लैंड बिल पर पीछे हटी मोदी सरकार, राज्यों को मिलेंगे अधिकार?

तहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव के मुद्दे पर विपक्ष के तीखे विरोध के सामने पूरी जोर-आजमाइश के बाद मोदी सरकार अब यह सोचती दिख रही है कि इस कानून का मामला राज्यों पर छोड़ देना चाहिए। विपक्षी दबाव से पार पाने में दिक्कत और राज्यसभा में इस बदलाव के लिए जरूरी समर्थन न होने के चलते सरकारी गलियारे में ऐसी राय उभर रही है।
भूमि अधिग्रहण बिल पर चर्चा के लिए नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक के बाद बुधवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ‘अगर केंद्र इस बिल को आम सहमति से पास नहीं करा पाता है तो इसे राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। जो राज्य तेजी से विकास करना चाहते हों, वे अपने राज्य स्तरीय कानूनों का सुझाव दे सकते हैं और केंद्र उनको मंजूरी देगा।’ बैठक की अध्यक्षता पीएम नरेंद्र मोदी ने की। इसमें 16 मुख्यमंत्री शामिल हुए। कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के सीएम भी इसमें नहीं आए। जेटली ने कहा कि बैठक में मौजूद ज्यादातर मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि राज्यों को अपने कानून बनाने की इजाजत होनी चाहिए। जेटली ने हालांकि यह नहीं बताया कि किन राज्यों ने ऐसी राय जताई। उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर राज्यों ने कहा कि केंद्र को आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन राज्य इसका लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकते हैं। या तो केंद्र आम सहमति बनाए और भूमि अधिग्रहण बिल को जल्द पास कराए या राज्यों को अपने कानून बनाने की इजाजत दे।’ कांग्रेस ने इस दलील पर सवाल उठाए और कहा कि राज्यों को 2013 में बनाए गए कानून के चार अहम पहलुओं से जुड़े मानकों का पालन करना होगा और ये मानक मुआवजा, सोशल क्लॉज, सहमति और रेवेन्यू-न्यूट्रल रेट से जुड़े हैं। पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने ईटी से कहा, ‘यह समवर्ती सूची का विषय है। केंद्र और राज्य, दोनों इस पर कानून बना सकते हैं, लेकिन राज्य के कानून केंद्र के कानून से ऊपर नहीं हो सकते हैं। अरुण जेटली के बयान से लग रहा है कि केंद्र अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है। फिर केंद्र की जरूरत ही क्या है? सब कुछ राज्यों पर छोड़ दें।’
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