मंत्रियो के डर से लाशों का इलाज करते रहे, बीआरडी मेडिकल कालेज के विद्वान डॉक्टर

लखनऊ/गोरखपुर। बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीज़न की कमी के कारण कितनी भयावह स्थिति सामने थी यह वही लोग बता सकते है जिन्होंने अपनी आंखों से वहां का मंजर देखा था। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट भी सभी तरफ  की रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुकी है।

10 अगस्त को भी लिक्विड आक्सीजन संयंत्र में लगे मीटर की रीडिंग सुबह 11 बजे की गई थी। मीटर रीडिंग के हिसाब से यह बताया गया था कि गुरुवार की रात तक ही आक्सीजन की सप्लाई हो सकेगी। बाल रोग के विभागाध्यक्ष से अनुरोध किया गया कि मरीजों के हित को देखते हुए तत्काल आक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित कराएं। इसके बावजूद अधिकारी बेपरवाह रहे।  शाम को जब प्राचार्य डा. राजीव मिश्र से बात की गई तो उन्होंने बताया कि फैजाबाद से आक्सीजन सिलेंडर से लदी गाड़ी गुरुवार को शाम पांच बजे चल चुकी है और वह देर शाम तक पहुंच जाएगी। लेकिन, उन्होंने जो भी कहा उसका ठीक उल्टा हुआ। रात करीब आठ बजे सौ बेड के इंसेफ्लाइटिस वार्ड के सिलेंडर की आक्सीजन खत्म हो गयी। आनन-फानन में  वार्ड को लिक्विड आक्सीजन से जोड़ा गया जो थोड़ी ही बची थी। रात साढ़े ग्यारह बजते-बजते वह भी जवाब दे गया और मौत ने विभिन्न आइसीयू में भर्ती मरीजों को अपनी आगोश में लेना शुरू कर दिया।

बच्चो की मौत के बाद दूसरे दिन जब वहां के डॉक्टरों को यह पता चला कि लखनऊ से राज्य सरकार के मंत्री अस्पताल का निरीक्षण करने आ रहे है तो अस्पताल में जो हुआ उसको देखते यह कहने में शक नही होता कि अस्पताल प्रशासन द्वारा निश्चय ही अपने किये को बचाने पर पर्दा डालने की कोशिश की गई। इस घटना को बताने से उन परिवार के गमो को तो कम नही किया जा सकता है जिन्होंने अपने मासूमो को खोया है।आज किसी भी राजनीतिक पार्टी के लोग जितनी भी संवेदना क्यो न तो परत कर ले पर उन परिवारों के दर्द को साझा नही कर सकते जो मेडिकल कालेज की लापरवाही के कारण लोगो को मिला है।

किसी बच्चे के पिता,माता,चाचा या बाबा ने यदि डॉक्टरों या वह के स्टाफ से बच्चे की बिगड़ती हालत को लेकर जल्दी देखने या उसे आक्सीजन देने की बात कही जाती थी तो उसके साथ कितनी अभद्रता के साथ उसे भगाया जाता था उसको शब्दो मे बयान कर देने मात्र से यकीन नही होगा। मौत के करीब जा रहे एक बच्चे के पिता ने जब मेडिकल कालेज के लोगो से जल्दी देखने और पानी देने  की बात कही  तो उसे वहां के स्टाफ द्वारा  गालिया देते हुए की बेरहमी से पीटा गया। उंसके साथ अन्य तिमारदारो को भी उल्टा सीधा कहा गया।आप वहां का मंजर  स्वंम देखकर वहां की स्थिति का अंदाज़ लगा सकते है।

कोई उस माँ के दर्द को न समझ सकता है और न ही बाँट सकता है जिसने अपनी आंखों के सामने अपनी औलाद को खो दिया पर पर उंसके बाद अस्पताल प्रशासन ने उनके साथ जो खेल खेला वह इतना असहनीय था कि किसी माँ का भी दम निकल जाये।

सिद्धार्थनगर के एक रामसकल, जो अपने पोते का  इलाज के लिए लाये थे रोते हुए बताया कि यदि उनका पोता मर गया था तो उसकी लाश उसे दे देते तो घर ले जाकर उसका क्रिया कर्म कराते। रामसकल बताते है कि डॉक्टर आये और बोले बाहर मीडिया वाले खड़े है और मंत्री आने वाले है, इस कारण लाश को कम्बल से ढककर बेड पर ही रखे रहो ताकि लगे बच्चा जिंदा है और उसका इलाज चल रहा है। यह घटना सिर्फ राम सकल के पोते के साथ ही नही  और बच्चो के साथ भी हुई जिनकी अस्पताल प्रशासन  की लापरवाही या ऑक्सीज़न की कमी के कारण मौत हुई।

रामसकल ने यह भी बताया कि बीआर डी के डॉक्टर बच्चो की मौतों को छिपाने का ही प्रबंध कर रहे थे और इस बीच जिंदा बच्चो के परिजन यदि कोई मांग करते तो उन्हें गाली देकर चुप करा दिया जाता या अस्पताल से बाहर कर दिया जाता।

राम सकल 9 तारीख को बच्चे को लेकर अस्पताल आये थे,10 तारीख की रात को अस्पताल में आक्सीजन खत्म होने से हड़कंप मच गया,तीमारदार सब घबरा गए। बताया गया कि आक्सीजन आ रही है और बच्चो का इलाज चलता रहा। मेरे पोते की हालत बिगड़ने लगी और शनिवार सुबह से उसे झटके आने लगे और दोपहर को उसने दम तोड़ दिया।

यह घटना डॉक्टरों के मरीजो के प्रति असहनशीलता को दर्शाती है।मरीज व उनके तीमारदार डॉक्टरों को भगवान समझते है जबकि डॉक्टर अपनी इंसानियत खोकर लाशों का भी इलाज दिखाकर अपनी नौकरी बचाने में लगा रहता है। प्रांती वर्ष इतने बच्चो की बीमारी और मौत को देखकर गोरखपुर के डॉक्टर भी अब बेरहम होते दिखाई देने लगे है। गलत हलफनामा देकर प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले गोरखपुर मेडिकल कालेज के बड़े बड़े चिकित्सक भी अपने बचाव में बड़े बड़े लोगो का सहारा लेते दिखाई दे रहे है।

 

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