मैंने गाँधी को क्यों मारा :- नाथूराम गोडसे का यह था अंतिम बयान

क्या आप जानते है नाथूराम गोडसे गाँधी को क्यों मारा था! आज हम बताएँगे गोडसे का क्या था अंतिम बयान! इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगों की आँखें गीली हो गयी थीं और कई तो रोने लगे थे!एक न्यायाधीश महोदय ने अपनी टिप्पणी में लिखा था! कि यदि उस समय अदालत में उपस्थितलोगों को जूरी बना दिया जाता! और उनसे फैसला देने को कहा जाता, तो निस्संदेह वे प्रचण्ड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्णय देते!
एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण! मैं हिन्दू धर्म, हिन्दू इतिहास और हिन्दू संस्कृति की पूजा करता हूँ!इसलिए मैं सम्पूर्ण हिन्दुत्व पर गर्व करता हूँ! जब मैं बड़ा हुआ तो मैंने मुक्त विचार करने की प्रवृत्ति का विकास किया! जो किसी भी राजनैतिक या धार्मिक वाद की असत्य-मूलक भक्ति की बातों से मुक्त हो यही कारण है! कि मैंने अस्पृश्यता और जन्म पर आधारित जातिवाद को मिटाने के लिए सक्रिय कार्य किया!
मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जातिवाद-विरोधी आन्दोलन में खुले रूप में शामिल हुआ और यह मानता हूँ! कि सभी हिन्दुओंके धार्मिक और सामाजिक अधिकार समान हैं! सभी को उनकी योग्यता के अनुसार छोटा या बड़ा माना जाना चाहिए! न कि किसी विशेष जाति या व्यवसाय में जन्म लेने के कारण! मैं जातिवाद-विरोधी सहभोजों के आयोजन में सक्रिय भाग लिया करता था! जिसमें हजारों हिन्दू ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,चमार और भंगी भाग लेते थे! हमने जाति के बंधनों को तोड़ा और एक दूसरे के साथ भोजन किया!
मैंने रावण, चाणक्य, दादाभाई नौरोजी, विवेकानन्द, गोखले, तिलक के भाषणों और लेखों को पढ़ा है! साथ ही मैंने भारत और कुछ अन्य प्रमुख देशों जैसे! इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका और रूस के प्राचीन और आधुनिक इतिहास को भी पढ़ा है! इनके अतिरिक्त मैंने समाजवाद और माक्र्सवाद के सिद्धान्तों का भी अध्ययन किया है! लेकिन इन सबसे ऊपर मैंने वीर सावरकर और गाँधीजी के लेखों और भाषणों का भी गहरायी से अध्ययन किया है! क्योंकि मेरे विचार से किसी भी अन्य अकेली विचारधारा की तुलना में! इन दो विचारधाराओं ने पिछले लगभग तीस वर्षों में भारतीय जनता के विचारों को मोड़ देने! और सक्रिय करने में सबसे अधिक भूमिका निभायी है!
इस समस्त अध्ययन और चिन्तन से मेरा यह विश्वास बन गया है! कि एक देशभक्त और एक विश्व नागरिक के नाते
हिन्दुत्व और हिन्दुओं की सेवा करना मेरा पहला कर्तव्य है! स्वतंत्रता प्राप्त करने और लगभग 30 करोड़ हिन्दुओं के न्यायपूर्ण हितों की रक्षा करने से समस्त भारत जो समस्त मानव जाति का पाँचवा भाग है! को स्वतः ही आजादी प्राप्त होगी और उसका कल्याण होगा! इस निश्चय के साथ ही मैंने अपना सम्पूर्ण जीवन हिन्दू संगठन की विचारधारा और कार्यक्रम में लगा देने का निर्णय किया! क्योंकि मेरा विश्वास है कि केवल इसी विधि से मेरी मातृभूमि हिन्दुस्तान की राष्ट्रीय स्वतंत्रता को प्राप्त किया! और सुरक्षित रखा जा सकेगा एवं इसके साथ ही वह मानवता की सच्ची सेवा भी कर सकेगी!
सन् 1920 से अर्थात् लोकमान्य तिलक के देहान्त के पश्चात् कांग्रेस में गाँधीजी का प्रभाव पहले बढ़ा! और फिर सर्वोच्च हो गया! जन जागरण के लिए उनकी गतिविधियाँ अपने आप में बेजोड़ थीं! फिर सत्य तथा अहिंसा के नारों से वे अधिक मुखर हुईं! जिनको उन्होंने देश के समक्ष आडम्बर के साथ रखा था! कोई भी बुद्धिमान या ज्ञानी व्यक्ति इन नारों पर आपत्ति नहीं उठा सकता! वास्तव में इनमें कुछ भी नया अथवा मौलिक नहीं है! वे प्रत्येक सांवैधानिक जन आन्दोलन में शामिल होते हैं! लेकिन यह केवल दिवा स्वप्न ही है यदि आप यह सोचते हैं! कि मानवता का एक बड़ा भाग इन उच्च सिद्धान्तों का अपने सामान्य! दैनिक जीवन में अवलम्बन लेने या व्यवहार में लाने में समर्थ है! या कभी हो सकता है!
इस प्रकार मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिन्दी भाषा के सौन्दर्य और शुद्धता के साथ बलात्कार किया गया! उनके सारे प्रयोग केवल हिन्दुओं की कीमत पर किये जाते थे! और अगस्त 1946 के बाद मुस्लिम लीग की निजी सेनाओं ने हिन्दुओं का सामूहिक संहार प्रारम्भ किया! तत्कालीन वायसरायलार्ड वैवेल ने इन घटनाओं से व्यथित होते! हुए भी भारत सरकार कानून 1935 के अनुसार प्राप्त अपनी शक्तियों का उपयोग बलात्कार! हत्या और आगजनी को रोकने के लिए नहीं किया। बंगाल से कराची तक हिन्दुओं का खून बहता रहा! जिसका प्रतिरोध हिन्दुओं द्वारा कहीं-कहीं किया गया! सितम्बर में बनी अन्तरिम सरकार के साथ मुस्लिम लीग के सदस्यों द्वारा प्रारम्भ से ही विश्वासघात किया गया!
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