पुराने दागी हैं यूपी लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव

anil-yadavतहलका एक्सप्रेस, लखनऊ। यूपी लोक सेवा आयोग के विवादस्पद अध्यक्ष अनिल यादव का दमन पहले भी दागदार रहा है. अनिल यादव पर न सिर्फ सामान्य आपराधिक मुकदमे ही दर्ज हुए थे वल्कि इनमें एक मुकदमा प्राणघातक हमला का भी था.

अनिल यादव ने अदालत के दबाव पर हाईकोर्ट में अपने ऊपर दर्ज मुकदमों की जानकारी दी है मजे की बात ये है कि यूपी पुलिस यह जानकारियां अब तक छिपाती रही. यहां तक कि पुलिस ने सूचना अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारियों में भी गुमराह किया. आगरा के दो थानों ने तो यहां तक लिख दिया कि मांगी गई सूचनाओं पर आख्या शून्य है.

प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने अपने सचिव अवनीश पांडेय की ओर से डेढ़ साल पहले ही आगरा के पुलिस महानिरीक्षक के पास आरटीआइ के तहत आवेदन देकर अनिल यादव का आपराधिक इतिहास जानना चाहा था. इस पर पुलिस ने जवाब से बचने की कोशिश की थी. 17 नवंबर को, 2013 को एक पत्र आइजी के यहां से आया कि अनिल यादव का मूल स्थान और पता न होने की वजह से जानकारियां नहीं दी जा रही हैं. यह जानकारियां उपलब्ध कराने पर भी जानकारियां नहीं दी गईं. समाचार पत्रों में यह मामला उछलने पर पांच अगस्त, 2014 को जो सूचना भेजी गई, वह न्यू आगरा व हरि पर्वत थानों से मिली रिपोर्ट पर आधारित थी कि मांगी गई सूचनाओं पर आख्या शून्य है.

अनिल यादव की सत्ता पर पकड़ इतनी जबरदस्त थी कि पुलिस उनपर दर्ज मुकदमों के बारे में जानकारी देने का साहस नहीं जुटा सकी.

प्रतियोगी छात्र समिति के पदाधिकारियों के अनुसार अब जबकि खुद अनिल यादव ने अपने ऊपर दर्ज मुकदमों के बारे में सूचना दे दी है तो पुलिस का चेहरा उजागर हो गया है. इस बाबत कोर्ट को भी अवगत कराया जाएगा, साथ ही राज्य सूचना आयोग को भी इसकी सूचना दी जाएगी.

अब फिर से यूपी लोक सेवा आयोग की गड़बड़िययाँ सामने आ रही हैं. उत्तर प्रदेश पीसीएस-2014 परीक्षा के अंतिम परिणाम में कृषि वर्ग में ओवरलैपिंग में गड़बड़ी की शिकायतें सामने आई हैं.

भ्रष्टाचार मुक्ति मोर्चा नाम के संगठन का आरोप है कि कृषि वर्ग में चालीस सीटों में आठ छात्राओं का चयन किया गया. चयनित छात्राओं में चार सामान्य व चार अन्य पिछड़ा वर्ग का चयन किया गया. मोर्चा के पदाधिकारियों का कहना है कि इसमें एक सीट अनुसूचित जाति की होनी चाहिए थी. मोर्चा इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करेगा. मोर्चा के पदाधिकारियों के अनुसार इससे पहले सहायक अभियोजन पदाधिकारी परीक्षा में भी ऐसा किया था. बाद में मामला उजागर होने के बाद आयोग ने मानवीय भूल मानते हुए पुन: अनुसूचित जाति के छात्र का चयन किया था.

 

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