मलयालम राइटर सारा ने लौटाया अवॉर्ड, कहा- दादरी पर PM का बयान डिप्लोमैटिक

नई दिल्ली। देश की कल्चरल डायवर्सिटी और लेखकों पर हो रहे हमलों पर साहित्यकारों की नाराजगी का सिलसिला जारी है। शनिवार को जानी मानी मलयालम नॉवेलिस्ट सारा जोसफ ने भी अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा दिया। उन्होंने कहा कि दादरी पर पीएम का बयान केवल डिप्लोमैटिक था। वहीं, मलियाली भाषा के कवि के. सच्चिदानंद ने साहित्य अकादमी से इस्तीफा दिया है। बता दें कि सारा से पहले कवि अशोक वाजपेयी और राइटर नयनतारा सहगल भी अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा चुकी हैं। शुक्रवार को राइटर शशि देशपांडे ने भी साहित्य अकादमी की जनरल काउंसिल से इस्तीफा दे दिया था।
क्यों लौटा रहे हैं अवॉर्ड?
लेखकों पर हो रहे हमले, देश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने और दादरी जैसे मामलों को कारण बताते हुए राइटर्स अपने अवॉर्ड लौटा रहे हैं।
* साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाते हुए सारा ने दादरी की घटना का जिक्र करते हुए पीएम मोदी पर भी निशाना साधा। “उन्होंने कहा कि घटना के नौ दिन बाद एक व्यक्ति की मौत पर आया पीएम का बयान बेहद डिप्लोमैटिक था। बीफ बैन पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को क्या खाना और पीना यह उन्हें चुनने का अधिकार है।” बता दें कि सारा को उनके नॉवेल ‘आल्हायुदे पेनमक्कल'(doughte of god the father) के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड दिया गया था।
* जानी मानी राइटर शशि देशपांडे ने साहित्य अकादमी की जनरल काउन्सिल से शुक्रवार को इस्तीफा दिया था। उन्होंने अकादमी के चेयरमैन को लेटर लिखा, ”मैं ऐसी घटनाओं पर अपना विरोध जताती हूं और उम्मीद करती हूं अकादमी सिर्फ राइटर्स के लिए प्रोग्राम कराने और अवॉर्ड देने तक नहीं रहेगा। उम्मीद है कि अकादमी इंडियन राइटर्स से जुड़ी प्रॉब्लम्स पर ध्यान देगा। फ्रीडम टू स्पीक राइट का ख्याल रखा जाएगा।” शशि को साल 1990 में नॉवेल ‘देट लॉंग साइलेंस’ के लिए साहित्य अकादमी और 2009 में पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।
* पंडित जवाहरलाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल अपना अवॉर्ड लौटाते हुए कहा था- हाल में ही वाइस प्रेसिडेंट डॉ. हामिद अंसारी को हमें यह याद दिलाने की जरूरत महसूस हुई कि संविधान सभी भारतीयों को ‘विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था व उपासना’ की आजादी का वादा करता है। असहमति का अधिकार इस संवैधानिक गारंटी का अभिन्न हिस्सा है। अंधविश्वासों पर सवाल उठाने वाले तर्कवादियों, हिंदू धर्म की बदसूरत व खतरनाक विकृति-हिंदुत्व के किसी पहलू पर सवाल उठाने वालों के अधिकार छीने जा रहे हैं। हत्याएं तक हो रही हैं।
* अवॉर्ड लौटाते हुए साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने भगवा विचारधारा पर निशाना साधते हुए कहा था ,”यह बांझ विचारधारा है। इस विचार को मानने वालों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इन्हें साहित्य, इतिहास और संस्कृति की कोई समझ नहीं होती है।” अपने फैसले के बारे में अशोक वाजपेयी ने कहा ” एक व्यक्ति की सिर्फ इस अफवाह पर हत्या कर दी गई कि उसने गोमांस खाया था? प्रधानमंत्री को ऐसा अपराध करने वालों को रोकना होगा। जिन लोगों को कुचला जा रहा है, रौंदा जा रहा है, उन्हें बचाने के लिए हम जैसे लोगों को आगे आना होगा।”
अब तक किसने लौटाया साहित्य अकादमी पुरस्कार?
* सारा जोसफ
* अशोक वाजपेयी
*नयनतारा सहगल
*उदय प्रकाश
*उदय प्रकाश
साहित्य अकादमी से दिया इस्तीफा
* शशि देशपांडे
*के. सच्चिदानंद
साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले कन्नड़ साहित्यकार
>वीरान्ना माडीवलार
>टी सतीश जावरे गौड़ा
>संगामेश मेनासिखानी
>हनुमंत हालीगेरी
>श्रीदेवी वी अलूर
>चिदानंद
>टी सतीश जावरे गौड़ा
>संगामेश मेनासिखानी
>हनुमंत हालीगेरी
>श्रीदेवी वी अलूर
>चिदानंद
क्या है साहित्य अकादमी अवॉर्ड?
साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की शुरुआत 1954 से की गई। यह पुरस्कार हर साल भारतीय भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य को दिया जाता है। इसमें एक ताम्रपत्र के साथ 1 लाख रुपए दिए जाते हैं। हर साल अनुवाद साहित्य, बाल साहित्य और युवा लेखन पुरस्कार भी दिए जाते हैं। 1955 से अब तक तकरीबन 60 लोगों साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया जा चुका है। सबसे पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार माखनलाल चतुर्वेदी को 1955 में ‘हिमतंरगिणी’ के लिए दिया गया था। आचार्य नरेंद्र देव को 1957 में बुद्ध धर्म शास्त्र के लिए मरणोपरांत यह पुरस्कार दिया गया। साल 1962 में यह पुरस्कार किसी भी लेखक को नहीं दिया गया था।
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