“बन्द होनी चाहिए दारूल उलूम जैसी संस्थाएं”

लखनऊ। अल्लाह और रसूल के बाद किसी को ये हक नहीं कि वो किसी को भी इस्लाम से खारिज करे। दारुल उलूम देवबंद से जो फतवा आया है, बेबुनियाद और गलत है। ये सिर्फ हिंदू-मुस्लिम में फूट डालने की साजिश है। ऐसी संस्थाओं को बंद किया जाना चाहिए। ये कहना है मुस्लिम महिला फाउंडेशन की सदर नाजनीज अंसारी का। छोटी दिवाली के दिन नाजनीन अंसारी संग कुछ मुस्लिम महिलाओं ने भगवान श्रीराम की आरती की थी जिसे लेकर विवाद हो रहा है। दारुल उलूम देवबंद ने उनके खिलाफ फतवा देते हुए नाजनीन को इस्लाम से खारिज करार दिया है।
नाजनीन ने दारुल उलूम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का फैसला किया है। उनका कहना है कि इस्लाम ऐसे फतवे देने वालों के दम पर नहीं चलने वाला।
इस बारे में काजी-ए-शहर मौलाना गुलाम यासीन का कहना है कि इस्लाम में बुतपरस्ती मना है। अगर कोई मुसलमान ऐसा करता है तो वो मुसलमान नहीं है। नाजनीन अंसारी सिर्फ नाम से मुसलमान हैं, उनका काम कुफ्र का है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वे इस्लाम से खारिज ही हैं। अब यह विवाद गहराता जा रहा है। लगता है कि इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही सवैधानिक व्यवस्थानुसार विवर्ड का हल निकलेगा।
भगवान श्रीराम हर भारतीय के पूर्वज
मुस्लिम महिला फाउंडेशन की सदर नाजनीज अंसारी कहती हैं, ‘आरती करना कोई पूजा पद्धति नहीं बल्कि ये भारतीय संस्कृति व संस्कार का हिस्सा है। दूसरी अहम बात ये कि भगवान श्रीराम सिर्फ हिंदुओं के नहीं बल्कि हर भारतीय के पूर्वज हैं।
हर वो व्यक्ति जिसका जन्म भारत में हुआ है, भगवान श्रीराम का वंशज है। इस नाते हम उनकी आरती उतारकर उनका स्वागत करते हैं। हम पिछले 11 साल से अब हिंदू-मुस्लिम एकता को और मजबूत करने में जुटे हैं।’
उधर, शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता फरमान हैदर का कहना है कि हम लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, यहां कुछ भी करने की आजादी है लेकिन हर मुसलमान को इस्लाम के दायरे में ही जिंदगी बसर करनी चाहिए और इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है। ये सिर्फ सस्ती शोहरत हासिल करने का तरीका है।
ऐसा लगता है दारुल उलूम भी किसी न किसी बात पर अनावश्यक फतवे की बात कर अपने को मीडिया की सुर्खियों में बनाए रखना चाहता है। एक बड़ा प्रश्न यह उठता है कि केवल मुस्लिम महिलाओं के लिये ही कभी मोबाइल पर, कभी बाल कटवाने पर तो कभी लिबास पर फतवे जारी करना ही ऐसी संस्थाओं का काम रह गया है!
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