मोदी को बढ़ते देख नहीं पा रहे साहित्यकारः अनुपम खेर

नई दिल्ली। देश में सांप्रदायिकता और असहिष्णुता की भावना परवान चढ़ने का आरोप लगाते हुए साहित्यकारों द्वारा अपने-अपने अवॉर्ड लौटाने के सिलसिले का एक और मशहूर शख्सियत ने खुलकर विरोध किया है। बॉलिवुड में अपने हरफनमौला अभिनय के लिए मशहूर कलाकारअनुपम खेर ने बुधवार को कहा कि साहित्यकारों के पुरस्कार लौटाने के पीछे और कुछ नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को नुकसान पहुंचाने की है। उन्होंने अवॉर्ड लौटा रहे लोगों पर आरोप लगाया कि वह यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं कि एक चाय वाला देश का प्रधानमंत्री बन गया है। खेर ने पाकिस्तानी गाय गुलाम अली और वहां के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी से जुड़ी घटनाओं पर भी अपनी बेबाक राय रखी।
अनुपम खेर ने कहा, मुझे पाकिस्तान में नाटक करने की अनुमति नहीं दी गई। मैंने कई बार अप्लाई किया लेकिन वीजा नहीं दिया गया।’ खेर ने बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी की मंशा पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने पूछा, ‘अगर किसी ने सुधींद्र कुलकर्णी के परिवार के साथ दुर्व्यवहार किया होता तो क्या वह उस व्यक्ति (दुर्व्यवहार करने वाले) को चाय पर बुलाते?’ उन्होंने आगे कहा, ‘गुलाम अली का मामला अलग है, वह एक कलाकार हैं। कसूरी पूर्व विदेश मंत्री हैं। फिल्म इंडस्ट्री में पाकिस्तान के कई कालाकार काम कर रहे हैं।’
They can’t handle Modi’s rise from being a chaiwala to today being PM of country: Anupam Kher on the #AkademiExodus https://t.co/mqTmGl4CvF
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देश में पहली बार नहीं हुई हिंसा
अनुपम खेर ने अवॉर्ड लौटाने के मामले पर सवाल किया कि क्या देश में हिंसा की वारदात पहली बार सामने आई है? उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि पूरा प्रयास पीएम की छवि को नुकसान पहुंचाना है। अगर वह रिटर्न करना चाहते हैं तो सभी चीजें क्यों नहीं रिटर्न कर देते। यह राजनीति से प्रेरित है, ऐसा नहीं है कि देश में पहली बार हिंसक घटनाएं हो रही हैं।’ खेर ने अपनी निष्पक्षता को लेकर भी सफाई दी। उन्होंने कहा, ‘कई लोग कहते हैं कि मेरी पत्नी बीजेपी में है इसलिए मैं अवॉर्ड लौटा रहे विद्वानों की आलोचना कर रहा हूं, लेकिन मैं अपनी राय जाहिर करने के लिए स्वतंत्र हूं।’
चेतन भगत भी कर चुके हैं विरोध
गौरतलब है कि अनुपम खेर से पहले अंग्रेजी के लेखक चेतन भगत ने भी अवॉर्ड लौटाने पर साहित्यकारों का विरोध किया था। 7 अक्टूबर को उन्होंने अवॉर्ड लौटा रहे साहित्यकारों पर चुटकी लेते हुए ट्वीट किया था, ‘मैं भी अपना साहित्य अकादमी लौटाना चाहता हूं, लेकिन मुझे अभी मिला ही नहीं है।’ चेतन की इस चुटकी पर लेखक और पत्रकार राजेश जोशी ने उन्हें (चेतन को) लुगदी साहित्यकार तक करार दे दिया।
किसी राजनीतिक दल से लड़ाई नहींः देशपाण्डे
वहीं, लेखक शशि देशपाण्डे ने साहित्यकारों द्वारा अवॉर्ड लौटाने और खुद के साहित्य अकादमी की जनरल काउंसिल से इस्तीफा देने पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि लेखक किसी राजनीतिक दल के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ रहे। उन्होंने कहा, यह एक राजनीतिक दल के खिलाफ लड़ाई नहीं है। यह लेखकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा के संरक्षण की सरकार की अक्षमता का मामला है। यही वजह है कि मैंने ‘अहिंसा’ का रास्ता चुना।
कारण जानने की जरूरतः प्रसून जोशी
इधर, मशहूर गीतकार प्रसून जोशी ने लेखकों की भावना समझने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उन कारणों को जानने की जरूरत है कि आखिरकार कुछ क्षेत्रीय साहित्यकार अपने साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापस क्यों कर रहे हैं?
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