यादव सिंह मामला: सीबीआई की जाँच सिर्फ छोटों तक ही सीमित

लखनऊ । लोग कहते हैं कि यादव सिंह के कारनामे उजागर होने के बाद सफेदपोशों के नाम भी उजागर होंगे, लेकिन यह केवल कहने-सुनने की बातें हैं| असलियत यही है कि सफेदपोशों (असली) के नाम कभी उजागर नहीं होंगे| सैकड़ों करोड़ रुपये की अवैध कमाई के आरोपों में फंसे नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के इंजीनियर इन चीफ रहे यादव सिंह के खिलाफ जाँच में केंद्रीय जाँच एजेंसी (सीबीआई) के हाथ अभी तक बड़ो तक नहीं पहुँच सके हैं| नोएडा विकास प्राधिकरण में कई अफसरों की कंस्ट्रक्शन कंपनियां करोड़ों रुपये की काली कमाई पर खड़ी हुई है जिन्हें यादव सिंह ने करोड़ों रुपये के ठेके व बड़े भूखंड कौड़ियों की भाव दिलाई है|
सूत्रों की माने तो यादव सिंह की पहुँच आईएएस संजीव शरण से है| 1983 बैच के ही आईएएस अधिकारी संजीव शरण पर नोएडा अथॉरिटी के सीईओ रहते होटलों के लिए जमीन आवंटन में गड़बड़ी का आरोप है। कसाना बिल्डर्स यह फार्म आयकर के छापों से वर्ष 2012 में बेनकाब हुई थी| मायावती शासनकाल में 2007-08 से वर्ष 2011-12 के दौरान इस कम्पनी को गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए), यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण तथा राजकीय निर्माण निगम द्वारा जो ठेके दिए गए, उसमें करोड़ों रुपये के कमीशन प्राप्त किए गए। सूत्र बता रहे हैं कि इस फर्म को यादव सिंह ने करोड़ों के ठेके दिलाकर भारी काली कमाई को अंजाम दिया| इसके साक्ष्य आयकर विभाग को तीन साल पहले ही मिल गए थे लेकिन कसाना बिल्डर्स समेत करीब एक अरब से ऊपर के मालिक जीएम प्रॉपर्टी रवीन्द्र तोंगड़ के खिलाफ सतर्कता अधिष्ठान से ही कराये जाने के आदेश दिए गए थे| लेकिन याव सिंह के दबाव में सतर्कता जांच भी ठंडे बस्ते में चली गई|
सूत्रों की माने तो रवीन्द्र तोंगड़ ही नहीं आईएएस संजीव शरण ने भी 994 करोड़ के घोटाले पर यादव सिंह पर जमकर दरियादिली दिखाई| जिसके पीछे करोडो का लेनदेन बताया जा रहा है| यदि सीबीआई यादव सिंह और संजीव शरण के कनेक्शन की गहराई से जांच करे तो कई चेहरे बेनकाब होंगे|
अभी तक कई ऐसे मामले में देखे गए हैं जिसमें बड़ी-बड़ी मछलियाँ खुले आम तैर रही है जबकि छोटी-छोटी मछलियों को शिकार बनाकर वाह-वाही लूटी जा रही है। यह सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा लेकिन यह सच है| उत्तर प्रदेश में कई ऐसे कांड हुए जिसमें सीबीआई की जाँच सिर्फ छोटे अफसरों तक ही सीमित रही है बड़े अधिकारी जाँच से बाहर ही रहे|
ऊर्जा घोटाला, पत्थर घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला, एनआरएचएम घोटाला, मनरेगा घोटाला, मिड-डे मील घोटाला, नोएडा प्लॉट आवंटन घोटाला, लैकफेड घोटाला, आयुर्वेद घोटाला, ताज कॉरीडोर घोटाला, खनन घोटाला, आय से अधिक संपत्ति घोटाला, खाद्यान्न घोटाला आदि में एक-दो गिरफ्तारियां छोड़कर क्या हुआ! सरकार ने प्रदीप शुक्ला जैसे भ्रष्ट नौकरशाह को जेल से छुड़वा लिया| बाबू सिंह कुशवाहा पर सपा सरकार ने कृपा दृष्टि नहीं हुई, इसीलिए वह जेल में हैं|
बसपा के कार्यकाल में मायावती ने सपा के कार्यकाल के घोटालों पर आंखें मूंद ली थीं, तो सपा सरकार ने बसपा के कार्यकाल के घोटालों पर आंखें मूंद लीं| नोएडा प्लॉट आवंटन घोटाले में आईएएस राजीव कुमार को सीबीआई अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई थी, हाईकोर्ट के आदेश से सजा स्थगित है, लेकिन अखिलेश सरकार की उन पर खास कृपा है| आईएएस संजीव शरण पर नोएडा अथॉरिटी के सीईओ रहते हुए होटलों के लिए जमीन आवंटन में गड़बड़ी करने के गंभीर आरोप हैं| आईएएस राकेश बहादुर पर भी अरबों रुपये के नोएडा ज़मीन घोटाले में आरोप लगे थे| मायावती सरकार ने राकेश बहादुर को निलंबित कर दिया था, लेकिन अखिलेश सरकार ने उनका ओहदा बढ़ा दिया| आईएएस सदाकांत, ललित वर्मा एवं के धनलक्ष्मी के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच चल रही है, लेकिन वे सपा सरकार के खास हैं|
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) यूपी में बसपा सरकार के कार्यकाल का सबसे बड़ा घोटाला है| इस घोटाले में परिवार कल्याण विभाग के दो सीएमो डॉ. विनोद आर्या और डॉ. वीपी सिंह की हत्या कर दी गई थी इस हत्याकांड में सीबीआई की जाँच सिर्फ छोटों तक ही सीमित रही है| इसके अलावा इस मर्डर केस से जुड़े एक डिप्टी सीएमओ डा. वाई इस सचान की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी| इस मामले में भी सीबीआई बड़ों को बचाने के लिए क्लोजर रिपोर्ट लगाने के लिए सिफारिश तक कर दी थी|
लैकफेड घोटाले में तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके निजी सचिव सीएल वर्मा का नाम आया, लेकिन उनका क्या हुआ? उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम के चीफ इंजीनियर रहे अरुण कुमार मिश्र द्वारा किए गए सबसे बड़े ट्रॉनिका सिटी घोटाले में क्या हुआ? 1400 करोड़ रुपये का घोटाला करने वाले ग्रामीण अभियंत्रण सेवा के निदेशक एवं मुख्य अभियंता बने उमा शंकर का क्या हुआ? यादव सिंह की तरह उमाशंकर पर भी न केवल बसपा सरकार की कृपा बरसती थी, बल्कि मौजूदा सपा सरकार में भी कृपा बरस रही है| 2009 से मार्च 2012 तक छात्र शक्ति इंफ्रा कंस्ट्रक्शन को पीडब्ल्यूडी ने छह अरब सात करोड़ 51 लाख रुपये के काम आवंटित किए| स़िर्फ सोनभद्र में ही 145 करोड़ रुपये के कार्य आवंटित हुए| अखिलेश सरकार में भी उमाशंकर की कंपनी को तीन अरब सात करोड़ 22 लाख रुपये से अधिक के कार्यों का अनुबंध किया गया| लोकायुक्त की जांच में दोषी पाए गए राजकीय निर्माण विभाग के पूर्व प्रबंध निदेशक सीपी सिंह का क्या हुआ? अरबों रुपये का घोटाला करने के बावजूद उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
बात डीएसपी जियाउल हक़ हत्याकांड की करें तो प्रतापगढ़ जिले में स्थित कुंडा विधानसभा क्षेत्र में 2 मार्च को हुए डीएसपी जियाउल हक की हत्या के मामले में भी सीबीआई ने परदे के पीछे सफेदपोशों की भूमिका का जिक्र तक नहीं किया था| इसके अलावा नोएडा का बहुचर्चित आरुषि हेमराज मर्डर केस तो याद ही होगा इसमें भी सीबीआई ने जो तफ्तीश की थी उसको लेकर भी काफी माहौल गरमाया था| इस मामले में भी सीबीआई बड़ों को बचाने के लिए घर के नौकरों को ही दोषी ठहरा दिया था| उत्तर प्रदेश में एनआरएचएम घोटाले के बाद दूसरे सबसे बड़े घोटाले मनरेगा में बड़े घोटालेबाजों तक सीबीआई की जाँच नहीं पहुँच सकी| अब यादव सिंह मामले में यह देखने वाली बात होगी कि सीबीआई के हाथ बड़ो तक पहुँच पाते हैं या नहीं?
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