संदिग्ध ISI एजेंट जावेद से खुफिया एंजेंसियां कर रहीं पूछताछ, बार-बार बदल रहा बयान

लखनऊ/गोरखपुर। भारत-नेपाल की सोनौली सीमा पर 23 अक्टूबर को पकड़े गए संदिग्ध पाकिस्तानी नागरिक कमाल जावेद से पूछताछ जारी है। आईबी, रॉ, एनआईए और एटीएस के अफसर उससे पूछताछ कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, जावेद बार-बार अपना बयान बदल रहा है। उसे बुधवार को महाराजगंज के सेशन कोर्ट ने पांच दिन की पुलिस हिरासत में सौंपा था। इससे पहले जावेद ने कहा था कि वह बीएचयू के प्रोफेसर राजेश सिंह से मिलकर भारत की नागरिकता पाना चाहता था। वहीं, प्रोफेसर राजेश सिंह ने जावेद के आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने कहा, ‘मैं जावेद को जानता तक नहीं।’ उनका कहना है कि उनकी कभी जावेद से मुलाकात ही नहीं हुई। जावेद के मुताबिक, उसने कायदे आजम यूनिवर्सिटी, इस्लामाबाद से पीएचडी की है।
जावेद को जिला कारागार महराजगंज से बुधवार को जिला सत्र न्यायालय ले आया गया। सुरक्षा में कोई कमी न रह जाए, इसलिए अतिरिक्त फोर्स कैदी वाहन के साथ लगाई गई थी। उसे सीजेएम दिवाकर द्विवेदी की कोर्ट में पेश किया गया। तकरीबन एक घंटे चली बहस के बाद सीजेएम द्विवेदी ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। पुलिस कस्टडी रिमांड के लिए महाराजगंज की सोनौली पुलिस ने आवेदन दिया था।
जावेद ने बताया- पाक के फैसलाबाद का है निवासी
न्यायालय ने शाम चार बजे अपना फैसला सुनाया। उसे पांच दिन की पुलिस कस्टडी रिमांड पर पुलिस को दिया गया। अभियोजन अधिकारी रघुबंश शुक्ला के मुताबिक, कथित डॉ. जावेद ने सीजेएम कोर्ट को बताया है कि वह पाकिस्तान के फैसलाबाद का ही रहने वाला है। कायदे आजम यूनिवर्सिटी इस्लामाबाद, पाकिस्तान से उसने पीएचडी की है। वह बीएचयू वाराणसी के प्रोफेसर डॉ. राजेश सिंह से टर्की में एक सेमिनार में मिला था। प्रोफेसर ने उसे मदद देने और भारत आने का न्योता दिया था।
कहा- भारत की नागरिकता लेकर बसना चाहता था
जावेद ने कोर्ट में एक सहानुभूति हासिल करने वाला भी पक्ष रखा। सूत्रों के मुताबिक, जावेद ने कोर्ट को बताया कि उसने पीएचडी की है। पाकिस्तान में उसकी पढ़ाई के मुताबिक उसे सम्मान नहीं मिल रहा था। वह नौकरी के सिलसिले में अब तक कई देशों की यात्रा कर चुका है। उसे नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए वह भारत की नागरिकता लेकर यहीं बसना चाहता था। उसने बताया कि उसे पाकिस्तान प्रशासन भी परेशान करता था, इसलिए वह खुद की रोजी की व्यवस्था करने के लिए भारत आ रहा था। जावेद ने पाकिस्तान की कई बुराइयों को भी बयां किया। अभियोजन अधिकारी ने बताया कि जावेद का कई बयान मेल नहीं खा रहा था, इसलिए उसे गुरुवार से पांच दिनों की पुलिस कस्टडी रिमांड पर दिया गया।
नेपाल-भारत सीमा से पकड़े गए संदिग्ध डॉ. जावेद कमाल के बयान के बाद बीएचयू के डिपार्टमेंट ऑफ जेनेटिक एंड प्लांट ब्रीडिंग कृषि विज्ञानंसंस्थान के प्रो. डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि वो टर्की अंटेलिया में इंटरनेशनल प्लांट ब्रीडिंग कांग्रेस में 10 से 14 नवंबर 2013 में शामिल होने गए थे। उनके साथ दो अन्य छात्र भी टर्की गए थे। उनकी मुलाकात कभी भी डॉ. जावेद से नहीं हुई है और न तो वह जावेद को पहचानते हैं। इन सारे तथ्यों की जानकारी फोन पर पूछे जाने पर इंटेलीजेंस ब्यूरो और एजेंसियों को दिया गया है। मीडिया में प्रकाशित खबरें तथ्यहीन हैं। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के कई साइंटिस्ट वहां आए थे। दूसरी ओर, उन्होंने बीएचयू के प्रोफेसर आरपी सिंह के बयान का भी खंडन किया कि उनको आखिर पूरे मामले पर मीडिया को बयान देने की क्या आवश्यकता है। बताते चलें कि आरपी सिंह ने कहा कि आरोप संदिग्ध है।
अब सवाल यह उठता है कि जावेद जब वर्ष 2013 में टर्की में प्रोफ़ेसर राजेश सिंह से मिला था और उन्होंने उस वक्त उसे भारत आने का निमंत्रण दिया था तो फिर वह पूरे दो साल बाद क्यूं उनसे मिलने जा रहा था। यदि उनसे मिलना ही था तो फिर चोरी से नेपाल के रास्ते आने की क्या जरूरत थी। जब उसके पास पैसे नहीं थे और उसे बैंकॉक के थाईलैंड में अपनी मोबाइल तक बेचने की जरूरत पड़ गई तो उसके पास काठमांडू में इतने मंहगे होटलों रुकने के लिए पैसे कहां से आए। उसकी दूसरी बात सही मान ली भी जाए कि उसे उसकी बहन ने 66 हजार थाई मुद्रा उपलब्ध कराई थी तो वह बहन कहां गई। फ्लाइट का टिकट और होटलों का खर्च कहां से आया, जब उसके पास लगभग 40 हजार थाई मुद्रा गिरफ्तारी के वक्त थी। उसने यदि मोबाइल बेचा तो फिर उसका चार्जर क्यूं लेकर घूम रहा था।
कई एजेंसियां करेंगी पूछताछ
बता दें, गत 23 अक्टूबर को सीमा से पकड़े गए जावेद के आईएसआई एजेंट होने के संकेत मिले हैं। बताया जा रहा है कि जावेद को काशी और अन्य जिलों में मौजूद स्लीपर सेल को एक्टिवेट करने का काम सौंपा गया है। इस काम में जावेद के कुछ साथी यूपी के अन्य जिलों में भी पहुंच चुके हैं। पाकिस्तान में जावेद के सभी दस्तावेज फर्जी मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी हो गई हैं। रिमांड पर पूछताछ के लिए एनआईए, एटीएस, रॉ और आईबी के अफसर महराजगंज पहुंचे हैं। आशंका यह भी जताई जा रही है कि जावेद पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र की रेकी करने आया था।
1996 में आईएसआई से जुड़ा
चक नंबर 76 जीबी फैसलाबाद निवासी जावेद कमाल के खतरनाक मंसूबे परत-दर-परत खुलते जा रहे हैं। फैसलाबाद के ही व्यवसायी डॉ. जावेद कमाल के नाम का शैक्षणिक प्रमाण पत्र उसके पास मिला है। सूत्रों की मानें तो बनारस को उसके आकाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के नाते ही चुना था। उसे मोदी के संभावित कार्यक्रम स्थलों की रेकी करनी थी। बताया जा रहा है कि जावेद 1996 से ही आईएसआई से जुड़कर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने में लगा है। प्रारंभिक जांच के मुताबिक, जावेद के साथ पांच लोग भी थे। संभावना जताई जा रही है कि इसमें से कुछ लोग पहले ही दशहरा और मोहर्रम का लाभ उठाकर भारत में प्रवेश कर चुके हैं।
भारत में फेसबुक फ्रेंड्स बना रहा था जावेद
जावेद ने आर्मी पेज को भी लाइक किया था। अभी तक उसका मोबाइल नहीं मिला है। उसके कुछ शरणदाताओं की भी तलाश जारी है। बता दें, नेपाल के तराई इलाके में सिमी, आईएम, हूजी और आईएसआई ने लंबे अर्से से ट्रांजिट प्वाइंट बना रखे हैं। इससे पहले भी तमाम आतंकी यहां से घुसपैठ करते रहे हैं। ये इलाका टॉप 20 में शामिल आतंकी अब्दुल करीम टुंडा की गिरफ्तारी के बाद सुर्खियों में आया था। आईएम का सरगना यासीन भटकल भी यहीं से पकड़ा गया था। वहीं, पंजाब का दुर्दांत आतंकी सुखविंदर सिंह भी यहीं से दबोचा जा चुका है।
जावेद कमाल भारत में कुछ दिन टिकने की कोशिश में था. वह फेसबुक पर बड़ी संख्या में भारतीय दोस्त बना रहा था। उसने पीएमओ और बताते चलें कि आतंकी यासीन भटकल ने बताया था कि उसके संगठन का गठन भी नेपाल में हुआ था। वहां स्थित पाकिस्तानी दूतावास की भूमिका पर भी पहले ही सवाल उठते रहे हैं। अब जावेद कमाल के पकड़े जाने से खुफिया एजेंसियां चिंतित हैं।
कई और आतंकवादी भी आए थे
सिद्धार्थनगर जिले की बढ़नी सीमा पर भाग सिंह और अजमेर सिंह नाम के आतंकी पकड़े गए थे। वहीं, साल 1993 में सोनौली सीमा पर मुंबई बम कांड का दोषी याकूब मेमन भी धरा गया था। वहीं, आतंकी जब्बार भी इसी रास्ते से होकर लखनऊ पहुंचा था। गोरखपुर, वाराणसी, लखनऊ और फैजाबाद कचहरियों में विस्फोट करने वाला संजरपुर निवासी सलमान उर्फ छोटू भी यहीं से गिरफ्तार हुआ था।
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