकार समिति के प्रमुख डॉ बीएन राय ने शासन-प्रशासन से सवाल करते हुए कहा कि यदि इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गयी तो छठ व्रती क्या सड़कों या फिर अपने घरों के सामने छठ पूजा करेंगे? केले के पत्तों से प्रदूषण होता है क्या?

मक्कार प्रशासन नहीं, छठ पूजा आयोजक करते हैं सफाई

नवयुवक वृंद क्लब के अध्यक्ष धनंजय गुप्ता का कहना है कि छठ पूजा से ही महानंदा नदी का अस्तित्व बचा हुआ है. 365 दिनों तक लगातार हर रोज सिलीगुड़ी नगर निगम नदी में कूड़ा फेंकता है. जबकि आयोजक केवल 24 घंटे के इस लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के दौरान महानंदा नदी से पूरे साल का कूड़ा खुद साफ करते हैं. इस पूजा के दौरान महानंदा की सौंदर्यता और निखर उठती है. पूजा समाप्ती के बाद भी आयोजक कमेटियां पूजा सामग्रियों व केलागाछ व फूल-पत्तों को नदी में नहीं डालने देते बल्कि एक निर्धारित जगह पर ही इकट्ठा करते हैं.

छठ पूजा से ठीक पहले जागा प्रशासन

समिति के प्रवक्ता राजेश राय का कहना है कि हम कोर्ट के निर्देश का सम्मान करते हैं. लेकिन महानंदा व अन्य नदियों को बचाने और उसे संरक्षित करने तथा प्रदूषण रहित करने के लिए एनजीटी द्वारा इसी साल आठ महीने पहले मार्च महीने में निर्देश जारी किया था. लेकिन डीएम साहिबा ने अन्य सभी पर्व-त्योहारों के बीत जाने के बाद केवल छठ पूजा के लिए ही फरमान जारी किया है.

बता दें कि ये तानाशाही फरमान उन हिन्दुओं के गाल पर भी करारा तमाचा है, जो दिवाली पर पटाखों की बिक्री से काफी खुश हैं. केवल दिवाली ही नहीं अब भारत में वामपंथियों व् अन्य देश-विरोधी ताकतों को हिन्दुओं का जल्लीकट्टु, होली, दिवाली, दही हांडी, छठ पूजा, कांवड़ यात्रा, दुर्गा पूजा विसर्जन, गणेश विसर्जन, धार्मिक जुलूस निकालना कुछ भी मंजूर नहीं.

 

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