यह जहर नहीं, मवाद है, अविश्वास है…

sumantमुसलमान कहते हैं कि मेरे मन में उनके लिए जहर है। पर यह जहर नहीं, अविश्वास है, जो आपने दिया मुझे, और पूरे भारतीय समाज को दे रहे हैं आप सब..तभी कहता हूं भारत बदल रहा है…। चलिए फेसबुक के अनुभवों को सामने रखता हूं। याद है आपको, बिहार में प्रस्तावित “सद्गुरु कबीर साहेब गौशाला” के लिए मुल्क के मुसलमान मित्रों से सिर्फ एक-एक रुपया मांगा था। और वो भी मुझे नहीं, कबीर समाज के संत और आचार्यों को देना था। ताकि एक नैतिक और सकारात्मक माहौल बनें। बदले में क्या मिला..? इलाहाबाद के Mod Zahid ने मुझे बेहद जलील किया। मुसलमानों से अपील को आगे बढ़ाने के लिए उनके इनबॉक्स में की गई मेरी अपील को इस “सच्चे टोपीधारी मुसलमान” ने सार्वजनिक किया और मुझे “भिखारी” ठहराया। तो मैंने यही कहा, मैं मदन मोहन मालवीय साहेब और सर सैयद की तरह भिखारी हूं. जो लोकहित में अपने मानसम्मान को ताक पर ऱख आपकी ड्योढ़ी पर आ खड़ा हुआ है। फिर जाहिद के मित्र ने कुछ चिल्लर वाला स्टिकर मुझे फेंका.. मैंने कहा.. मैं सर सैयद और मालवीय साहेब की विरासत का छात्र हूं,, ये भी स्वीकार है। और सच तो यह है कि सर सैयद की हथेली पर किसी हिंदू राजा ने नहीं, मुसलिम नवाबों ने थूका.. और आज उन्हीं के बनाए इदारे में तु्म्हारी नालायक औलादें पढ़ रही हैं। लेकिन जाहिद तो जाहिल निकला..वो तो याकूब की प्रतिकृति है। और तब भी आप ही थे ना….? जो इस जाहिल के साथ खड़े हुए… ? जैसे आज याकूब के साथ खड़े हैं..? हैरानी तब हुई यही सच्चे मुसलमान नेक काम के लिए निकले सुमंत के खिलाफ और उस धतकरमी सच्चे मुसलमान के पक्ष में जा खड़े हुए। तब मेरे दोस्तों ने कहा था, यकीन ना कीजिए इन पर…ये भारत के नहीं हैं। लेकिन मैं भला क्यों यकीन करता इस टूटन भरी बातों पर..? बावला था ना मन मेरा.. ? आपकी हरकतों से मेरा दिल रोया था जाहिद साहेब.. मेरा विश्वास टूटा था। आप उसी गुरू के शिष्य हैं, जो शहीद चंद्रशेखर आजाद को जनेऊधारी पोंगा पंडित करता है। कहते हुए अफसोस हो रहा है, बीस करोड़ की मुस्लिम आबादी में सिर्फ दो मुसलमान सक्रिय तौर पर मेरे साथ आगे बढ़े,, जुनैद हादी और मेरे बडे भाई मोहम्मद आरिफ खान साहेब। मैं दोनों को नमन करता हूं और करता रहूंगा। बाकि सबने वादा तो किया लेकिन मौके पर खामोश हो गए। हद तो तब हो गई जब तुम्हारे कूढ़मगजिए चिंतकों ने उस बहुदेववाद को गालियां बकनी शुरु कर दिया, जिस पर तुम्हारा अस्तित्व टिका है भारत में.. जिस पर तुम स्वीकार हुए इस धरती पर। लेकिन तुम तो अपनी रौ में हो ना..? ईसाई मिशनरी प्रेरित दलितों के साथ मिलकर तुमने अपने अस्तित्व के आधार को ही खारिज करना शुरू कर दिया. फिर यहीं बस नहीं किया, तुमने साझी संस्कृति को नायकों को खारिज किया, साहित्य को खारिज किया, संगीत को खारिज किया.. मूल्यों और त्योहारों को खारिज किया.. तुम मुसलमान होते गए.. हमें गालियों से नवाजते गए और हम तुमको शांत और धैर्य से समझते गए….फिर भी मेरा मन ना माना। एक के बाद एक, सहमति के बिंदू तलाशने की कोशिश करता रहा। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लेकर दारुल-उलूम और फिर भारत के गांव देहातों तक में, हर कहीं घूमा और हर जगह मुझे मिली सिर्फ मायूसी। सच्चे मुसलमानों ने कब्जा कर लिया हर कहीं। बरेलवी से लेकर शिया, सभी इन सच्चे मुसलमानों से डरे रहते हैं। हम भी उन्हीं में शामिल हो चुके हैं। कभी पूछता कि कैसा नेतृत्व चाहते हैं आप भारत में..? आरिफ साहेब..? या आजम और ओवैसी सरीखा..? कभी पूछता कि भारत बदले, इसके लिए आजादी के बाद से खामोश क्यों हों..? क्या होने चाहिए नागरिक आंदोलन के मुद्दे..? गवाह है मेरी टाइम लाइन…शर्म हो तो जाकर जवाब दो उन पोस्ट पर। फिर मुझ पर अंगुली उठाना। ऐसे ही ना जाने कितने ही संवैधानिक और नागरिक सवालों के साथ आपसे विमर्श को बढ़ा, बदले में मिली सिर्फ धूरता और मक्कारी वाली खामोशी। क्योंकि पढ़ा लिखा मुसलमान भी कभी संविधान नहीं पढ़ता। भारत को नहीं पढ़ता। फिर संवाद कैसे हो आपसे.?. तो फिर आप अपने एजंडे पर बढ़ते गए और मैं टूटता गया। देश के मुसलमानों से कितनी ही बार गुजारिश की.. सिर्फ 150 सालों के इतिहास को दुरुस्त होकर पढ़ो। सारा खेल समझ आ जाएगा, पर तुम तो तुम हो ना. ..? एक किताब के आगे दुनिया ठहर जाती है तुम्हारी..इतिहास का पुनर्पाठ करने से क्यों डरते हो..? शायद तुम्हारा अस्तित्व बेहद कमजोर है..? बेहद निर्बल.. तुम विचार नहीं, संख्या हो..और संख्या कभी विचार नहीं बन सकता। और जो विचार नहीं, उससे संवाद भी नहीं हो सकता। यकीन ना हो तो मेरी टाइम लाइन खंगाल लें.. कैसे एक भारतीय, आपके साथ मिलकर नागरिक आंदोलन के वास्ते सहमति के बिंदुओं को तलाशने निकला..? और कैसे यहां तक पहुंच गया…?.

आज फिर पूछ रहा हूं, क्या हो सकते हैं भारत को गतिमान करने बिदूं..?
कैसा भारत चाहते हो ?
कैसा नेतृत्व चाहते हो..?
कौन हो सकता है तुम्हारा नेता..?
मोहम्मद आरिफ खान..?
या
ओवैसी और आजम..?
.
मैं नहीं आप हैं जिम्मेदार..
क्योंकि आपको भारत के बारे में कुछ नहीं पता..
आपको सिर्फ इस्लाम के बारे में पता है.. वही आपका अस्तित्व है..
सिर्फ इस्लाम.. बाकि फिजूल बातों में वक्त ना जाया करें..
अपना भी और भारत का भी…
.
भारत बदल रहा है

 

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