लोक सभा चुनाव 2019 के दृष्टिगत कौन बनेगा,उत्तर प्रदेश भाजपा अघ्यक्ष

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने के बाद भाजपा  आलाकमान के लिए अगली चुनौती है पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन। इसके मंथन की वज़ह है योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में प्रदेश के मौजूदा अध्य्क्ष को उप मुख्यमंत्री बनाने के फलस्वरूप रिक्त हुआ पद ।

भारतीय जनता पार्टी ही  में एक व्यक्ति को एक ही पद की परंपरा है, इसीलिए अब केशव मौर्य की जगह किसी दूसरे नेता को प्रदेश संगठन की सर्वोच्च कुर्सी पर आसीन किया जाना है।  पार्टी में इस पद के लिए मजबूत दावेदारों और योग्य उम्मीदवारों की कमी नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस पद के लिए जो अहर्ताएं रखी हैं, उनपर कुछ ही  नाम  खरे उतरते हैं।

अब देखना यह है कि 2019 के लोक सभा चुनाव के दृष्टिगत भारतीय जनता पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के लिए किस तरह का नेता चुनेगी और क्यो ?प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्य्क्ष अमित शाह की जोड़ी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर मतदाताओं को रिझाने वाले व्यक्ति के चयन पर जोर दे रहे होंगे विशेषकर किसी जाति विशेष जे मतदाताओं को देखते हुये।

विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन में गजब की सोशल इंजीनियरिंग लागू की थी। पिछड़े वर्ग को साधने के लिए केशव प्रसाद  मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बना जर सनसनी फैल दी थी,जिसका पूरा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला।  सामान्य वोटर तो बीजेपी के साथ सदैव   से बने हुए थे कल्याण सिंह के बादसमाजवादी पार्टी से मोह भंग कराकर पिछड़े वोटरों को भाजपा के पक्ष में लाने का बड़ा काम केशव प्रसाद मौर्या ने किया था। ब्राह्मण वर्ग से दिनेश शर्मा उप मुख्य मंत्री बने तो केशव प्रसाद  मौर्य को उनके बराबर की कुर्सी देकर पिछड़े वर्ग के  वोटरों को अहमियत देने का संदेश दिया गया।

यद्यपि विधान सभा चुनाव में बहजन समाज पार्टी के दलितों का मोह मायावती से भंग अवश्य हुआ था पर इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि मायावती कब कौन सा पांसा फेक दे कि दलित वोट भाजपा से खसकने लगे।इसको देखते हुये भाजपा के शीर्ष नेता  प्रदेश का करीब 18% मायावती के दलित वोट बैंक  जिसे भाजपा आजतक अपने पाले में नहीं कर सकी है को लुभाने के लिये भी किसी दलित नेता के नाम पर विचार कर सकती है।योगी सरकार में कोई ऐसा दलित चेहरा उस ऊंचे ओहदे पर नहीं है, जिसे आगे करके भाजपा यह कह सके कि हमने दलितों को अपनी पार्टी में आगे बढ़ाने का काम किया।

प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण काफी अहम  हैं। विधान सभा चुनावों में बसपा प्रमुख मायावती को दलित वोट तो खूब मिले लेकिन किसी दूसरी जाति के वोट ना मिलने के कारण बसपा 18 सीते ही बचाने में कामयाब हो सकी।

बीजेपी के लिए अगली अग्निपरीक्षा 2019 का लोकसभा चुनाव है, जिसके लिए पार्टी ने दलित वोट बैंक पर अभी से नजरें गड़ा दी हैं।इसी रणनीति के तहत पार्टी उत्तर प्रदेश  में अध्यक्ष पद पर दांव खेलगी। भारतीय जनता पार्टी अब किसी दलित को ही सूबे में पार्टी अध्यक्ष बनाना लगभग तय हो गया है।⁠⁠⁠⁠

 

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