नीतीश कुमार का सफेद झूठ

गत दिवस एक टीवी चैनल पर नीतीश कुमार की एक प्रेसवार्ता हुई, जिसमें नीतीश कुमार से सवाल पूछने के लिए कई महत्वपूर्ण पत्रकार बैठे थे। उसपत्रकारवार्ता में नीतीश कुमार का वैसा ही चतुर एवं कुटिल रूप देखने को मिला, जैसा अकबरुद्दीन उबैसी का रहता है। ‘आप की अदालत’ में रजत शर्मा ने कुछ समय पूर्व अकबरुद्दीन उबैसी को प्रस्तुत किया था। उस कार्यक्रम में उबैसी रजत शर्मा पर हावी हो गया था तथा उसने अपनी चतुराई एवं कुटिलतापूर्ण बातों के आगे उन्हें बोलने नहीं दिया था। नीतीश कुमार का साक्षात्कार-कार्यक्रम कुछ-कुछ वैसा ही हो गया। नीतीश कुमार ने अधिकांश पत्रकारों के प्रष्नों का सही उत्तर देने के बजाय बात को दूसरी ओर घुमा दिया। पत्रकारवार्ता में नीतीश कुमार ने एक ऐसा रहस्योद्घाटन किया, जिसे सुनकर लोगों को घोर आष्चर्य हुआ। नीतीश कुमार का रहस्योद्घाटन दिन को रात और रात को दिन सिद्ध करने वाला था।
सितम्बर 2013 में पटना में भारतीय जनता पार्टी की कार्यसमिति का अधिवेशन था, जिसमें नरेन्द्र मोदी को भी आना था। मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे। नीतीश कुमार के नरेन्द्र मोदी से अच्छे सम्बंध रहे थे तथा कभी नीतीश कुमार ने मोदी को भावी प्रधानमंत्री लायक बताया था। उस समय का एक चित्र था, जिसमें नरेन्द्र मोदी व नीतीश कुमार प्रेमपूर्वक एक-दूसरे से मिल रहे हैं। वर्ष 2013 में यह चर्चा शुरू हो चुकी थी कि भाजपा द्वारा मोदी को लोकसभा के चुनाव में भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। नीतीश कुमार को भी कुछ लोगों ने भावी प्रधानमंत्री होने लायक बताया था, इसलिए नीतीश कुमार भी लम्बी उड़ान के सपने देखने लगे थे। उनके मन में मोदी के प्रति ईश्र्या-भाव उत्पन्न हो गया था। पटना में भाजपा की कार्यसमिति की बैठक के आयोजन के दौरान बिहार भाजपा के लोगों ने मोदी व नीतीश कुमार के एक साथ वाले चित्र के कटआउट पटना में लगवा दिए। इस पर नीतीश कुमार इतना नाराज हो गए कि उन्होंने रात में भाजपा कार्यसमिति के सदस्यों को दिए जाने वाले भोज का जो आयोजन किया था, उसे उन्होंने रद्द कर दिया। यह घोर अपमानजनक कृत्य था तथा उससे भाजपा व जनता दल(यूनाइटेड) के बहुत पुराने गठबंधन में दरार पड़ गई तथा बाद में नीतीश कुमार ने वह गठबंधन तोड़ दिया।
टीवी चैनल पर पत्रकारों के साथ नीतीश कुमार का सफेद झूठ कुमार की जो वार्ता आयोजित थी, उसमें जब एक पत्रकार ने उपर्युक्त घटना का उल्लेख किया और पूछा कि क्या यह शिष्टाचार की धज्जी उड़ाना नहीं था? इस पर नीतीश कुमार ने आष्चर्यजनक उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि वह भोज उन्होंने नहीं, भाजपा ने स्वयं रद्द किया था। पत्रकारों के साथ नीतीष कुमार की वार्ता बहुत सीधी-सादी थी। उसमें नीतीश कुमार के उत्तरों पर प्रतिप्रष्न कर उनकी पोल खोलने का अधिक यत्न नहीं किया गया। भोज रद्द करने के नीतीश कुमार के इस उत्तर पर भी उपस्थित पत्रकारों ने प्रतिप्रष्न कर उनकी कलई नहीं खोली। सवाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी नीतीष कुमार द्वारा दिए जाने वाले भोज को स्वयं कैसे और क्यों रद्द करेगी? उस समय नीतीश कुमार भाजपा के साथ राश्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अंग थे तथा बिहार भाजपा ने नरेन्द्र मोदी व नीतीश कुमार के साथ-साथ वाले चित्र के जो कटआउट लगाए थे, वे अच्छी भावना से लगाए गए थे। इसलिए नीतीश कुमार को उस पर कुपित होने की क्या आवष्यकता थी? क्रोध भी ऐसा कि सामान्य षिश्टाचार भी भूल गए तथा अतिथियों को दिए जाने वाला भोज रद्द कर दिया! वह नीतीष कुमार की बहुत घटिया हरकत थी तथा उस पर पूरे देष में थू-थू हुई थी। जब चारों ओर थू-थू हो रही थी, उस समय नीतीश कुमार ने वास्तविकता का क्यों नहीं खुलासा किया? वह इतने लम्बे समय तक चुप क्यों रहे?
एक पत्रकार ने कभी नीतीश कुमार के कट्टर दुष्मन रहे लालू यादव से अब उनकी हुई मित्रता का हवाला देकर जब प्रष्न किया तो नीतीश कुमार ने बात को दार्षनिक रूप में घुमाकर कहा कि वह उस समय उनका लालू का विरोध तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार था। इसके साथ ही उन्होंने अपने को पाकसाफ बताते हुए भाजपा पर आरोप लगाया कि वह बिहार में जातिवादी राजनीति कर रही है। नीतीश कुमार के उत्तर पर पत्रकार को प्रतिप्रष्न कर नीतीष कुमार की पोल खोलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। धन्य हैं नीतीश कुमार! चारा घोटाले के सजायाफ्ता लालू यादव से हाथ मिलाने का उनका उद्देष्य यादव जाति को अपने साथ मिलाना था। जिनके राज को नीतीष कुमार ने घूम-घूमकर जंगलराज कहा था, उनसे गलबहियां करने का उद्देष्य ही जातिवादी है। उसके प्रतिकार में भाजपा को भी मजबूर होकर बिहार में जातिवाद का सहारा लेना पड़ रहा है। यह बिहार का दुर्भाग्य है कि वहां जातिवाद को खत्म करने के बजाय बढ़ावा दिया जा रहा है।
श्याम कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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