यूपी में IPS के बाद अब IAS हुआ बागी, SC से की सरकार की शिकायत

vijay sankarतहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, लखनऊ। यूपी सरकार से अभी आईपीएस अमिताभ ठाकुर का मामला संभला नहीं था, वहीं आईएएस सूर्य प्रताप सिंह सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। अब इसी क्रम में एक और आईएएस राज्य सरकार से बगावत कर बैठा है। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी विजय शंकर पांडेय ने अपनी प्रतिनियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार की शिकायत की। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। साथ ही सरकारी वकील को भी पेश होने का आदेश दिया है।
आईएएस विजय शंकर पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है। ऐसे में उनको प्रतिनियुक्ति पर न भेजे जाने की शिकायत को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया और सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। दरअसल, विजय शंकर पांडेय को प्रतिनियुक्ति पर केंद्र भेजा जाना था, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें नहीं भेजा। इसके बाद उन्होंने कई बार अनुरोध भी किया, लेकिन यूपी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। ऐसे में वह हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को आदेश दिया कि विजय शंकर पांडेय को तत्काल रिलीव कर केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाए। इसके बावजूद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट का आदेश नहीं माना। हाईकोर्ट का आदेश न मानने पर विजय शंकर पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश न मानने के मामले को गंभीरता से लेते हुए यूपी सरकार पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद विजय शंकर पांडेय रिलीव नहीं हुए तो सोमवार को कोर्ट ने केंद्र और यूपी सरकार दोनों को नोटिस जारी किया है।

विजय शंकर पांडेय वही अफसर हैं, जिन्होंने 1997 में भ्रष्ट आईएएस अफसरों का गुप्त रूप से चुनाव कराया था। गोपनीय ढंग से कराए गए इस चुनाव ने विजय शंकर पांडेय को पूरे देश में चर्चित कर दिया था। इस सूची में नीरा यादव, एपी सिंह और बृजेंद्र यादव को यूपी के टॉप थ्री भ्रष्टों में चुना गया था। 1979 बैच के आईएएस विजय शंकर पांडेय को मायावती सरकार ने 16 अप्रैल 2011 को प्रमुख सचिव सूचना, सचिवालय प्रशासन और खाद्य-औषधि नियंत्रण विभाग के पद से हटाकर सदस्य राजस्व परिषद के पद पर भेज दिया था। उनके खिलाफ यह कार्रवाई इसलिए हुई थी, क्योंकि वे इंडिया रिजुवनेशन इनीशिएटिव नामक भ्रष्टाचार विरोधी संगठन के संस्थापक बने। साथ ही सरकार से अनुमति लिए बिना ही विदेश से कालेधन को वापस लाने और देश के सबसे बड़े टैक्स चोर हसन अली के खिलाफ चल रही जांच की सुस्त रफ्तार को लेकर प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ एक याचिका दायर की थी। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस गलत कार्रवाई के लिए उन अधिकारियों की तलाश होनी चाहिए, जो इस कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही उनसे अर्थदंड की धनराशि वसूली जाए।
व्हिसलब्लोवर बने विजय शंकर ने किया संघर्ष
कालेधन को लेकर विजय शंकर पांडेय द्वारा दायर याचिका से तत्कालीन सीएम मायावती बेहद नाराज थीं। उन्होंने आईएएस सर्विस रूल का उल्लंघन मानते हुए उन पर साल 2012 में विभागीय जांच बैठा दी। इस जांच की जिम्मेदारी अधिकारी जगन मेथ्यु को सौंपी गई थी। उन्होंने अपनी इन्क्वॉयरी रिपोर्ट में विजय शंकर पर लगाए गए आरोपों की सरसरी तौर पर जांच की थी। ऐसे में विजय पर सारे आरोप निराधार पाए गए। हालांकि, मायावती की सरकार चले जाने के बाद भी उनका उत्पीड़न बंद नहीं हुआ था।
अखिलेश सरकार ने भी उन पर जांच कमिटी बैठा दी। इस कमिटी में तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक रंजन और अनिल कुमार गुप्ता थे। सरकार के इस फैसले के खिलाफ विजय शंकर ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन 20 दिसंबर 2013 को उनकी अर्जी को खारिज कर दिया गया था। साल 2014 में वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। यहां से उन्हें न्याय मिला और केंद्र-राज्य सरकार पर पांच लाख रुपए का अर्थदंड लगाया गया।
 

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