ये वही कोविंद जी हैं जिन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में मांगने पर भी भाजपा ने टिकट नहीं दिया था

नई दिल्ली।  2014 के लोकसभा चुनाव से पहले रामनाथ कोविंद को अक्सर लखनऊ में भाजपा के प्रदेश कार्यालय पर देखा जाता था। दो बार के राज्यसभा सांसद रहे रामनाथ तब लोकसभा चुनाव के लिए जालौन से टिकट मांग रहे थे।  कोविंद अति दलित समाज से आते हैं और जालौन में उनकी जाति के ठीकठाक वोट थे। जिसके आधार पर वो दावेदारी ठोंक रहे थे। पार्टी ने कोविद की जगह जालौन से भानप्रताप वर्मा को उतारा। पार्टी के इस फैसले पर वर्मा खरे उतरे। बहरहाल मोदी के पीएम बनते ही कोविद की किस्मत पलटी और बिहार के गवर्नर की कुर्सी मिल गई।  कभी दिल्ली से लेकर लखनऊ तक पार्टी मुख्यालयों पर दिखने वाले मिलनसार कोविद के भाग्य ने 2017 आते-आते उनके लिए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे अब खोल दिए हैं।

रामनाथ कोविंद मौजूदा समय में बिहार के राज्यपाल हैं, लेकिन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की दौड़ में उनका नाम चर्चा में नहीं था. 1 अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के गांव परौंख में जन्मे कोविंद ने कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई कर 1971 में दिल्ली बार काउंसिल के लिए नामांकित हुए थे.

दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इन्होंने 16 साल तक प्रैक्टिस की. 1977 से 1979 तक दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के वकील रहे थे. 1980 से 1993 तक केंद्र सरकार के स्टैंडिग काउंसिल में रहे फिर वर्ष 1991 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए

1994 और 2000 में कोविंद दो बार उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए सांसद चुने गए इस तरह कोविंद 12 साल तक राज्यसभा में सांसद रहे. इस दौरान आदिवासी, होम अफ़ेयर, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सामाजिक न्याय, क़ानून न्याय व्यवस्था और राज्यसभा हाउस कमेटी के भी चेयरमैन समेत कई संसदीय समितियों के सदस्य रहे. आठ अगस्त 2015 को बिहार के राज्यपाल के पद पर नियुक्ति हुई.

कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद कोविंद सिविल सर्विसेस की तैयारी के लिए दिल्ली आ गये. पहले और दूसरे प्रयास में नाकाम रहने के बाद तीसरी बार में उन्‍होंने कामयाबी हासिल की पर मेरिट में कम अंक की वजह से एलाइड सेवा में गये तो नौकरी ठुकरा दी.

रामनाथ कोविंद स्वयंसेवक हैं. भाजपा के पुराने नेता हैं. संघ और भाजपा में कई प्रमुख पदों पर रहे हैं. बीजेपी ने 1990 में कोविंद को घाटमपुर से टिकट दिया गया लेकिन दुर्भाग्‍य से कोविंद चुनाव हार गये लेकिन वे लगातार कानपुर की बीजेपी राजनीति में सक्रीय भूमिका निभाते रहे.

जिसके बाद कोविंद ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जालौन से टिकट मांगा लेकिन दो कारणों के चलते कोविंद को टिकट नही मिला. पहला कारण 1990 के चुनाव में कोविंद की हार, व दूसरा यूपी के जालौन मे भानू प्रताप सिंह वर्मा का मजबूत उम्मीदवार होना जिसके चलते 2014 में बीजेपी ने कोविंद को टिकट नही दिया. और किस्मत का खेल देखियें जिस शख्स को कभी लोकसभा का टिकट नही मिला उसे पार्टी ने आज राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर देश के सर्वश्रेष्ठ संवैधानिक पद पर बैठाने की तैयारी कर ली है.

कोविंद की पहचान अति दलित चेहरे के रूप में रही है. छात्र जीवन में कोविंद ने अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के लिए काम किया. कोविंद ने शिक्षा से जुड़े कई मुद्दों को उठाया. ऐसा कहा जाता है कि वकील रहने के दौरान कोविंद ने ग़रीब दलितों के लिए मुफ़्त में क़ानूनी लड़ाई लड़ी. कोविंद की शादी 30 मई 1974 को सविता कोविंद से हुई थी. इनके एक बेटे प्रशांत हैं और बेटी का नाम स्वाति है.

 

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