मोदी से बदला लेने को आतुर हैं भाजपा की बुजुर्ग ब्रिगेड?

क्या लालकृष्ण आडवाणी कांग्रेस के साथ मिलकर नरेंद्र मोदी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं? परिस्थितियां कुछ इसी तरफ इशारा कर रही हैं। पहले यशवंत सिन्हा का पूर्व नौकरशाह वज़ाहत हबीबुल्लाह, माइनॉरिटी कमीशन के पूर्व चेयरमैन कपिल कॉक के साथ कश्मीरी अलगाववादियों से मिलना, हाल के दिनों में आडवाणी की कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से नज़दीकियां बढ़ना,यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी का सरकार पर हमले बोलना, आडवाणी का इतिहास में पहली बार किसी संघ प्रमुख की दशहरा रैली में शामिल होना, सुब्रमण्यम स्वामी की बेचैनी और अमित शाह की केरल में पदयात्रा के बीच नई दिल्ली आकर प्रधानमंत्री के साथ बैठक करना सब कुछ अकारण नहीं है।

यशवंत सिन्हा अपने स्थान पर बेटे के चुनाव लड़ने और मंत्री बनने के बाद भी अभी तक अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर काबू नहीं पा सके हैं। झारखंड चुनावों के बाद वो खुद को वहां का मुख्यमंत्री मान कर चल रहे थे पर परिवारवाद और 75 पार की उम्र पर बीजेपी की नीतियों के चलते उनके हाथ निराशा ही लगी। लेकिन इसकी काट के लिए उन्होंने नए नवेले अंतरराष्ट्रीय बैंक “ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक” का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की जिसके अध्यक्ष का पद ब्रिक्स समझौते के अनुसार भारत को दिए जाने का निर्णय हुआ। यहां भी बाजी इस क्षेत्र में उनसे ज्यादा योग्य केवी कामथ के हाथ लगी, जो इंजीनिरिंग स्नातक और एमबीए होने के अलावा बैंकिंग का लंबा अनुभव रखते थे। एशियन डेवलपमेंट बैंक और आईसीआईसीआई बैंक से प्रमुखता के साथ लंबे समय तक जुड़ने के अलावा नारायणमूर्ति के बाद इंफोसिस के चेयरमैन भी रहे।

आडवाणी के नेतृत्व में बुजुर्ग ब्रिगेड पहले से ही खार खाये बैठी है और लंबे समय से सही समय पर वार करने का इंतजार कर रही है। हिमांचल, गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों में भाजपा की संभावित विजय से न केवल 2019 लोकसभा चुनावों के लिए विपक्ष के मंसूबे धराशायी होंगे, बल्कि इस बुजुर्ग ब्रिगेड के हाथ से भी ये आखिरी मौका निकल जाएगा। इसलिए विपक्ष, कुछ मुखौटा पत्रकार और मीडिया हाउस अभी तक कुछ न कुछ मुद्दा बनाकर देश मे भ्रम और निराशा का माहौल बनाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे थे। पर अब तो भाजपा की ये बुजुर्ग ब्रिगेड भी अपनी अपरंपार महत्वाकांक्षा के चलते सबसे मजबूत, सक्षम और देशहित मे फैसले लेने वाली अपनी सरकार को ही भीतर से कमजोर करने की कोशिश कर रही है।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आडवाणी को दशहरा रैली में बुलाकर समझाने की कोशिश की। कुछ भी हो मोदी-अमित शाह की जोड़ी जनता के अटूट विश्वास और भारी समर्थन के बल पर ऐसे किसी भी साजिश को तहस-नहस करने में सक्षम है। मीडिया को हनीप्रीत, राम-रहीम और राधे मां से जब फुर्सत मिलेगी, तभी उसका ध्यान शायद इन साजिशों की तरफ जाएगा।

(मनोज कुमार मिश्रा की फेसबुक टाइमलाइन से साभार)

 

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