भाजपा का जश्न असलियत छुपाने की कोशिश
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राजेश श्रीवास्तव
पद कुलसीटें भाजपा को मिली सीटें विपक्ष
महापौर 16 14 2
नगर पालिका अध्यक्ष 198 68 13०
नगर पंचायत अध्यक्ष 438 1०० 338
पार्षद/सदस्य 5261 914 4347
जरा इन आंकड़ों को गौर से देखिये इसमंे आपको खुशी के बजाय असलियत छिपाने की कोशिश दिख्ोगी। दरअसल भाजपा ने निकाय चुनाव में कोई आशातीत सफलता नहीं हासिल की है। बल्कि अगर विधानसभा चुनाव से उसका तुलनात्मक अध्ययन करेंगे तो उसके वोट प्रतिशत में करीब 13 फीसद का नुकसान हुआ है। उसे विधानसभा चुनाव में करीब 43 फीसद वोट हासिल हुए थ्ो। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भले ही यह कहे कि उसने निकाय चुनाव में मिली करारी जीत से विपक्ष को चारो खाने चित कर दिया है लेकिन अगर इन्हीं परिणामों का ठीक से अध्ययन करें तो साफ हो जायेगा कि यह खुशी महज कोरी है। अगर भाजपा इस पर इतरा रही है कि उसे निकाय चुनाव में महापौर की सीटों में से अधिकतम सीटें उसे हासिल हुई हैं तो यह कोई नयी बात नहीं है। भाजपा को जब केंद्र व प्रदेश में सरकारें नहीं थीं तब भी शहरी सीटों पर ज्यादातर उसे ही विजयश्री हासिल होती थी। बीते निकाय चुनाव में भी 12 में 1० सीटें भारतीय जनता पार्टी को हासिल हुई थीं। ऐसे में इस बार 16 में से 14 सीटें हासिल होना उसकी विजयगाथा को नहीं लिख रही हैं। बल्कि यह जीएसटी और नोटबंदी का गुस्सा ही है कि जिस शहरी क्ष्ोत्र में हाथी कभी खड़ा नहीं हो पाता था इस बार वह खूब सरपट दौड़ा। मेरठ और अलीगढ़ में तो वह सूंड़ उठा कर खड़ा हुआ है। जबकि आगरण झांसी समेत दो जिलों में वह दूसरे नंबर पर या फिर खूब लड़ा। भारतीय जनता पार्टी इसे बसपा की तकनीकी जीत बता रही है। लेकिन यह तब है जब बसपा सुप्रीमो ने कोई बड़ी जनसभा नहीं की न ही प्रचार के लिए निकलीं। वह केवल एक सभा ही कर सकी थीं। ऐसे में पांच-छह सीटों पर बसपा का अच्छा प्रदर्शन भाजपा के लिए अच्छा संदेश नहीं है। यह जरूर है कि इस निकाय चुनाव ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को कड़ा संदेश दिया है। और जनादेश का संदेश यह है कि अगर अब भी यूपी केदोनों लड़कों ने संदेश नहीं लिया तो उनके लिए यूपी दूर की कौड़ी साबित होगा। इन निकाय चुनावों ने सबसे बड़ी ताकत तो निर्दलीयों का दी है। दरअसल इसके पीछे भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का टिकट प्रबंधन बेहद अहम कारण साबित हुआ। दोनों दलों ने ऐसे-ऐसे लोगों को टिकट थमा दिया जिनका न कोई पार्टी में अस्तित्व था न ही क्ष्ोत्र में। ऐसी स्थिति में सपा ख्ोमे से टिकट चाह रहे लोगों ने निर्दलीय के रूप में अपनी किस्मत आजमायी और विजयश्री हासिल की। सपा के लिए तो यह चुनाव सिवाय आत्ममंथन के संदेश के अलावा कुछ नहीं दे कर गया । संदेश यह है कि अगर अभी भी न चेते तो अगले लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद, इटावा और सैफई बचाना भी मुश्किल हो सकता है। यही संदेश कांग्रेस के लिए भी है। अमेठी में भी कांग्रेस को निकाय चुनाव के परिणामों में जनता ने धूल चटा दी। रायबरेली में जरूर सोनिया के संसदीय क्ष्ोत्र की जनता ने कांग्रेस की इज्जत रख ली। जिस तरह जनता ने सपा और कांग्रेस को संदेश दिया है वह दोनों के लिए सोचनीय है। एक और दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस चुनाव में बड़ी जीत का सेहरा निर्दलीयों के सिर चढ़ा है। यह निर्दलीय देर-सबेर भाजपा की ही थाती बनने वाले हैं। क्योंकि उनको सत्तारूढ़ दल का सहारा चाहिए ही। जब उन्हें अपने दलों से टिकट नहीं मिला तो वह जीत के बाद केवल सत्ता का ही सहयोग चाहेंगे। एक भाजपा नेता ने कहा भी कि जो भी निर्दलीय जीते हैं वह सब हमारे हैं। इसलिए यह तय है कि भविष्य में सत्तारूढ़ दल की ताकत बढ़ने ही वाली है। अत: निकाय चुनाव का जनादेश सभी राजनीतिक दलों के लिए संदेश है कि कोई इतराये नहीं जनता सब जानती है।
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