मायावती के परिवार और कई अफसरों तक पहुंचेगी यादव सिंह की आंच

तहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, लखनऊ। खुद की फर्जी कंपनियों के साथ साथ यादव सिंह ने नोएडा अथॉरिटी में रहे अलग-अलग अफसरों की पत्नियों के नाम पर भी कम्पनियाँ बनवा दी थी जिसमें अब तक 67 कंपनियों का पता चल चुका है. यादव सिंह का रसूख सूबे की हर सरकार में रहा है. बसपा शासन काल में उनकी तूती बोली तो वही वर्तमान सपा सरकार में भी उन्होंने अपने पत्ते फिट कर लिए थे. उन्हें लगातार क्लीन चिट मिलती रही. साथ ही तोहफे में नोएडा के अलावा ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी की चीफ इंजीनियरी भी मिल गई. जब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी, तब यादव सिंह नोएडा अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर थे और उन्होंने जमकर पैसा कमाया. 2012 में अखिलेश यादव की नई सरकार आई और उस पर शिकंजा कसने का नाटक हुआ. सीबीसीआइडी जांच भी हुई, लेकिन उन्हें फटाफट क्लीनचिट मिल गई. 1,000 करोड़ रु. की दौलत के मालिक बताए जा रहे यादव सिंह पैसा कमाने की वह सरकारी मशीन हैं, जिन्हें सजा देना तो दूर, हाशिए पर डालने की कोशिश भी उत्तर प्रदेश की कोई सरकार नहीं कर सकी. इस मामले को सबसे पहले भाजपा नेता किरीट सोमैया ने खोला था. और बाद में सामाजिक कार्यकर्त्ता नूतन ठाकुर ने इस पर जनहित याचिका दायर की थी.किरीट सोमैयाँ ने जो साक्ष्य पेश किये थे उसके अनुसार यादव सिंह ने बेनामी कंपनियों का जाल बुना है. कुछ सौ रुपए से शुरू होने वाली ये कंपनियां कुछ ही साल में करोड़ों रु. का कारोबार करने लगती हैं. ज्यादातर कंपनियों का मालिकाना हक उनकी पत्नी कुसुमलता, बेटे सनी और बेटियों करुणा और गरिमा के पास है. कोई कंपनी ऐसी नहीं है जिसका मालिक यादव सिंह खुद हों. यादव सिंह इस कोशिश में लगे रहे कि ईडी की कार्रवाई से पहले उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार विजिलेंस जांच बैठा दे ताकि मामला उनके लिए महफूज लखनऊ के गलियारों से बाहर न जाए. यादव सिंह इससे पहले भी 950 करोड़ रु. के नोएडा भूमि घोटाले में आरोपी रह चुके हैं. लेकिन तब उन्होंने एक नेता को इस बात के लिए मना लिया था कि जांच राज्य सरकार की सीबीसीआइडी करे ताकि मामला आसानी से सुलट जाए. यादव सिंह का एक दामाद उत्तर प्रदेश में आइएएस अफसर और दूसरा झारखंड में आइपीएस अफसर है. यूपी कैडर का आइएएस अफसर दामाद दो साल पहले ट्रेन में छेड़छाड़ के मामले में निलंबित हो चुका है. जब यादव सिंह के गिरफ़्तारी हुई थी तब खुलासा हुआ था कि उनके साथ काले कारोबार में बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैय्या का भी पैसा लगा है . यह जानकारी बसपा नेता मनोज तिवारी की डायरी से मिली थी । मनोज ने स्वीकार किया है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह माना था कि राजा भैया ने यादव सिंह से 150 करोड़ रुपए का लेनदेंन किया है। महेश गैंग का मनोज कभी राजा भैया का करीबी माना जाता था। बाद में नोएडा की एक प्रोपर्टी को लेकर इन लोगों में विवाद हो गया, और वह अलग-अलग हो गए। सत्ता को अपनी उंगलियों पर इस कदर नचाने का गुमान रखने वाला यह शख्स कभी आगरा के गरीब दलित परिवार में जन्मा था. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी यादव सिंह ने 1980 में जूनियर इंजीनियर के तौर पर नोएडा अथॉरिटी में नौकरी शुरू की. 1995 में प्रदेश में पहली बार जब मायावती सरकार आई तो 1995 में 19 इंजीनियरों के प्रमोशन को दरकिनार कर सहायक प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर तैनात यादव सिंह को प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर प्रमोशन दे दिया गया. साथ ही उन्हें डिग्री हासिल करने के लिए तीन साल का समय भी दिया गया. वर्ष 2002 में यादव सिंह को नोएडा में चीफ मेंटिनेंस इंजीनियर (सीएमई) के पद पर तैनाती मिल गई. अगले नौ साल तक वे सीएमई के पद पर ही तैनात रहे, जो प्राधिकरण में इंजीनियरिंग विभाग का सबसे बड़ा पद था. इस वक्त तक अथॉरिटी में सीएमई के तीन पद थे. यादव सिंह इससे संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने कई पद खत्म कराकर अपने लिए इंजीनियरिंग इन चीफ का पद बनवाया. बीजेपी सांसद किरीट सोमैया, जिन्होंने नवंबर 2011 में इस मामले को सबसे पहले उठाया था. पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट सोमैया ने यादव सिंह की फर्जी कंपनियों और उनके रातोरात बढ़ते टर्नओवर के जो साक्ष्य पेश किए. यादव सिंह ने बेनामी कंपनियों का जाल बुना है. कुछ सौ रुपए से शुरू होने वाली ये कंपनियां कुछ ही साल में करोड़ों रु. का कारोबार करने लगती हैं. ज्यादातर कंपनियों का मालिकाना हक उनकी पत्नी कुसुमलता, बेटे सनी और बेटियों करुणा और गरिमा के पास है. कोई कंपनी ऐसी नहीं है जिसका मालिक यादव सिंह खुद हों. इनमें से एक कंपनी है चाहत टेक्नोलॉजी प्रा. लि. इस कंपनी का दफ्तर 612, गोबिंद अपार्टमेंट्स, बी-2, वसुंधरा एन्कलेव, दिल्ली 96 दिखाया गया है. इसके मालिकान में यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता भी शामिल हैं. 2007-08 में इस कंपनी की कुल परिसंपत्ति और कारोबार 1,856 रु. और पेड अप कैपिटल 100 रु. थी. लेकिन एक साल में ही इस कंपनी ने ऐसा कारोबार किया कि पेड अप कैपिटल 1 लाख रु. और कंपनी की नेट फिक्स्ड परिसंपत्ति 5.47 करोड़ रु. हो गई. यानी हजार रु. की कंपनी एक साल में पांच करोड़ की कंपनी बन गई. एक और कंपनी है कुसुम गारमेंट्स प्रा. लि., कंपनी का कार्यालय बी-144, न्यू अशोक नगर, दिल्ली 96 है. इस कंपनी में यादव सिंह की पत्नी, दोनों बेटियां और बेटा डायरेक्टर हैं. 2007 में इस कंपनी का टर्नओवर 2,300 रु. और पेड अप कैपिटल 100 रु. थी. अगले ही साल कंपनी की मार्केट वैल्यू 2 करोड़ रु. हो गई. आयकर विभाग के मुताबिक अकेले कुसुमलता के नाम पर 40 से ज्यादा कंपनियां हैं. इनमें से ज्यादातर कंपनियां 2007 में यानी मायावती सरकार बनने के बाद वजूद में आईं.
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