देश में धर्मांतरण रोकने के लिए कानून क्यों जरूरी है

लखनऊ। देश में ईसाई मिशनरियों का धंधा काफी हद तक चौपट करने के बाद मोदी सरकार से अब उम्मीद की जा रही है कि वो धर्मांतरण को रोकने के लिए कड़ा कानून बनाएगी। अभी कोई भी चर्च या मस्जिद में खड़े होकर धर्म बदलने का एलान कर देता है और उसे फौरन मान्यता भी मिल जाती है। जबकि ज्यादातर मामलों में बाद में पता चलता है कि बहला-फुसला कर या पैसे का लालच देकर धर्म बदलवाया गया है।

कई बार तो लोगों को यह भी नहीं पता चलता कि उनका धर्म बदलवाया जा रहा है। धर्मांतरण के खिलाफ सोशल मीडिया के जरिए अभियान चलाने वाले नो कन्वर्ज़न ग्रुप ने इस मुद्दे पर एक ऑनलाइन पिटीशन (अपील) तैयार की है जिसे प्रधानमंत्री को भेजा जाएगा। इसके तहत मांग की गई है कि कानून बनाकर यह जरूरी कर दिया जाए कि कोई भी व्यक्ति अगर अपना धर्म परिवर्तन करना चाहे तो उसे एसडीएम के आगे पेश होकर शपथ लेना जरूरी होगा कि वो ऐसा बिना किसी डर, दबाव या लालच के कर रहा है।

हालांकि केंद्रीय कानून मंत्रालय पहले ही साफ कर चुका है कि कोई राज्य सरकार चाहे तो ऐसा कानून बना सकती है, क्योंकि विषय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है। संविधान के मुताबिक केंद्र सरकार इसमें कोई दखल नहीं दे सकती। हालांकि अब जब कुछ ही दिनों में राज्यसभा में भी बीजेपी का बहुमत होने वाला है और राष्ट्रपति भी बीजेपी की पसंद का होगा, केंद्र सरकार चाहे तो केंद्रीय बिल लाकर पूरे देश में धर्मांतरण पर रोक लगा सकती है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी नेता वेंकैया नायडू ने अपने एक भाषण में ये वादा भी किया था।

धर्मांतरण या धोखेबाजी?

देश में अगर कोई सरकारी रिकॉर्ड में अपना नाम या नाम की स्पेलिंग भी बदलना चाहे तो उसे एक तय प्रक्रिया का पालन करना होता है। इसके लिए उस व्यक्ति को एसडीएम को हलफनामा देना होता है कि वो ऐसा पूरी तरह से होशो-हवास में कर रहा है। साथ ही अखबार में सूचना भी छपवानी होती है। ठीक इसी तरह वैवाहिक स्थिति में किसी बदलाव, तलाक, संबंध, संबंध विच्छेद और पावर ऑफ अटॉर्नी वगैरह में भी हलफनामा देकर पूरी प्रक्रिया निभानी पड़ती है। लेकिन धर्म बदलना इतना आसान है कि पांच मिनट के अंदर किसी को भी हिंदू से मुसलमान या ईसाई बनाया जा सकता है। ईसाई मिशनरी और इस्लामी मदरसे इसी का फायदा उठाते हैं। दबाव या लालच ही नहीं, आजकल तो डरा-धमकाकर भी धर्म परिवर्तन के कई मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में अगर एसडीएम के सामने धर्मांतरण के लिए जाना जरूरी होगा तो ऐसा सिर्फ वही कर पाएंगे जो वाकई अपनी मर्जी से धर्म बदल रहे हों। एसडीएम को ही जाति से लेकर वैवाहिक और तमाम दूसरे सर्टिफिकेट जारी करने होते हैं। इसलिए उसकी मुहर से धर्म परिवर्तन का नियम बना तो इस आड़ में अवैध सुविधाएं लेने वालों के मंसूबे नाकाम हो सकेंगे।

देश की सुरक्षा के लिए जरूरी

धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली ऑनलाइन पिटीशन में कहा गया है कि सभी भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए ऐसा करना जरूरी है। हिंदू से मुस्लिम और ईसाई ही नहीं, बल्कि ईसाई और मुस्लिम से हिंदू या किसी दूसरे धर्म में जाने वालों के लिए भी तय प्रक्रिया होनी चाहिए। इससे लोगों को धोखेबाजी और डरा-धमकाकर धर्म परिवर्तन कराने की घटनाएं खत्म होंगी। अभी खास तौर पर आदिवासी और गरीब तबकों में ऐसी घटनाएं आम हैं।

अभी देश में कुल 7 राज्यों में धर्मांतरण रोकने वाला कानून है। ये राज्य हैं- ओडिशा, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान। धर्मांतरण भले ही राज्यों का विषय है लेकिन कानून के जानकारों की राय में आईपीसी में थोड़े से बदलाव से केंद्र सरकार इस पर रोक लगा सकती है। पिछले कुछ दिनों से यह बात लगातार सामने आ रही है कि देश में मुसलमानों की आबादी औसत से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है।

इसके पीछे ज्यादा बच्चे पैदा करने के अलावा गरीबों को पैसे का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराना भी बड़ी वजह है। ऐसे में देश में धार्मिक आधार पर जनसंख्या संतुलन बनाए रखने के लिए धर्मांतरण कानून बेहद जरूरी हो गया है। इस सिलसिले में शुरू किए गए ऑनलाइन अभियान का आप भी हिस्सा बन सकते हैं। इसके लिए नीचे क्लिक करें।

यहां गौर करने वाली बात ये है कि दुनिया के दूसरे तमाम देशों में अल्पसंख्यक समुदाय धर्मांतरण रोकने वाले कानूनों की मांग करता है क्योंकि वहां पर बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यकों का जबरन धर्म परिवर्तन कराती हैं। लेकिन भारत में उलटी गंगा बह रही है। यहां अल्पसंख्यक ही पैसे और लालच के दम पर बहुसंख्यकों का धर्मांतरण करा रहे हैं और नहीं चाहते कि उन्हें रोकने के लिए कोई कानून बने।

 

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