भाजपा से मुकाबले को एक होने को आतुर धुर-विरोधी
आज उत्तर प्रदेश के भाजपा विरोधी सियासी दलों में वहीं स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिस तरह से जंगल में होती है। जब जंगल में श्ोर से मुकाबला करना होता है तो सारे जानवर एकत्र हो जाते हैं। यह बात दूसरी है कि सारे एक होकर भी श्ोर का कुछ नहीं कर पाते। उसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी भी एक होने को आतुर हैं। कभी एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले बुआ और बबुआ अब एक दूसरे को अच्छे लगने लगे हैं। चुनाव में तो एक -दूसरे का विरोध करने की रस्म अदायगी होती है लेकिन अगर चुनावी माहौल से पहले का भी याद करें तो साफ होता है कि हमेशा मायावती और अखिलेश एक-दूसरे को कोसते ही रहे। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हमेशा पत्थर वाली सरकार कहकर उन पर तंज कसे तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश को मुलायम का बबुआ तक कह डाला। लेकिन अब जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। और बसपा व सपा को मालुम हो गया है कि अब उसकी स्थिति निकट भविष्य मेंं सुधरती नहीं दिख रही है तो मायावती ने एक दिन पहले अंबेडकर जयंती पर भाजपा के विरुद्ध लामबंदी का बहाना बनाकर अखिलेश यादव को आमंत्रण दे डाला। उधर अखिलेश ने भी कोई देरी नहीं की। शुक्रवार के आफर पर शनिवार को ही सुर मिला दिये और कह डाला कि भाजपा के विरुद्ध वह किसी से भी गठबंधन को तैयार हैं। यह वहीं अखिलेश यादव हैं जिनसे कांग्रेस के गठबंधन के समय पूछा गया था कि क्या वह मायावती से भी गठबंधन कर सकते हैं तो उन्होंने कहा था कि साइकिल पर हाथी को कहां बिठा सकते हैं। अब जब पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी का परचम लहरा रहा हैै और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपने एक महीने से भी कम के कार्यकाल से पूरे देश को अपना लोहा मनवा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह के दूरगामी और निजी हितों से परे हटकर फैैसले ले रहे हैं। उससे आम जनमानस को सुखद अनुभूति का एहसास होने लगा है। ऐसे में विपक्ष को अब यह एहसास हो गया है कि अब हाल-फिलहाल उसके हाथ से सत्त्ता कोसों दूर ही नहीं है बल्कि विपक्ष के नाम पर कोई इस स्थिति में नहीं है कि वह सरकार को घ्ोर सके। इसीलिए विपक्ष भाजपा को सांप्रदायिक करार देकर सारे दल को एकजुट करना चाह रहा है। लेकिन इसकी एकता दूसरे गठबंधन को तो छोड़िये अपने ही दल में एका नहीं दिख रहा है। शनिवार को सपा मुख्यालय पर जब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सदस्यता अभियान शुरू कर रहे थ्ो। तभी ठीक उसी समय इटावा में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने उनके अभियान पर तंज कसते हुए कहा कि लगता है कि अब मुझे भी पार्टी की सदस्यता लेनी पड़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि जनेश्वर मिश्र ने बिना किसी पद के पार्टी में काम किया। इसलिए काम करने के लिए पद और सदस्य होना अनिवार्य है। यह एक उदाहरण यह बताने के लिए पर्याप्त है कि विरोधी दल दूसरों को साथ लाने की तो दूर अपने को जोड़ने की कवायद में भी पूूरी तरह फेल हैं। सपा में अखिलेश और डिंपल छोड़ कोई नजर नहीं आता उसी तरह बसपा में भी मायावती के सारे मजबूत सदस्य अब अन्य दलों को मजबूत कर रहे हैं।
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