क्या नियमों का पालन हो रहा है दिल्ली विधानसभा में!

नई दिल्ली । क्या दिल्ली विधानसभा में नियमों का पालन किया जा रहा है और क्या वह उन्हीं नियमों के अनुरूप चल रही है, जो निर्धारित किए गए हैं। संविधान विशेषज्ञों की मानें तो विधानसभा की कार्यवाही में काफी झोल है। वहां ऐसे उदाहरण पेश किए जा रहे हैं जो भविष्य में परेशानी का सबब बन सकते हैं।

दिल्ली सरकार ने मंगलवार को जो सेशन बुलाया था, उसे विशेष सेशन की संज्ञा दी गई थी। विधानसभा सूत्रों का कहना है कि नियमों के अनुसार विशेष सेशन जैसा कुछ नहीं होता। सरकार की ओर से आपातकालीन सेशन बुलाया जाता है, जिसमें गंभीर विषयों पर चर्चा होती है और प्रस्ताव पारित किए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज के कार्यकाल में दिल्ली विधानसभा में ऐसा कोई सेशन नहीं बुलाया गया।

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपने 15 साल के कार्यकाल में तीन बार आपातकालीन सेशन बुलाया था, जिसमें दिल्ली में गैर सीएनजी बसों पर रोक, रिहायशी इलाकों में छोटे उद्योगों पर पाबंदी और पूर्ण राज्य का मसला शामिल था। लेकिन आप सरकार तो अपने पिछले सवा दो साल के कार्यकाल में ऐसे अनेक सेशन बुला चुकी है।

सूत्र यह भी बताते हैं कि सरकार विशेष सेशन बुलाने की बात तो करती है, लेकिन उसका अजेंडा नहीं बताती। विधानसभा सूत्रों के अनुसार सरकार की ओर से उसे मंगलवार के सेशन के अजेंडे की कोई जानकारी नहीं दी गई। जिसका परिणाम यह निकला कि सरकार ने मनमर्जी से सेशन चलाया। विधानसभा के एक अधिकारी के अनुसार, ‘हमें लग रहा था कि सरकार की ओर से भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ जबाव दिया जाएगा, जिसको लेकर खासे इंतजाम किए गए थे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया। सरकार ने इस सेशन को ईवीएम तक ही समेट दिया।’

लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा के मुताबित, नियमों के अनुसार विधानसभा में कोई भी सदस्य बाहर की वस्तु सदन में नहीं ला सकता, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने मंगलवार को सत्ता पक्ष को ईवीएम जैसी मशीन लाने की इजाजत दे दी। उन्होंने कहा कि एक बार कांग्रेस सदस्य मुकेश शर्मा सदन में अपना विरोध प्रकट करने के लिए शराब की दो बोतलें ले आए थे तो उनकी सदस्यता मुश्किल से बच पाई थी। शर्मा के अनुसार इस प्रकार की इजाजत देकर अध्यक्ष ने गलत परंपरा की शुरुआत की है। अब इस मसले पर भविष्य में सदन में हंगामा होने की संभावना बनी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि सत्ता पक्ष की ओर से ईवीएम मशीन को ‘अपने हिसाब’ से चलाया गया। वोटिंग के बाद उसका स्विच ऑफ किया जाना था, लेकिन ऑन रहते ही वोटों की गिनती कर सरकार ने अपने ऊपर ही सवाल खड़े कर दिए।

 

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