मुलायम की छोटी बहू अपर्णा के कान्हा उपवन पर हो सकता है सरकार का कब्जा

लखनऊ। मुलायम सिंह यादव से परिवार जैसा रिश्ता रखने वालों की लिए निश्चय ही यह बुरी खबर है! एक अरसे के बाद परम गोभक्त मुख्य मंत्री योगी के सामने आखिर मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधू अपर्णा यादव के कान्हा उपवन की सारी असलियत के सामने आ जाने से योगी कोई कठोर फैसला ले सकते हैं। सरकारी दस्तावेजों से यह पता चल गया है कि अपर्णा यादव के एनजीओ जीवाश्रय को लीज पर दी गयी 54 एकड जमीन और उस पर निर्मित भवन लखनऊ नगर निगम की संपत्ति है। अखिलेश यादव की सरकार के कालखंड में नगर निगम लखनऊ ने इसे उनके छोटे भाई कहे जाने वाले प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव के एनजीओं को लीज पर दे दिया था। हॉलाकि, अपर्णा और प्रतीक यादव के विशेष आग्रह पर मुख्य मंत्री योगी के कान्हा उपवन जाने से पहले ही उपमुख्य मंत्री डा0 दिनेश शर्मा ने उन्हें इस बात की पूरी जानकारी दे दी थी। इसके बावजूद, स्वयं मौके पर जाकर हर कुछ समझने की गरज से योगी वहां जाने के बाद असलियत को और अच्छी तरह समझने का प्रयास किया था।

बहरहाल, उस समय योगी के अपर्णा यादव के कान्हा उपवन जाने को लेकर तरह तरह की चर्चाओं का बाजार काफी गरम रहा। इसमें सबसे धमाकेदार चर्चा यह थी कि अपर्णा यादव भी पहाड की हैं और योगी भीं। दोनों ही विष्ट(पर्वतीय ठाकुर) हैं। दोनों के बीच कुछ पारिवाकिर रिश्ते भी हो सकते हैं। उनकी सत्य और कर्तव्यनिष्ठा तक पर अंगुलि उठायी गयी। यहाँ तक कहा गया कि यह योगी नहीं, शेर की खाल ओढे सियार है। ऐसे ही और भी न जाने क्या क्या? लेकिन, यह सब सुन समझकर भी योगी विचलित नहीं हुए और गये।

कान्हा उपवन लखनऊ नगर निगम की जमीन पर चल रहा है। मायावती सरकार के समय में इस जमीन को शहर के आवारा पशुओं को रखने के लिये आवंटित कर दिया गया था। उनके बाद अखिलेश यादव की सरकार बनी, तो उनकी सरकार ने यह जमीन अपर्णा यादव के एन.जी.ओ. को बहुत ही सस्ती लीज पर दे दिया। इसके बाद अपर्णा यादव ने इस जमीन पर अपना डेरीफार्म स्थापित कर लिया। नतीजतन, यहां शहर के आवारा पशुओं को लाकर रखने पर रोक लगा दी गयी। अब इस डेरीफार्म में रोजाना लगभग तीन सौ लीटर दूध का उत्पादन होता है। अखिलेश सरकार की मेहरबानी से  नगर निगम लखनऊ ने लावारिश पशुओं के रखरखाव के नाम पर अपर्णा यादव के एनजीओं को  हर साल एक करोड रु अनुदान देेना भी शुरू कर दिया।

प्रदेश मे योगी सरकार के बनने के बाद अपर्णा यादव को इस जमीन को बचाने की चिंता हुई। लिहाजा, बडी सूझबूझ का परिचय देते हुए उन्होंने सबसे पहले मुख्य मंत्री योगी के परम गोभक्त होने की कमजोर नस को पकड लिया। इसके बाद उनसे तीन बार मुलाकात कर उन्हें अपनी कथित गोशाला में आने के लिये तैयार भी कर लिया। इसके लिये वह योगी से तीन बार मिली थी। इनमें से एक मुलाकात अतिगोपनीय बतायी गयी है। उन्हे लगा होगा कि मुख्य मंत्री योगी के जाने के बाद नौकरशाहों में उनकी ओर देखने तक की हिम्मत नहीं होगी। मुश्किल नहीं, कि योगी से पारिवारियक रिश्ते को लेकर उडाई गयी दूसरी चर्चाए भी बडे सुनियोजित ढंग से करायी गयी हो। वैसे, अपर्णा की दूरदर्शिता की दाद तो देनी ही होगी, जिसकी बदौलत उन्होंने प्रधान मंत्री मोदी का सही आकलन कर उनकी कई बार सार्वजनिक रूप से सराहना भी कर चुकी थीं।

बहरहाल, मुख्य मंत्री योगी के कान्हा उपवन जाने के निर्णय से उपमुख्य मंत्री डा0 दिनेश शर्मा बहुत चिंतित थे। इसलिये उन्होंने पहले ही योगी को अपर्णा यादव के इस इरादे के प्रति सतर्क कर दिया था। इनके अलावा, मुख्य मंत्री को आगाह करने वालों में रिटायर्ड आई.ए.एस. सूर्य प्रताप सिंह जैसे कुछ बुद्धिजीवी भी थे। इन सब ने मुख्य मंत्री योगी को बडे तर्कसंगत ढंग से आगाह करने की कोशिश की थी।

 

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार  दीपक शर्मा ने अपने आलेख में एक स्थान पर लिखा था कि-योगी जी हम आपकी सादगी और सत्यनिष्ठा के कायल हैं। आपकी सत्यनिष्ठा पर हमे पूरा भरोसा है। सपा के भ्रष्ट नेता और अफसरों से बचिये। काली कमाई के साझीदारों से बचिये। जिन लोगों ने यूपी को लूटा है, वे आपके मुजरिम हैं, मेहमान नहीं। जिस प्रदेश को आपने अन्त्योदय का वचन दिया है, वहां भ्रष्ट राजनीति की मेजबानी से बचिये। ये रावण हैं। दूर रहिये इनसे। इन्होंने हिरन की जगह आपको फुसलाने के लिये गाय का सहारा लिया है। इन्हें पहचानिये। ये आपकी निष्ठा हर लेंगे।

दीपक शर्मा ने उस वक्त  रिपोर्ट में योगी जी को संबोधित एक और अहम टिप्पणी की थी- -‘यह वही प्रतीक यादव हैं, जो गायत्री प्रजापति के सबसे नजदीकी रहे हैं।…यह वही प्रतीक यादव हैं, जो संजय सेठ जैसे अरबपति बिल्डर के साझीदार रहे हैं और नोयडा से लेकर लखनऊ तक सबसे महंगी जमीनों पर काबिज हुए हैं। यह वही प्रतीक यादव हैं, जिन्होंने पांच करोड रु की लंबोर्गिनी कार से चुनाव प्रचार किया था और जिनकी अकूत दौलत अब केंद्रीय एजेंसियों के राडार पर है।

इसी तरह उत्तर प्रदेश के ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्त वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि-‘नगर निगम ने इस पशु आश्रयस्थल को निर्माण लावारिस पशुओं को रखने के लिये किया था। पूर्व मुख्य मंत्री मायावती ने सात अगस्त 2010 को इसका उद्घाटन किया था।  अखिलेश सरकार ने बिना किसी विज्ञापन के निकाले ही 54 एकड जमीन और भवन सहित इसे दीर्घकालीन लीज पर अपर्णा यादव के जीव आश्रय नामक एनजीओं को दे दिया था……..जिस दिन मुख्य मंत्री योगी यहां गये थे उसके कुछ दिन पहले ही कुछ गायों को यहां लाकर रख दिया गया था। इस भूमि की कीमत 15 सौ करोड रु से भी अधिक है।‘

लेकिन, ऐसी ही तमाम चेतावनियों से प्रभावित हुए बिना एक अत्यंत परिपक्व और सूझबूझ के राजनेता की तरह मुख्य मंत्री योगी ने अपना काम अपने ढंग से ही किया।असलियत जान लेने के बाद भी उन्होंने अपनी मंशा की भनक किसी को भी नहीं लगने दी। इसी का नतीजा रहा है कि अखिलेश सरकार के कालखंड में प्रदेश में जगह जगह बडे व्यापक पैमाने पर सरकारी जमीनों पर किये गये अवैध कब्जों को हटाने के लिये उन्होंने एंटी भूमाफिया आपरेशन की शुरुआत कर दी है। इसी की चपेट में अब अपर्णा यादव के एनजीओ जीवाश्रय के तहत कान्हा उपवन के भी आने की आशंका है। खबर है कि इसी मकसद से अपर्णा यादव के एनजीओ के साथ हुए कागजात निकलवाये जा चुके हैं। इस बारे में कानूनी राय भी ली जा चुकी है। इस स्थिति में इस करार को रद्द कर नगर निगम गोशाला को अपने कब्जे में ले सकती है। निस्संदेह, इसे मुलायम सिंह यादव के परिवार के लिये खतरे की घंटी कहा जा सकता है।

 

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