मां की गोद से फिसल बच्चा जन्नत पहुंचा, दुनिया में बहस

सीरियाई मासूम की तस्वीर के सामने रोई दुनिया

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तीन साल के एलन कुर्दी की इस फोटो  ने आईएसआईएस के आतंक और उसकी वजह से यूरोप में रिफ्यूजियों की समस्या को लेकर दुनिया में बहस खड़ी कर दी है। उसके पिता अब्दुल्ला  ने कहा कि उन्हें इस बात का अफसोस पूरी जिदंगी रहेगा कि वे अपने बच्चे को बचा नहीं पाए।
अंकारा। तीन साल का एलन कुर्दी अपने पांच साल के भाई और मां के साथ समंदर में डूब गया। पूरा परिवार 12 अन्य लोगों के साथ जंग से जूझ रहे सीरिया से निकलकर यूरोप जा रहा था। नाव समुद्र में पलट गई। एलन के पिता अब्दुल्ला बच गए। उन्होंने कहा- ‘मेरे दोनों बच्चे सबसे खूबसूरत थे। नाव में मां की गोद में सिमटे थे कि नाव डूब गई। मैंने बचाने की कोशिश की, लेकिन हाथों से फिसलते गए। आंखों के सामने समंदर में समा गए। मैं चाहता हूं कि पूरी दुनिया की नजर इस घटना पर जाए ताकि यह दोबारा किसी और के साथ न हो। यह बस आखिरी हो।” बच्चे का शव तुर्की के मुख्य टूरिस्ट रिजॉर्ट के पास समुद्र तट पर औंधे मुंह पड़ा मिला। तस्वीर के सामने आते ही पूरी दुनिया में बहस छिड़ गई।

दुनियाभर में एलन की फोटो छापने और न छापने पर खूब बहस हुई। कई अखबारों में छपा भी। ला-रिपब्लिका (इटली) ने हेडिंग दी- ‘दुनिया को खामोश करती एक उदास तस्वीर।’ इंग्लैंड के द सन ने लिखा ‘ ये जिंदगी और मौत है।’ डेली मिरर ने ‘असहनीय हकीकत’ बताया। मेट्रो ने लिखा- ‘यूरोप बचा नहीं सका।’ द टाइम्स ने कहा- ‘बंटे हुए यूरोप का चेहरा।’ डेली मेल ने लिखा- ‘मानवीय आपदा का मासूम शिकार।’ आम लोगों के साथ-साथ सरकारों के बीच भी बहस छिड़ी। जर्मनी ने कहा कि यूरोप के सभी देश रिफ्यूजियों को जगह देने से इनकार करने लगेंगे तो इससे ‘आइडिया ऑफ यूरोप’ ही खत्म हो जाएगा। ये बच्चा बच सकता था, यदि यूरोप के देश इन लोगों को शरण देने से इनकार नहीं करते। तुर्की के प्रेसिडेंट रीसेप अर्डान ने जी20 समिट में यहां तक कह दिया कि इंसानियत को इस मासूम की मौत की जिम्मेदारी लेनी होगी। गुरुवार शाम तक जर्मनी और फ्रांस ने एलान किया कि शरणार्थियों के लिए यूरोपीय देशों का कोटा तय होगा। मौजूदा नियम में भी ढील दी जाएगी। ताकि लोगों का आना आसान हो। यूएन रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल में 1.60 लाख लोग समुद्र के रास्ते ग्रीस आ चुके हैं। जनवरी से अब तक तीन हजार लोगों की मौत हो चुकी है।  एलन की तस्वीर लेने वाले फोटोग्राफर निलुफेर देमीर ने कहा, ”मैंने बच्चे को तट पर देखा। मुझे लगा कि इस बच्चे में अब जिंदगी नहीं बची है, तो मैंने तस्वीर लेने की सोची। ताकि दुनिया को बताया जा सके कि हालात कितने खराब हो चुके हैं।”

एक लोकल रिपोर्ट के मुताबिक, अब्दुल्ला ने कहा, ”उन्होंने अपने परिवार को ग्रीस ले जाने के लिए तस्करों को दो बार पैसे दिए, लेकिन उनकी हर कोशिश नाकाम रही। इसके बाद, हमने एक बोट पर सवार होकर पहुंचने की कोशिश की। बोट के पानी में जाने के चार मिनट बाद ही कैप्टन ने बताया कि वह डूबने वाली है। तेज लहरों की वजह से बोट पलट गई। हम अंधेरे में चीख रहे थे। मेरी आवाज मेरी पत्नी और बच्चे नहीं सुन सके।”
यूरोपियन यूनियन ने 16 सितंबर को होने वाली मीटिंग में इस संकट से निकलने के रास्ते पर विचार करने का फैसला किया है। ब्रिटेन के पीएम ने कहा कि वे ‘हजारों’ रिफ्यूजियों को अपनाने को तैयार हैं। उन्होंने शरण दिए जाने को लेकर देश के कानून की समीक्षा के आदेश दे दिए हैं। बता दें कि बच्चे की मौत के बाद ब्रिटेन के पीएम आलोचकों के निशाने पर हैं। उनका कहना है कि कैमरन देश को शर्मिंदा कर रहे हैं। फिलहाल इस मुद्दे पर सभी देशों की एकराय नहीं बन पाई है। कोटा सिस्टम रिजेक्ट किया जा चुका है। यूरोपीय देशों में आपस में ही मतभेद सामने आ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि कुछ देश इस संकट से ज्यादा प्रभावित हैं। इनके यहां बहुत ज्यादा रिफ्यूजी पहुंच रहे हैं, इसलिए इन पर रिफ्यूजियों के साथ सख्ती करने का दबाव बन रहा है। हंगरी ने सर्बिया के बॉर्डर पर 175 किमी लंबी बाड़ लगाई है। वहीं, ब्रिटेन ने जनवरी 2014 के बाद से महज 216 सीरियाई रिफ्यूजियों को अपनाया है। तुर्की ने 20 लाख रिफ्यूजियों को अपनाया है। वहीं, पूरे यूरोप ने बीते चार साल में महज 2 लाख लोगों को शरण दी। तुर्की के प्रेसिडेंट ने तो यहां तक कह दिया कि 28 देश मिलकर यह डिस्कस कर रहे हैं कि 28 हजार रिफ्यूजियों को आपस में कैसे बांटे।
जानें पूरी समस्या के बारे में….
 >क्या है यूरोपियन माइग्रेशन संकट
इस साल जुलाई तक 4 लाख 38 हजार लोग यूरोपीय देशों में शरण मांग चुके हैं। बीते साल ही 5 लाख 71 हजार लोग यूरोप में शरण ले चुके हैं। रिफ्यूजियों की यह बढ़ती तादाद यूरोपीय देशों के लिए संकट बन गया है। खास तौर पर शेंगेन देशों में। शेंगेन एरिया के अंतर्गत कुल 26 यूरापीय देश आते हैं, जिन्होंने कॉमन बॉर्डर पर पासपोर्ट और दूसरे किस्म के बॉर्डर कंट्रोल हटा लिए हैं। कॉमन वीजा पॉलिसी के तहत यह पूरा इलाका एक देश की तरह काम करना है। यहां लोगों की आवाजाही पर पाबंदी नहीं है। यूरोपीय देशों में शरण लेने की कोशिश करने वाले लोग अधिकतर भूमध्य सागर के जरिए वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं। जिन देशों में ये जाते हैं, वहां इनके लिए खाना, छत और हेल्थ सर्विसेज मुहैया कराने में सरकार को दिक्कतें आती हैं।
>कहां से आ रहे रिफ्यूजी और क्यों 
पश्चिमी एशिया और नॉर्थ अफ्रीका के जंग से प्रभावित इलाके। इसके अलावा, गरीब यूरोपीय देशों से।
अधिकतर लोग सीरिया और लीबिया से पहुंच रहे हैं, जहां बीते चार साल से गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है। यहां आईएसआईएस ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। इसके अलावा, अफगानिस्तान, इराक, नाइजीरिया से भी लोग गरीबी और जंग से परेशान होकर यूरोप जाना चाहते हैं। यूरोप से आने वाले रिफ्यूजियों की बात करें तो वे कोसोवो और सर्बिया जैसे देशों से हैं।
 >कैसे पहुंचते हैं यूरोप?
इस साल ग्रीस के बॉर्डर पर सबसे ज्यादा रिफ्यूजी शरण लेने पहुंचे। इनमें से अधिकतर सीरिया के लोग थे, जो तुर्की तक बोट्स में सवार होकर पहुंचे। छोटी-छोटी नावों में बैठकर ये ट्यूनीशिया या लीबिया से इटली पहुंचने की कोशिश करते हैं। क्षमता से ज्यादा लोग इन नावों पर सवार होने की वजह से कई बार बड़े हादसे भी हुए। कुछ नाव लीबिया तट तक पहुंचने से पहले ही डूब गए। चंद लालची लोग इन लोगों की जान की परवाह न करते हुए इन्हें रबर के बने बोट्स में यूरोप भेजने की कोशिश करते हैं और बदले में लाखों कमाते हैं। ये बोट्स पानी पर तैरते ताबूत बनकर रह गए हैं। अब तक 3200 से ज्यादा लोगों की इस कोशिश में मौत हो चुकी है।
 

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