महाराष्ट्र : यूं हीं नहीं चले गये अजित बीजेपी के खेमे में

राजेश श्रीवास्तव
महाराष्ट्र में सियासत की जो इबारत लिखी गयी वह पुरानी पर बेमिसाल ही कही जायेगी। मात्र रात के दो-तीन घंटों में ही पूरी तस्वीर बदल गयी और जब सियासत दां नींद से जागे तो देवेंद्र फडनवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थ्ो। दरअसल इस पूरे घटनाक्रम को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि रातों-रात महाराष्ट्र की सियासत की दिशा बदलने वाले अजित पवार कौन हैं। मालुम हो कि अजित पवार पर सिचाई घोटाले में शामिल होने का आरोप है। उन पर महाराष्ट्र के 7० हजार करोड़ रुपये के सिचाई घोटाले में शामिल होने के आरोप हैं।

अजित के राज्य के सिचाई मंत्री के तौर पर कार्यकाल के दौरान ये घोटाला हुआ था। सिचाई घोटाले में उन पर लगे आरोपों के कारण उन्होंने 2०12 में उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था। इसके अलावा उन्होंने अन्य मंत्री पदों से भी इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस-गएघ् सरकार पर संकट पैदा हो गया था।

अजित पवार पर महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले में भी गंभीर आरोप लगे हैं और मामले में उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का नोटिस मिल चुका है। अजित इस बैंक के निदेशक रह चुके हैं और इस दौरान बैंक पर चीनी मिलों को कम दरों पर कर्ज देने, दिवालियों की संपत्ति कम कीमत पर बेचने और पुराना लोन न चुकाने के बावजूद दोबारा कर्ज दिए जाने के आरोप हैं। इससे बैंक को कथित तौर पर 25,००० करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इतना पढ़ने के बाद तो काफी कुछ साफ हो गया होगा कि भाजपा को अजित का समर्थन हासिल करने में ज्यादा देर क्यों नहीं लगी।

केवल यही नहीं, राजनीतिक उत्तराधिकार के लिए पवार परिवार में लड़ाई, शरद पवार की छाया से बाहर निकलने की इच्छा और घोटालों के आरोपों के इतिहास को देखते हुए अजित पवार का भाजपा के साथ जाना बहुत ज्यादा चौंकाने वाला नहीं लगता। असली सवाल ये है कि क्या उन्होंने इसके लिए बगावत की है और एनसीपी दो हिस्सों में बंट चुकी है या फिर ये पूरा सियासी ड्रामा शरद पवार के आशीर्वाद से हुआ है और अभी केवल दिखावा किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो इस पूरी पटकथा को तभी लिख लिया गया था जब एनसीपी के शरद पवार ने किसान मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी से 4० मिनट तक बंद कमरे में बातचीत की थी।

इसी का नतीजा है कि उनकी बेटी सुप्रिया भी केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने जा रही हैं। पवार अभी भले ही कुछ बोले रहे हों लेकिन ऐसा नहीं कि बिना उनकी मर्जी के अजित पवार ने कोई ताना-बाना बुना हो। पवार की पावर पालिटिक्स को जो जानता-समझता है वह जानता है कि इस पूरे गेम में वह ही सबसे ज्यादा फायदे में हैं। पवार ने अपने सियासत भी चमकायी। कांग्रेस और शिवसेना के करीबी भी बने रहे। महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना को पछाड़ कर दूसरे नंबर पर आने में सफलता बनायी।

कांग्रेस को भी हाशिये पर छोड़ा और जनता की नजरों में भाजपा के विरोधी भी बने हुए हैं। असल में तो पवार अब जो भी कर रहे हैं सब दिखावे की राजनीति हैं। उन्हें ऐसे ही नहीं पद्मश्री और सर्वश्रेष्ठ सांसद की पदवी से नवाजा जा चुका है। ऐसा इसलिए भी माना जा रहा है। यह जरूर है कि रात होते-होते उन्होंने शिवसेना और कांग्रेस को अपने साथ दिखाने के लिए कड़े तेवर अपनाये और अपने भतीजे अजीत पवार के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें विधायक नेता के पद से हटा दिया।

कहानी की शुरुआत रात 11:45 बजे होती है जब अजित पवार बीजेपी के साथ डील पर मुहर लगाते हैं। इसकी सूचना पार्टी प्रमुख को देवेंद्र फडणवीस देते हैं और शपथ ग्रहण की तैयारी की जानकारी कांग्रेस और शिवसेना को ना हो इसका इंतजाम करते हैं। इससे पहले राज्यपाल दिल्ली की अपनी यात्रा रद्द कर चुके थे। रात 2 बजे के करीब राज्यपाल के सचिव को बहुमत की जानकारी दी जाती है और यह अनुरोध किया जाता है कि राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाए। राज्यपाल सचिव की तरफ से कहा जाता है कि 2 घंटे में राष्ट्रपति शासन हटाने की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।

सुबह 7:3० बजे तक शपथग्रहण की व्यवस्था हो जाएगी। इस बीच रात 1:45 बजे से लेकर सुबह 9 बजे तक अजित पवार बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ ही रहे और शपथ ग्रहण होने तक नहीं गए। सरकार बनाने के लिए सुबह 5:3० बजे देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार राजभवन पहुंचे और बहुमत का आंकड़ा पेश किया। राज्यपाल की ओर से राष्ट्रपति शासन हटाने की अधिसूचना जारी कर दी गई, लेकिन इसकी घोषणा सुबह 9 बजे हुई। सुबह 7:5० बजे शपथ ग्रहण शुरू हो गया। बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली उसके बाद एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पीएम मोदी ने ट्विटर पर बधाई दी।

 

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