मायावती एक बार फिर प्रदेश के दलितों के साथ धोखा करने को तैयार, खिशक जायेगा बचा खुचा जनाधार

लखनऊ।  विरोधी दलों ने एक और जहाँ जगजीवन राम की बेटी को देश के सर्वोच्च पद से हराकर राजनीति से बाहर करने का सफल प्रयास किया है वही मायावती को भी क्रिकेट खिलाड़ियों की भांति राजनीति से सन्यास लेने का मार्ग दिखा दिया है।

विधान सभा चुनाव में दलितों की उपेक्षा कर मुसलमानो को अधिक टिकट देकर मायावती ने दलितों का विश्वास खो दिया था।परिणाम यह हुआ कि  विधान सभा चुनाव में ऐसी अप्रत्याशित हार मिली कि मायावती पुनः राज्य सभा का मोह देखने में  लायक भी नही रह गई।

बीएसपी के मूल मतदाताओं ने भी मायावती के विरोध में भाजपा को वोट देकर बगावत का बिगुल बजा दिया था। चुनाव से पूर्व ही मायावती के सबसे निकट रहे बसपा के मुख्य और प्रभावी नेताओ ने मायावती की हठवादिता से तंग आकर उनका साथ छोड़ दिया। सबसे निकट और विश्वासपात्र नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से निकाल कर मायावती से स्वंम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। अब संतीश मिश्रा के अलावा मायावती का कोई विश्वास पात्र नही है,यह भी कब तक मायावती के साथ रहते है आने वाला वक्त खुद ही बता देगा।

आज मायावती ने बिहार जी दलित मीरा कुमार जिन्हें 17 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था,के संबंध में मायावती ने अपनी जुबान पलट कर यूपी के दलित रामनाथ कोविंद  का विरोध कर मीराकुमार को समर्थन देने की घोषणा कर दी।

मायावती की जुबान पलटने का कारण यह नही कि मीराकुमार दलित है। इसके पीछे लालू यादव का वह बयान है जिसमे उन्होंने मायावती को बिहार से राज्य सभा भेजने की बात कही थी। इसी की लालचवश मायावती  उत्तर प्रदेश के दलित को छोड़कर बिहार की दलित को समर्थन देने की बात करने लगी। यह सर्वविदित है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए रामनाथ कोविंद की जीत 100%तय है। उनके सामने 17 दलो का समर्थन मिलने के बाद भी,यदि कोई अनहोनी न हो जाए तो, मीरा कुमार की हार सुनिश्चित है।

मीराकुमार की हार के साथ ही यूपी में मायावती की राजनीति का अंत होना भी  स्वाभाविक है क्योकि अब यूपी का कोई भी दलित किसी भी दशा में मायावती पर विश्वास नही करेगा ।

यहाँ एक बात का उल्लेख करना अनुचित न होगा कि रामनाथ कोविंद को समर्थन करने वाले वही दल या नेता है जिनके ऊपर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नही है, जबकि  मीराकुमार के समर्थन में जो भी नेता है  वे कही  न कही भ्रष्टाचार के  मामले में लिप्त है। कदाचित ‘चोर चोर मौसेरे भाई’  की कहावत राष्ट्रपति चुनाव में चरितार्थ होती दिखाई दे रही है।

अब अपनी शारीरिक अवस्था या उम्र का बहाना कर मायावती के पास क्रिकेट खिलाड़ियों की भांति राजनीति से सन्यास लेने के अलावा कोई रास्ता शेष  दिखाई नही देता है।

 

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