पाई-पाई को मोहताज हुए कश्मीर के ‘अरबपति’ अलगाववादी

नई दिल्ली। आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ केंद्र सरकार की कोशिशों का असर दिखने लगा है। इस वक्त हालत ये है कि कश्मीर के जिन अलगाववादी नेताओं के पास कभी करोड़ों अरबों रुपए की ब्लैकमनी हुआ करती थी आज उनकी हालत भिखमंगों की तरह हो गई है। यही हाल देश में नक्सली संगठनों का भी हो गया है। नक्सली संगठन भी पाई-पाई को मोहताज हैं। रुपयों की इस कमी का असर आतंकवाद और नक्सलवाद के सफाए पर भी दिख रहा है। केंद्रीय वित्त और रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने रविवार को ये दावा किया है कि नोटबंदी के बाद से देश के तमाम हिस्सों में मौजूद नक्सली संगठनों और कश्मीर के अलगाववादियों को पैसों की किल्लत हो गई है। जिससे कश्मीर में पत्थरबाजों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई है।
अरुण जेटली ने कहा कि जहां नोटबंदी से पहले घाटी में एक-एक प्रदर्शन में हजारों की संख्या में पत्थरबाज इकट्ठा हुआ करते थे आज उनकी संख्या घट कर 25-30 रह गई है। जो अलगाववादी नेता युवाओं को पत्थरबाजी का पैसा दिया करते थे आज वो खुद पैसों के लिए मोहताज हैं। अरुण जेटली ने ये बातें मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहीं। आशीष शेलार की ओर ये नव भारत प्रण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे। अरुण जेटली ने इस कार्यक्रम में लोगों को नोटबंदी के फायदे गिनाए। जेटली ने कहा कि नोटबंदी से पहले जो पैसा अर्थव्यवस्था के बाहर समानांतर ढंग से चल रहा था वो आज औपचारिक तरीके से बैंकिग सिस्टम में आ गया है।
अरुण जेटली का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार रक्षा, ग्रामीण विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च करना चाहती है। उन्होंने कहा कि हमारे पास विश्व स्तरीय सार्वजनिक संस्थान होने चाहिए ताकि गोरखपुर जैसे हादसों को रोका जा सके। इस कार्यक्रम में उन्होंने ये भी कहा कि मोदी सरकार देश में 7-7.5 प्रतिशत की विकास दर से संतुष्ट नहीं है। अरुण जेटली ने कहा कि मोदी सरकार देश हित में सख्त फैसले लेती रहेगी। कार्यक्रम में उन्होंने नोटबंदी के अलावा जीएसटी, दिवालियापन पर नया कानून, बेनामी संपत्ति से जुड़े कानून में संसोधन जैसे तमाम उपलब्धियों को गिनाया। इससे पहले गृहमंत्री राजनाथ भी ये कह चुके थे कि टेरर फंडिंग पर लगाम लगाकर हम आतंकवाद की कमर तोड़ चुके हैं।
दरअसल, पाकिस्तान कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए घाटी के अलगाववादी नेताओं को फंडिंग करता था। पाकिस्तान से होने वाले इस पैसे का इस्तेमाल यहां पर आतंकवाद और सुरक्षाबलों पर पथराव के लिए किया जाता था। अलगाववादी नेता घाटी में सुरक्षबलों पर पथराव के लिए युवाओं को दिहाड़ी मजदूरी देते थे। लेकिन, नोटबंदी और टेरर फंडिंग पर लगाम के बाद ये सबकुछ बंद हो गया है। कश्मीर के आठ अलगाववादी नेता इस वक्त दिल्ली की जेल में बंद हैं। वहीं दूसरी ओर जो अभी घाटी में मौजूद हैं उनके पास पत्थरबाजों को देने तक के लिए पैसा नहीं है। यही हाल, नक्सलियों का भी है। नक्सलियों को भी हवाला से मिलने वाली रकम रुक गई है। जिससे वो भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।
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