बसपा का वजूद बचाने को आनंद और आकाश के भरोसे माया, दलित समुदाय इन दोनों शहजादों को अपना नेता स्वीकार कर सकेगा?

लखनऊ। दलितों के नायक रहे कांशीराम की बसपा का वजूद कायम रखने के लिये मायावती ने अब अपने भतीजे आकाश को वैशाखी बनाने का इरादा बनाया है। इसके पहले वह अपने भाई आनंद कुमार को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना चुकी हैं। लगता है कि हताश और निराश होती जा रही मायावती को अब तेजी से आ रही अपनी बुढौती का एहसास होते ही यह फैसला करने के लिये मजबूर होना पडा है।

इस संबंध में दो यक्षप्रश्न किये जा रहे हैं। पहला यह कि क्या दलित समुदाय इन दोनों शहजादों को अपना नेता स्वीकार कर सकेगा? दूसरा यह कि जिन नरेंद्र मोदी के चाणक्य के सामने खुद अमीरजादे ठहर सकेंगे?  जहॉ तक दलित महिला मायावती का प्रश्न है, तो उनकी जिंदगी का एक लंबा दौर कठिनाइयों से गुजर चुका है।

दलित की पीडा को वह झेल चुकी हैं। लेकिन, आकाश ने तो जन्मते ही सोने के चम्मच से शहद चाटने को मिल गयी होगी।  मायावती जैसी बुआ के रहते किसी दलित के दर्द का उन्हें एहसास तक नहीं होने दिया गया होगां। रही बात आनंद कुमार की, तो वह भी अपनी बहन की ही बदौलत किसी रियासत के राजा जैसी जिंदगी बडे आनंद से गुजार रहे हैं। इन दोनों की दूसरी और क्या खासियतें हैं, इसके बारे में इससे ज्यादा और कुछ नहीं पता चल सका है कि इन दोनों में से एक मायावती का भाई है, तो दूसरा उनका लाडला भतीजा।

लेकिन, आम दलित को इससे क्या लेना देना? उसे तो कांशीराम जैसा अपना रहनुमा चाहिये, जो उनके दुख और दर्द का सहभागी बन सके। क्या ये दोनों अमीरजादे दलित उनकी इस कसौटी पर खरा उतर सकेंगे?  लगता है कि अर्से तक सत्ता का राजसुख भोग चुकी मायावती को अब इस सच का ध्यान नहीं रह गया है कि बसपा उनकी नहीं, कांशीराम के खूनपसीने से खडी और मजबूत बनाई गयी पार्टी है। वह होते, तो आज इस पार्टी का सियासी इकबाल कुछ और ही होता।

मायावती को यह बात सुनने में अच्छी नहीं लग सकती है कि कांशीराम की दलितों के एक मात्र और असली नेता रहे हैं। दलितों के साथ साथ खाने, सोने और जमीन पर लेट कर रात गुजारने वाले। इस लिहाज से मायावती को उनकी छाया तक नहीं कहा जा सकता है। वह तो उनकी बनायी गयी सियासी रियासत को भोग ही करती चली आ रही हैं।  इससे ज्याद नहीं। यही वजह है कि उनके जाने के बाद वह कांशीराम की दी हुई राजनीतिक थानी को संभालने में बुरी तरह नाकामयाब रही हैं। लिहाजा, उनके नेतृव्त में बसपा लगातार टूटती और विखरती ही चली जा रही है।

अब तो उसके वजूद तक को बनाये रखने का संकट पैदा हो गया है। देश के राजनीतिक क्षितिज में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के उदय होने केे बाद तो बसपा का बडी तेजी से लगातार क्षरण ही होता जा रहा है। कुछ ही दिनों के अंदर लखनऊ के अंबेदकर पार्क में कांशीराम और मायावती के मुकाबले राजा सुहेलदेव की बहुत ऊंची प्रतिमा को लगायेे जाने के बाद तो भाजपा  मायावती के कद को और ज्यादा बौना कर देगी।

उल्लेखनीय है कि पिछले विधान सभाई चुनाव में भाजपा के 12वीं शताब्दी के राजभर राजा सुहेलदेव को लेकर राजनीति करने से उसे बहुत लाभ हुआ था। इस चुनाव के पहले भी भाजपा के चाणक्य अमित शाह सुहेलदेव की जयंती मनाने खुद गये थे। मोदी सरकार ने इनके नाम से एक ट्रेन भी चलाई थी। इन्हीं सुहेलदेव ने इस्लामिक हमलावर महमूद गजनी के भतीजे को हराया था। इसीलिये वे पिछली जातियों के साथ ही हिंदुओं के भी आइकान माने जाते हैं। अब भाजपा इन्हें हिंदुत्व का प्रतीक बनाने की तैयारी में है। क्या मायावती के दुलारे शाही मिजाज के ये दोनों दलित मोदी औरे शाह के सामने बसपा का वजूद बनाये रखने में कामयाब हो सकेंगे?

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button