मालेगांव धमाका: ATS बनाम NIA, एक ही केस में 2 अलग-अलग कहानियां

प्रज्ञा सिंह ठाकुर उर्फ साध्वी प्रज्ञा
प्रज्ञा सिंह ठाकुर, उर्फ साध्वी प्रज्ञा को 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार किया गया था। उस समय इस मामले की जांच कर रही ATS ने कहा कि प्रज्ञा इस धमाके की मुख्य साजिशकर्ता हैं। जिस बाइक में बम रखा गया था, वह प्रज्ञा के नाम पर ही पंजीकृत था। इस मामले में एक अन्य आरोपी सुधाकर द्विवेदी ने ATS को दिए गए अपने बयान में कहा था कि प्रज्ञा ने ही उन्हें कर्नल पुरोहित से यह कहने को कहा था कि वह (कर्नल) प्रज्ञा के 2 सहयोगियों, रामजी कलसांगरा और संदीप डांगे को बम मुहैया कराएं।
एक अन्य गवाह ने ATS को बताया कि उसने पुरोहित को मुस्लिमों से बदला लेने की बात करते हुए सुना था और प्रज्ञा ने कर्नल को पूरी मदद देने का आश्वासन दिया था। इससे बिल्कुल अलग NIA का कहना है कि प्रज्ञा के खिलाफ मामला चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। NIA ने कहा कि बाइक जरूर प्रज्ञा के नाम से पंजीकृत थी, लेकिन उसका इस्तेमाल लंबे समय से रामचंद्र कलसांगरा ही कर रहा था। रामचंद्र अभी भी फरार है।
श्याम साहू
एक अन्य आरोपी श्याम साहू को भी 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार किया गया। साहू के बारे में ATS ने कहा कि साहू की ही मोबाइल रिचार्ज की दुकान से कलसांगरा और प्रज्ञा का मोबाइल रिचार्ज करवाया जाता था। साहू ने ही अलग-अलग नामों से 5 फर्जी सिम कार्ड भी दिए थे। NIA ने कहा कि 2008 में सिम कार्ड को लेकर सख्त नियम नहीं थे। ऐसे में साहू ने दोस्ती के कारण सिम कार्ड दिए थे। NIA के मुताबिक साहू का इस धमाके से संबंध साबित करने के लिए उनके पास जो जानकारियां हैं, वे नाकाफी हैं।
जगदीश महात्रे
जगदीश महात्रे को 23 नवंबर 2009 को गिरफ्तार किया गया। ATS ने महात्रे को गिरफ्तार करते हुए कहा था कि वह आरोपी राकेश धावड़े के दोस्त हैं और उन्होंने ही बम बनाना सिखाया था। साथ ही हथियार भी मुहैया कराए थे। पुरोहित के लिए बंदूक खरीदने का आरोप भी इन्हीं पर लगाया गया था। इससे उलट NIA ने कहा कि महात्रे को केवल गैरकानूनी तरीके से हथियार खरीदने और बेचने के लिए आरोपी बनाया जा सकता है। NIA के मुताबिक इस धमाके में महात्रे की भूमिका साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।
शिव नारायण कलसांगरा
शिव नारायण को भी 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार किया गया। बम रखने के आरोपी रामचंद्र कलसांगरा के भाई शिव नारायण ने ATS को बताया था कि उनके भाई ने उन्हें 2 इलेक्ट्रॉनिक टाइमर संभाल कर रखने को कहा था। उन्होंने इंदौर की वह जगह भी दिखाई जहं उसने टाइमर को छुपाया था। इन्हीं टाइमर्स का इस्तेमाल धमाके में किया गया।
ATS से अलग NIA ने कहा कि शिव नारायण के पास से बरामद टाइमर्स पर कोई विशेष पहचान चिह्न नहीं है, जिससे कि पता लगाया जा सके कि उनका इस्तेमाल धमाके में हुआ। NIA ने यह भी कहा है कि धमाके में उनकी भूमिका साबित करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है।
प्रवीण टक्काल्की
इन्हें ATS ने 1 फरवरी 2011 को गिरफ्तार किया। इनपर पुरोहित का सहयोगी होने का आरोप लगा। कहा गया कि उन्होंने भी राकेश धावड़े से बम बनाने की ट्रेनिंग की। इनके ऊपर उस घर में मौजूद होने का भी आरोप है जहां कि धमाके में इस्तेमाल होने वाला बम बनाया गया। इसी घर से ATS को RDX भी मिला था।
चूंकि इस मामले से मकोका की धारा हटा दी गई है, ऐसे में टक्काल्की के बयान का कोई महत्व नहीं है। NIA ने कहा कि टक्काल्की की धमाके में संलिप्तता साबित कर सकने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
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