लोकायुक्त चयन प्रक्रिया को लेकर पारित नए कानून को हाईकोर्ट में चुनौती

लखनऊ/इलाहाबाद। यूपी में लोकायुक्त की नियुक्ति में चीफ जस्टिस की भूमिका खत्म करने के अखिलेश सरकार के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। प्रदेश सरकार द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में संशोधन को लेकर पारित नए कानून की वैधता के खिलाफ एक याचिका दाखिल की गई है। जिसमें कहा गया है कि विधानसभा में जो विधोयक पास कराया गया है वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने इसे रद्द करने की मांग की है। नए बिल के अनुसार लोकायुक्त की नियुक्ति में चार सदस्यों को शामिल किया गया है, लेकिन चीफ जस्टिस को इस चयन प्रक्रिया से अलग कर दिया गया है।
याचिकाकर्ता वकील अनूप बरनवाल ने इस आशय की एक अर्जी हाईकोर्ट में दायर की है। अर्जी में कहा गया है कि कोर्ट प्रदेश सरकार द्वारा लोकायुक्त को लेकर पारित नए कानून को सरकार से मंगाकर रद्द करे। आपको बता दें, राज्यपाल चार बार लोकायुक्त पद नियुक्ति की फाइल यूपी सरकार को लौटा चुके हैं। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि लोकायुक्त और उप लोकायुक्त संशोधन विधेयक के विधानसभा से पास होने के बाद सरकार नए लोकायुक्त के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस रवींद्र सिंह का नाम पांचवीं बार राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेज सकती है।
संशोधित बिल को मंजूरी में राज्यपाल का अधिकार
संविधान से मिले अधिकारों के तहत लोकायुक्त की नियुक्ति पर संशोधित बिल को राज्यपाल एक बार नामंजूर कर सकते हैं। ऐसे में सरकार को दोबारा ये बिल विधानसभा में पास कराना होगा। दोबारा भी अगर विधानसभा से संशोधन बिल इसी रूप में पास होता है, तो राज्यपाल को बिल पर दस्तखत करने ही होंगे।
संविधान से मिले अधिकारों के तहत लोकायुक्त की नियुक्ति पर संशोधित बिल को राज्यपाल एक बार नामंजूर कर सकते हैं। ऐसे में सरकार को दोबारा ये बिल विधानसभा में पास कराना होगा। दोबारा भी अगर विधानसभा से संशोधन बिल इसी रूप में पास होता है, तो राज्यपाल को बिल पर दस्तखत करने ही होंगे।
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