यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट में करेगी यादव सिंह का बचाव

तहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, लखनऊ। नोएडा आथाॅरिटी के भ्रष्ट इंजीनियर यादव सिंह के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई जांच के आदेश किए जा चुके हैं। अदालत के आदेश के बावजूद यूपी की समाजवादी सरकार यादव सिंह की जांच सीबीआई से करवाने को तैयार नजर नहीं आ रही है। यही वजह है कि यूपी सरकार कई हजार करोड़ की बेनामी संपत्ति के मालिक यादव सिंह को बचाने के लिए सरकारी खर्चे पर हरीश साल्वे, कपिल सिब्बल, राकेश द्विवेदी और दिनेश द्विवेदी जैसे दिग्गज वकीलों की फौज लेकर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बना चुकी है।
मिली जानकारी के मुताबिक यूपी सरकार की ओर से हरीश साल्वे, कपिल सिब्बल, राकेश द्विवेदी और दिनेश द्विवेदी जैसे दिग्गज वकील सुप्रीम कोर्ट के सामने यादव सिंह से जुड़े अब तक के सभी मामलों की जांच सीबीआई से न करवाने को लेकर बहस करते नजर आएंगे। यूपी सरकार के इस फैसले को लेकर सरकार का मंशा और मनोदशा दोनों ही आम जनता के सामने बेनकाब होती नजर आ रहीं हैं। विपक्षियों द्वारा कहा जाने लगा है कि शायद सरकार को किसी बात का डर है इसी वजह से वह यादव सिंह को सीबीआई के चुंगल से बचाने के लिए संरक्षक की भूमिका में जा खड़ी हुई है। अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि यूपी की सत्तारूढ़ सरकार के ऐसे कौन से राजनेता हैं जिनके यादव सिंह से सीधे रिश्ते हैं और सीबीआई जांच से वे लोग जनता के सामने बेनकाब हो जाएंगे। इसके साथ ही यादव सिंह के साथ समाजवादी पार्टी के करीबी माने जाने वाले कुछ नौकरशाहों की गर्दनें भी सीबीआई के फंदे में जाने की खबरों को भी नकारा नहीं जा सकता। सू़त्रों की माने तो यादव सिंह को पिछले 15 सालों में यूपी की सत्ता में रही राजनीतिक पार्टीयों ने पूरी तरह संरक्षण दिया है। चाहें इस दौरान मुलायम सिंह यादव का मुख्यमंत्रित्व काल रहा हो या फिर मायावती का शासनकाल, नोएडा अथाॅरिटी में यादव सिंह की सरकार ही रही है। वर्ष 2012 में मौजूदा सरकार के आने से ठीक पहले ही 800 करोड़ के एक भ्रष्टाचार के मामले में फंसे यादव सिंह को किस तरह से अखिलेश यादव के कार्यकाल में आरोपमुक्त किया गया यह किसी से छुपा नहीं है। इन सब तथ्यों के बीच सबसे रोमांचक बात यह सामने आती है कि हर नई सरकार के साथ यादव सिंह की ताकत बढ़ती ही गई। यादव सिंह को सबसे ज्यादा ताकतवर अखिलेश यादव के कार्यकाल में बनाया गया। अखिलेश सरकार ने केवल नोएडा अथाॅरिटी तक सीमित यादव सिंह के दायरे को ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे अथाॅरिटी तक बढ़ा दिया। इस दौरान उसके खिलाफ आयकर विभाग ने भी छापेमारी की लेकिन यूपी सरकार संरक्षक की मुद्रा में खड़ी नजर आई और यादव सिंह को निलंबित तक नहीं किया जा सका। पिछले डेढ़ दशक के दौरान नोएडा आथाॅरिटी में यादव सिंह के भ्रष्टाचार के किस्से सियासी गलियारों में चर्चा का विषय रहे हैं। जो राजनीतिक दल सत्ता में रहा उसने यादव सिंह को संरक्षण दिया और बदले में उसकी कमाई का एक हिस्सा अंदर भी किया। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि यादव सिंह को लेकर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई और सीबीआई जांच के आदेश जारी कर दिए। जिसके बाद यादव सिंह की मुश्किलों तो बढ़ीं ही हैं लेकिन उसके साथ उसके संरक्षकों की रातों की नींद हराम हो चली है। फिलहाल यूपी सरकार ने जिस तैयारी से हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बनाया है, उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि सीबीआई जांच से सरकार भयभीत है। क्योंकि सीबीआई जब पुरानी फाइलों की धूल झाडे़ेगी तो उससे सत्ता में बैठे कई सफेदपोशों के साथ-साथ विपक्षियों की तबियत भी बिगड़ेगी। इस जांच से यूपी की सियासत में केवल उठापटक नहंी होगी बल्कि कई सियासतदानों के कॅरियर भी चैपट हो सकते हैं। हम तो अभी यही कह सकते हैं कि यूपी की 90 फीसदी जनता इन गंभीर मुद्दों से अनजान है, उसे न यादव सिंह का नाम पता है और न ही उसके कारनामों की जानकारी है। शायद इसी बात का फायदा यूपी सरकार उठा रही है जो जनता के धन के लुटेरों को बचाने के लिए जनता की तिजोरी से ही मंहगे वकीलों की फीस भरने जा रही है।
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