विशेषज्ञों को डर, अब चीन को भी टारगेट कर सकता है नॉर्थ कोरिया

पेइचिंग। जब किम जोंग उन ने 2011 में नॉर्थ कोरिया की सत्ता संभाली तो चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिनताओ ने उनका समर्थन करते हुए भविष्यवाणी की थी दोनों देशों के बीच ‘परंपरागत दोस्ताना सहयोग’ और मजबूत होगा। 2 साल बाद ही किम ने अपने अंकल और चीन के साथ मुख्य वार्ताकार जैंग सॉन्ग थाएक को मौत की सजा सुना दी। थाएक को एक सुधारवादी अधिकारी के तौर पर जाना जाता था। तब से दोनों देशों के बीच रिश्तों में इस कदर गिरावट आई है कि कुछ विशेषज्ञों को डर है कि पेइचिंग भी वॉशिंगटन की तरह ही नॉर्थ कोरिया की सनक का निशाना बन सकता है।

खास बात यह है कि अमेरिका को लगता है कि पेइचिंग को प्योंगयान्ग को रास्ते पर लाने के लिए और भी कुछ करना चाहिए लेकिन नॉर्थ कोरिया अपनी परमाणु ताकत में उस वक्त जबरदस्त इजाफा कर रहा है जब चीन के साथ उसके संबंधों में गिरावट आ रही है। चीन के नेता माओ जेडॉन्ग ने नॉर्थ कोरिया के साथ घनिष्ठ रिश्ते को ‘होंठ और दांत’ की तरह बताया था। उन्होंने भौगोलिक सुरक्षा की दृष्टि से नॉर्थ कोरिया की अहमियत के सन्दर्भ में यह बात कही थी। नॉर्थ कोरिया के सनक भरे कदमों पर नाखुशी और असंतोष जाहिर करने के बाद भी पेइचिंग उसके खिलाफ और ज्यादा सख्त होने या दिखने से बचता रहा है।

इंटरनैशनल रिलेशंस के प्रफेसर जिन कैरनॉन्ग का कहना है कि नॉर्थ कोरिया पर चीन का कूटनीतिक नियंत्रण है, ऐसी धारणा गलत है। उन्होंने कहा, ‘नॉर्थ कोरिया का चीन के साथ संबंध कभी भी उसके कमतर सहयोगी के तौर पर नहीं रहा है। शीतयुद्ध के खात्मे के बाद नॉर्थ कोरिया मुश्किल स्थिति में फंस गया और उसे चीन से भी अपेक्षित मदद नहीं मिली।’

चीन 1950-53 के दौरान कोरियन युद्ध में नॉर्थ कोरिया के साथ मिलकर लड़ा था। इस जंग में जेडॉन्ग को अपने सबसे बड़े बेटे को खोना पड़ा था। तभी से पेइचिंग प्योंगयांग का मुख्य सहयोगी और ट्रेड पार्टनर है। हालांकि दोनों के रिश्तों में हमेशा शक की साया रही है लेकिन चीन ने नॉर्थ कोरिया की उकसावे वाली कार्रवाइयों को सहन किया है। इसकी वजह यह है कि चीन नहीं चाहता कि कोरियाई प्रायद्वीप में अमेरिका समर्थित सोल का दबदबा हो। यह भी एक वजह है कि चीन नॉर्थ कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने या इसमें साथ देने से बच रहा है।
 

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