शातिर ब्युरोकेट्स और अखिलेश के लुटू दिमाग की दें है लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे

लखनऊ। आपको याद होगा कि बीते विधान सभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे के बारे में बडी ठसक के साथ कहा था कि यदि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इस सडक पर एक बार यात्रा कर लें, तो वह अपना वोट सपा को ही देंगे। अब एक योगी के राज में उनके  इस दावे की कलई उतर रही है। इसमें सबसे ज्यादा हैरतअंगेज बात यह है कि इस सड़क का निर्माण शुरू होने से काफी पहले ही इसके नाम पर करोडों और अरबों की काली कमाई कर ली गयी थी। वह भी बेहद शातिराना तरीके से।

लगभग डेढ दशकों में उत्तर प्रदेश में करोडों-अरबों रु के एक से एक बढकर बडे घोटाले हुए हैं। लेकिन, इस प्रोजेक्ट में जिस बेहद शातिराने तरीके से लूटखसोट की गयी है, उसकी दूसरी मिसाल आसानी से नहीं मिल सकेगी। इस बात की जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी कि लगभग 302 किलोमीटर लंबे और छह लेन वाले इस एक्सप्रेस वे को शुरू करने के काफी पहले ही सेटलाइट के जरिये यह तय कर लिया गया था कि इसे किन किन रास्तों से होकर गुजारना होगा।

प्रापर्टी डीलरों की मिलीभगत मोटेतौर पर इसका नक्शा बना लिये जाने के बाद कई बडे प्रापर्टी डीलरों और बिल्डरों को इस बात की जानकारी देकर उन्हें यह भी जता दिया गया  था कि इसके बाद उन्हें क्या करना होगा? लिहाजा, उन लोगों ने एक सधीसधायी चाल के तहत इस एक्सप्रेस वे के किनारे और आसपास की जमीनों को किसानों से सस्ते दर पर खरीद ली। इसके बाद सरकार ने उन्हीं जमीनों को काफी ऊंचे दर पर खरीद लिया। इससे सरकारी खजाने पर भले ही गहरी चोट पडी हो, लेकिन चुनिंदा लोग तो मालामाल हो गये।

खुद अखिलेश यादव का बेदाग दामन  सूत्रों की माने, तो बड़े ही शातिराना तरीके से की गयी इस महालूट में अखिलेश यादव की सीधी संलिप्तता रही हो, यह नहीं कहा जा सकता है। आज की तारीख तक उनके दामन पर ऐसा एक भी दाग नहीं लग सका है। लेकिन, इसकी जानकारी तक उन्हें न रही हो अथवा उन्हें विश्वास में लिये बिना ही इतनी बडी लीला रच दी गयी हो, यह भी मुमकिन नहीं जान पडता।

ऐसे में लगता यह है कि इसका प्रमुख सूत्रधार कोई बहुत ही शातिर दिमाग का वरिष्ठ नौकरशाह ही रहा होगा। जिसने इस कला में बड़ी महारत हासिल कर ली है। निश्चय ही यह नौकरशाह अखिलेश यादव का बेहद करीबी, भरोसेमंद और चहेता ही रहा होगा। कौन हो सकता है यह? क्या तत्कालीन मुख्य मंत्री अखिलेश यादव को भी इसमें की गयी बंदरबाट में उनका अपना हिस्सा मिला है? यह एक यक्ष प्रश्न है। इसका सटीक जवाब तो इस मामले की जांच के बाद सी.बी.आई. ही दे सकेगी। माया-अखिलेश दोनों का रहा है कंठहारफिलहाल, सूत्रों की मानें, तो यह शातिर नौकरशाह पूर्व मुख्य मंत्री मायावती के भी गले का नौलखा हार रहा है। दोनों ही सरकारों में इसकी तूती बोलती रही है। इसने जो भी चाहा, जैसा भी चाहा, वही होता रहा है। इसके फितरती दिमाग का लोहा तो मानना ही होगा कि इतना कि इतना बडा घोटाला हो जाने के बाद भी सी.बी.आई. के लिये इस पर हाथ डाल सकता बडी गंभीर चुनौती होगी।

गाज गिरेगी इंजीनियरों-ठेकेदारों पर बात करते हैं अखिलेश सरकार के एक और ड्रीम प्रोजेक्ट गोमती रिवर फं्रट प्रोजेक्ट में किये गये भारी घोटाले की। इसकी प्रारम्भ्कि पडताल के बाद सुरेश खन्ना जांच कमेटी सिर्फ इंजीनियरों और ठेकेदारों को ही अपने निशाने पर ले सकी है। गाज इन्हीं पर ही गिरेगी। लेकिन, इस प्र्रोजेक्ट में जिनके इशारे और मंशा के मुताबिक इतना बडा घोटाला किया गया है, उनकी ओर इशारा तक करने की भी जरूरत नहीं समझी गयी।  ऐसे में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे घोटाला की सीबीआई जांच का भी हश्र कुछ ऐसा ही हो सकता है।

बताया जाता है कि इस एक्सप्रेस वे के लिये ज्यादा मुआवजा की लालच में किसानों की जमीन को रिहायशी जमीन की श्रेणी में दिखाया गया था। इसके जरिये भी करोडों रु का घोटाला किया गया है। इसके लिये 230 गॉवों के तीस हजार से ज्यादा किसानों से 35 सौ हेक्टेयर जमीन खरीदी गयी थी। इस खरीद के लिये 30,456 किसानों से सहमति लिये जाने का दावा किया गया था।

नवनीत सहगल के हटते ही डी.एम. भी सामने आई 

मजे की बात तो यह कि निजाम बदलते ही फिरोजाबाद की जिलाधिकारी नेहा शर्मा की इस मामले में चकबंदी विभाग के 27 अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की हिम्मत पड गयी है। वरिष्ठ नौकरशाह नवनीत सहगल के यूपीडा के सीईओं रहते समय वह ऐसा सोच भी नहीं सकती थी। इनके अलावा, पिछली सरकार के भय से जिन किसानों ने अभी तक चुप्पी साध रखी थी, अव वे भी खुलकर बोलने लगे हैं। नौ सौ से भी अधिक किसान जमीन के मुआवजे में भारी घोटाला किये जाने के प्रामाणिक दस्तावेजों के साथ अपनी बात कहना चाह रहे हैं। इनमें यह कहने वालों की भी कमी नहीं है कि उनकी जमीन का तो बैनामा हो गया था, लेकिन उसका पैसा उन्हें आज तक नहीं मिला है।

 

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