….फिलहाल सपनों पर रहम !

सपने देखना अच्छी बात है पर जब कोई सपने दिखाकर वर्तमान तो वर्तमान भविष्य भी अंधकारमय कर दे तो उस सपनों के सौदागर के प्रति मन में कैसी टीस उठती है, यह भुक्तभोगी ही जानता है। आज देश में ऐसे भुक्तभोगियों की संख्या करोड़ों में है। द्वारकाधीश की नगरी से भाषण देने में निपुण एक ऐसा महारथी आया जिसका नेतृत्व नेपथ्य से धनकुबेर कर रहे थे। आज कई लोग उस महारथी को महाठग की उपमा से नवाज रहे हैं, पर ऐसा सोचना गलत होगा। धनकुबेरों की संगत ही ऐसी होती है कि थोड़ा बुद्धिमान व्यक्ति भी मिट्टी को सोना बनाकर बेच लेता है, यह उस व्यक्ति की काबलियत है। और अगर कोई मिट्टी को सोना समझकर खरीद रहा है तो यह खरीदने वाले की  मूर्खता। मिट्टी का तो मोल होता है पर सपनों का क्या कोई मोल होता है ? वो जिसे आज देश के कई लोग महाठग बता रहे हैं वो थोड़े बुद्धिमान नहीं बल्कि महाबुद्धिमान हैं, उन्होंने सपनों बेचकर देश का ताज खरीद लिया। यह विश्व के इतिहास में पहली बार हुआ है। इसलिए विश्व का अचम्भित होना भी लाजिमी था। मताधिकार आमजन का महत्वपूर्ण अधिकार व हथियार है जो पाँच वर्ष में एक बार ही काम आता है अर्थात यह मताधिकार    धन से महत्वपूर्ण है। यह मताधिकार ही देश व करोड़ों देशवासियों के भविष्य का फैसला करता है। लोगों ने सुनहरे सपनों के चलते अपना यह बहुमूल्य मताधिकार दिया है। पर वो ठगे नहीं गए। सुनहरे सपने वो अब भी देख सकते हैं, सपना देखने में क्या है, कौन सा कोई खर्च आना है। चाहें तो आप दिनभर सपनें देखें इसमें कोई सर्विस टैक्स नहीं है और न ही अभी सरकार का कोई इरादा है सपनों में सर्विस टैक्स लगाने का। क्योंकि इन्हीं सपनों ने देश का ताज वर्तमान सरकार को दिया है तो वह भी इन सपनों के प्रति तो एहसानमंद जरूर है इसलिए हम बेहिचक सपने देख सकते हैं । वर्तमान का गला घोंटकर बेहतर भविष्य की कल्पना भी कर सकते हैं इसके सिवा हमारे पास और कोई चारा नहीं है। हाँ! यह जरूर है कि वादे करना और उनसे किनारा कर लेना यह मानवीयता के खिलाफ जरूर हो सकता है पर महाव्यापार में मानवीयता का मूल्य गौड़ होता है। अतः सपनों के उस सौदागर को जो लोग महाठग कहते हैं, वो लोग कहीं न कहीं व्यापारिक मामलों में कच्चे हैं। लोग करते तो करते क्या वो तो यूपीए-2 के भ्रष्टाचार व घोटालों से इतना आजिज आ चुके थे कि उन्हें सुनहरे सपनों ने एक उम्मीद दिखाई थी कि “अच्छे दिन आयेंगे !”। आज जनता उन्हीं अच्छे दिनों का इंतजार कर रही है और खुद को कोस भी रही है। दिल्ली में आप की सरकार के 49 दिनों के कार्यकाल की आलोचना करने वाले आज अपने लिए तरह-तरह की दलीलें दे रहे हैं। खुद भाषणों के महारथी ने एक अशोभनीय टिप्पणी की थी जो की उच्च पद की गरिमा से परे थी।
100 दिन में अच्छे दिन के वादे और न जाने कितने सुनहरे वादे कर जनता को अपनी ओर आकृष्ट किया। राजनीति में कोई नवसिखिया तो थे नहीं तब भी इनको जानकारी थी की जो वादे कर रहे हैं उनके पीछे की हकीकत क्या है। आज उन वादों के एकदम उलट कार्य हो रहे हैं। सत्ता में आते ही आमजन की दैनिक जीवन पर प्रहार किया गया। रेलवे का किराया अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दिया गया। और नाम दिया गया सुविधाओं का किन्तु शायद ही आमजन को आज भी रेलवे में कोई सुविधा मिलती हो। रेलवे में वाई-फाई व बुलेट ट्रेन यह आमजन के लिए तो नहीं है। वो बेचारे तो अब एक्सप्रेस की स्लीपर तक में बैठ नहीं पाते। तो उन पर महँगाई का यह बोझा लादकर अमीरों के सफर को और मनोरंजक बनाने का निर्णय बहुत ही सराहनीय हो सकता है कुछ लोगों की नजर में ! हर चीज महँगी पर आमलोगों की आमदनी वहीं की वहीं।
क्योंकि इस सरकार पर पूँजीपतियों का टैग पहले भी लगा था और आज भी। यूपीए सरकार की जितनी योजनाओं पर तत्कीलीन विपक्षी पार्टी ने बेमिशाल विरोध किया था वही योजनाएं लागू कर-कर के खुद ही वाहवाही लूट रहे हैं। जनता ने वो दौर भी देखा था और आज का भी दौर देख रही है। किस तरह से विदेश नीति का हवाला देते हुए खरबों रूपये खैरात में बाँटे जा रहे हैं और खुद के देश का अन्नदाता बेबशी के चलते मौत को गले लगा रहा है। और इनकी बेबशी पर ऊटपटांग के बयान देने से भी माननीय बाज नहीं आते। जनता को भटकाने के लिए तरह-तरह के आयोजनों का प्रचार-प्रसार होता है या हकीकत में कुछ अच्छा करने की दिशा में कार्य हो रहे हैं, यह जनता भी बाखूबी समझने लगी है।sarvesh

सर्वेश यादव, लखनऊ

 

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